मलिकाइन पूछले बाड़ी- ई अनारसी का होला मलिकार !

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मलिकाइन के पाती ढेर दिन बाद आइल बा। पांवलगी-चिरंजी के बाद उनकर सवाल NRC (नागरिकता संशोधन कानून) के लेके बा. पूछले बाड़ी- ई अनरासी का होला मलिकार? मलिकाइन एनआरसी के अपना बोली-भाषा में अनारसी कहले बाड़ी। पहिले त हमरो अनारसी समझ में ना आइल, बाकिर उनकरा पाती के पूरा पढ़ला के बाद बुझाइल कि ऊ कवन चीज के अनारसी नाम धइले बाड़ी। पढ़ीं उनकर पातीः

पांव लागीं मलिकार! रउरा त मने मन खिसिआइल होखेब कि हम कहवां हेरा गइल बानी, जे चार लाइन के पाती पठावे में एतना लमहर टाइम लाग गइल। रउरा त जानते बानी मलिकार कि घर में नन्हका के छोड़ के कवनो मरद-मानुष त बा ना। बाहर-भीतर के सगरी जंजाल हमरे ऊपर बा। रउरा त दू गो पइसा खातिर कहवां-कहवां छिछियाइल फिरीले। एही से हम कबो रउरा के आपन परेशानी बतावल हमरा नीक ना लागे।

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एने धन कटनी के टाइम रहल हा। धान कटवावत-पिटवावत आ खरिहानी से घर में जगहा धरावत डेढ़-दू महीना बीत गइल हा। तनी सांस मिलल हा, तबले नन्हका आ बड़की, मझिली, संझिली सगरी के सर्दी-बोखार जहुआ दिहलस हा। ई ना कहीं कि मोर पर के बंगाली डागदर के पांड़े बाबा जब-जब बोलवनी, बेचारा सांझ-सबेरे आ के देख जास आ सुई-दवाई दे जास। बारी-बारी से चारू बेमार पर गइले सन। अब ठीक बाड़े सन, बाकिर खोंखी अबहीं ले छोटकी के तनी-मनी बड़ले बा। पांड़े बाबा बतवले बानी कि रोज चवनपरास खियावे के। उहें के परसों कीन के ले आइयो दिहनी।

ए मलिकार, ई अनारसी का होला? कई दिन से पांड़े बाबा के दुअरा भोरे-भोरे कांव-कांव लोग आपसे में करत बा। हमरा त एकर माने-मतलब अबही ले ठीक से नइखे बुझाइल। केहू कहेला कि अनारसी हो जाई त मियां लोग एह मुलुक से चल जाई। केतने जने त ई कहेले कि एही धरती पर कई पुस्त से हिन्दू-मुसलमान लोग रहत चल आइल बा। सभकर पुरनिया के माटी-दाह एहीजा भइल बा। कइसे ओकर कुल-खानदान एइजा से चल जाई। कई जना त ई कहे ले कि मियां लोग खातिर पाकिस्तान बनल बा। जा के ओही जा रहे लोग। ई सुन के हमरो तनी खराब लागल मलिकार। अइसन कइसे हो सकेला।

पांड़े बाबा खबर कागज पढ़ के लोग के समझावत रहवीं कि केहू एइजा से ना जाई। ई कानून खाली ओह लोग पर लागू होई, जे दोसरा देस से आ के एइजा लुका-छिपा के रहत बा। कवनो बंगाली देस के नाम आवत रहुवे। पांड़े बाबा कहत रहवीं कि बंगाली देस से ढेर लोग आ के एइजा बस गइल बा। उहें के बतावत रहवीं कि मोर पर के जवन बंगाली डाकदर लइकवन के देखे आवत रहले हां, उहो बंगाली देस के हउवन।

ई कुल बतकही त हमरा माथ से ऊपर निकल जाला मलिकार। रउरा हमरा गियान-बुद्धि के त जानी ले। तनी हमरे हिसाब से हमरा के समझायेब। सुने में आवता कि एके लेके देस भर में मारा-काटी मचल बा। ए मलिकार, हमनी के साठ दशहरा देख लिहनी सन, कबो अइसन सुने में ना आइल। एही घरी काहे ई कुल होता। वोट के टाइम होखे भा वोट के बाद, खाली हिन्दू-मियां सगरी होता।

हमहू का ले के बइठ गइनी। ठंडा बढ़ गइल बा मलिकार। कहीं निकलेब त लिलार-कपार बान्ह लेब। जामा के भीतर ऊनी गरम गंजी भर बांह के पहिरला के बाद कपड़ा पहिरेब। ऊपर से सुइटर पहिर लेब। ठंडा बचायेब। आज एतने, बाकी अगिला पाती में।

राउर,

मलिकाइन

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