रवि यज्ञसेनी की 2 कविताएं- पापा अब परदेश न जाना/ अब ना जाओ दूर सजन ! 

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  • रवि यज्ञसेनी

पापा अब परदेश ना जाना

हम रूखा-सूखा खा लेंगे।

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दूर हुए अपने गाँवो से,

दूर खेत-खलिहानों से,

दूर तीज-त्योहार हुए,

और बासंती मेलों से।

पापा मेरी फिक्र ना करना

हम खुद को समझा लेंगे,

पापा अब परदेश ना जाना

हम रूखा-सूखा खा लेंगे।

खेल-खिलौने नहीं चाहिए,

साथ-साथ मेहनत कर लेंगे,

मिल जाए जो चटनी-रोटी

साथ खुशी से खा लेंगे।

बैट, बाल भी नहीं चाहिए,

नही  खिलौने  माँगेंगे,

पापा अब परदेश ना जाना

हम रूखा-सूखा खा लेंगे।

अपनी जान पर अब ना खेलो,

खेतों में ही मेहनत कर लो,

पैसा नहीं जिंदगी प्यारी,

पापा अब तुम दुख ना झेलो।

जिसने दिया हमें यह जीवन

वही हमें सम्हाल भी लेंगे,

पापा अब परदेश ना जाओ

हम रूखा-सूखा खा लेंगे !

अब ना जाओ दूर सजन ! 

अब ना जाओ दूर सजन, अब ना जाओ दूर….

सावन की अठखेली छूटी,

गजरा, लाली, मेहंदी छूटी,

छूट गयी ऋतु वो बासंती

सारी अब मनमानी छूटी,

तन्हाई में कटे जिंदगी दोनों हैं मजबूर,

अब ना जाओ दूर सजन, अब ना जाओ दूर….

तकें राह नैना ये निशि-दिन,

कटती है रातें भी गिन-गिन

लगता कहीं नहीं अब ये मन

लागे जिया नहीं तेरे बिन,

रूखा सूखा मिलेगा जो भी, होगा अब मंजूर,

अब ना जाओ दूर सजन, अब ना जाओ दूर….

सही न जाए अब ये दूरी,

जाने कैसी है मजबूरी,

कैसा विधि का लेख निराला,

एक हैं हम फिर भी है दूरी,

अब मुझसे फिर दूर ना जाना, करूँ प्यार भरपूर,

अब ना जाओ दूर सजन, अब ना जाओ दूर….

राजा हो तुम मेरे दिल के,

सुख-दुख बाँटे दोनों मिलके,

छप्पर यह महलों के जैसा,

राज करो तुम राजा बनके

जी हुजूर अब करो कहीं, ना कहलाओ मजदूर,

अब ना जाओ दूर सजन, अब ना जाओ दूर…!

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