मार्क्सवाद को समझे बिना हर कोई इसकी आलोचना कर रहा 

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आर्थिक उदारीकरण ने आपको वेतन-पैकेज लाख-करोड़ रुपये तो दिये, लेकिन ये पैसे बाजार के रास्ते फिर पूंजीपतियों के पास ही पहुंच गये। इसे कोई नहीं समझा।
आर्थिक उदारीकरण ने आपको वेतन-पैकेज लाख-करोड़ रुपये तो दिये, लेकिन ये पैसे बाजार के रास्ते फिर पूंजीपतियों के पास ही पहुंच गये। इसे कोई नहीं समझा।
मार्क्सवाद के दर्शन की आलोचना करने के पहले यह नहीं भूलना चाहिए कि सोवियत रूस और चीन की जनता का भाग्य इसी ने बदला। दोनों को विश्व की महाशक्ति बनाने में इसकी केन्द्रीय भूमिका रही।
  • कर्मेंदु शिशिर

मार्क्सवादियों की आलोचना एक अलग बात है और मार्क्सवाद की आलोचना बिलकुल अलग बात है। इस दर्शन की आलोचना करने के पहले यह नहीं भूलना चाहिए कि सोवियत रूस और चीन की करोड़ों जनता के भाग्य को बदलने और विश्व की महाशक्ति बनाने में इसकी केन्द्रीय भूमिका रही।

रूसी क्रांति की भारत के स्वाधीनता आंदोलन में कितनी बड़ी प्रेरक भूमिका रही और भारतीय नेताओं की सोच को गढ़ने में इसका कितना बड़ा योगदान रहा, आलोचना करते वक्त इसे नहीं भूलना चाहिए। चाहे नेहरू जी हो अंबेडकर जी लोहिया जी या जयप्रकाश जी। सबने खुद को पल्लवित-पुष्पित होने में इससे रस-जल लिया।

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मगर आज जिसके पैंट का बटन आगे से खुला है, वह भी मार्क्सवाद पर कुछ भी वमन कर खुद को विचारक समझने लगता है। आजादी के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी मार्क्सवादी ही थी। आज उसके नेताओं ने अपनी अवसरवादी राजनीति से उसे रसातल में पहुंचा दिया है, बावजूद प्रभावहीन होने पर भी आज सबसे तीखी आलोचना इनकी ही होती है।

इस देश की जैसी आर्थिक दुर्दशा है, उसको समझने के लिए आपके पास मार्क्सवादी नजरिये से ज्यादा सबल और कुछ नहीं है। जो कुछ इस देश में न होने वाली घटनाएं घट रही हैं और जिस तरह संकट गहराता जा रहा है, उसके पीछे पूंजी का ही खेल है। आप मत मानिये मार्क्सवाद को, मगर मौजूदा हालात को जरा उस नजरिये से समझने की कोशिश तो कीजिए! आप समाधान जो खोजना है खोजिये, कौन मना कर रहा है, मगर बीमारी को तो ठीक से समझिये!

मार्क्सवादी विचारधारा का विरोध करने के लिए ही, मगर उसे पहले समझिये तो! समय की गतिशीलता में कोई विचारधारा अपने प्रकृत रूप में कारगर नहीं हो सकती। मार्क्सवाद भी इसका अपवाद नहीं, लेकिन समझने के लिए तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी। आज की पूंजी श्रम और उत्पादन की नहीं है। यह आवारा, मनचली और छिनाल पूंजी है। इसकी चाल और मंशा को सही- सही समझिये, भले ही आप मार्क्सवादी हों, समाजवादी, गाँधीवादी या अंबेडकरवादी ही क्यों न हों।

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