मलिकाइन के पातीः होइहि सोइ जो राम रचि राखा…..

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किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।
किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।

मलिकाइन के पाती आइल बा। लिखले बाड़ी- होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावे साखा। ह लाइन से मलिकाइन कोरोना से डेराइल लोग के समझवले बाड़ी। ऊ लिखले बाड़ी कि बचपने से हमनी इहे सुनत-गुनत आइल बानी सन, त कोरोना से एतना डेरइला के कवन काम बा। रउरो पढ़ीं उनकर पातीः

पांव लागीं मलिकार। पाती पठावे में अबकी तनी देर हो गइल। हम राउर सुभाव जानीले। रउरा नया नचर गवनउत कनिया के बाहर कमाये गयिल मरद अइसन मछरी अइसन छटपटात होखेब। भले राउर उमिर अब बुढ़ौती का ओर बा, बाकिर राउर मन पाती खातिर हरदम बेचैन रहेला। जाये के बेरा रउरा किरिया धरा के जाई ले कि कुठऊ होखे पाती टाइम पर आ जाये के चाहीं। हमहूं काली माई आ बरम बाबा से इहे गोहराई ले कि रउरा के पाती पठावे खातिर हमरा के हरदम बनवले राखस।

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एने त रउरा जानते बानी मलिकार कि मोदी जी कवनो लउक डाउन (लाक डाउन के मलिकाइन लउक डाउन लिकले बाड़ी) लगा दिहले बाड़े। पहिले एकइस दिन कहले त बुझाइल कि नीमन बा, तनी लोग के आराम करे के मोका मिल जाई। लड़िकवो स्कूल जाये के बेरा मुंह-नाक टेढ़िआवत रहले हां सन। ओकनी के बूझीं कि आसमान के टपकल लड्डू मिल गइल। बाकिर जब ई सुनाइल कि केहू के घर से बाहर नइखे निकले के बा त उहो अब घरे रहत आ सांप-सीढ़ी के खेल खेलत अगुता गइल बाड़े सन। ढेर होता त दुआर पर तनी थाड़ी-चीका भा कबड्डी खेल ले तारे सन।

बाकिर अब मन उबिया गइल बा मलिकार। एकनी के इसकुलवा जात रहले हां सन त तनी आराम करे के फुर्सत मिल जात रहल हा। अब त भर दिन घर में बइठन फरवात रहतारे सन कि रे माई, तनी पकौड़ी बना दे। कबो हलुआ बनावे के त कबो पुआ-पूड़ी फरमावत रहेले सन। हमहूं ओकनी में भर दिन अझुराइल रहीले। एगो का दूनी बजरवा से पांड़े बाबा के बड़कू नाती से मंगवावत रहले हां सन आ उनहीं कीहां बनवा के खइहें सन। ओकरा के मउगी कहे ले सन शायद (मलिकाइन मैगी के मउगी लिखले बाड़ी)। बड़का काल्ह उनका से कहत रहुवे- का चाचा, तनी कहीं से जोगाड़ कर ना मउगिया, खाये के बड़ा मन करता। ढेर दिन हो गइल।

ए मलिकार दू बेर त ई लउक डाउन बढ़ल आ फेर पांड़े बाबा काल्ह कहत रहवीं कि तिसरका बेर पनरह दिन खातिर अउरी बढ़ गइल बा। आज उहां के दुअरवा पर एही पर बतकही होत रहुवे। पांड़े बाबा बतावत रहुवीं कि जवना कोरना बेमारी खातिर ई लउक डाउन होता, ऊ ओराये के बदला बढ़ले जाता। पहिले त सैकड़ा में मरीज धरात रहले हां सन, अब त रोज ई हजार से ऊर हो गइल बा। हमरा मन में अउवे कि जब बेमारी ठेके नइखे होत त काहें खतिरा सगरी काम-धंधा बन कइल बा। बाकिर पांड़े बाबा कहत रहुवीं कि लउक डाउन ना भइल रहित त अबले घर-घर में कोरना के मरीज मिलते।

एगो बात पर ढेर देर ले झांव-झांव होत रहुवे कि लउक डाउन में बस-टरेन बंद क के लोग के कहीं आइल-गइल एतना दिन रोक दिहल गइल। काम-धंधा, कल-कारखाना आ दउरी-दोकान सगरी में काम रोक दिहल गइल। रोज कमाये-खाये वाला लोग घरे भागे खातिर छटपटाये लागल त टरेन ना चलल। डेढ़-दू महीना बाद उहे कमवा बड़का मोदी जी कउले। कवन फायदा भइल। टरेन बंद भइला से तिरबिरवां, तेतहली आ तितिरा के केतने लोग पैदल चल के घरे भाग आइल लोग। कई जना त आवते भहरा के गिर परल लोग। गांव के लोग बीडीओ के बता दिहल कि बाहर से आइल बा लोग, त चौदह दिन घर से बहरी इसकूल में ओह लोगन के रहे के परल हा।

पांड़े बाबा बतावत रहुवीं कि लउक डाउन से देश के हालत खराब बा। रुपिया-पइसा के बात करत रहुवीं उहां के। कहत रहुवीं कि फेर से काम चालू भइला के बादो सरकार आ कंपनी के जेतना नुकसान भइल बा, ओकरा खातिर केतना लाख करोड़ के मदद देबे के परी। लोग के तनखाह घट जाई। लोग काम से निकालल जाई। उहें के बतावत रहुवीं कि खबर कागज में छंटनी आ तनखाह काटे के नौबत आ गइल बा। जे ना करी, ओकरा आपन दोकान बंद करे के परी।

आपन बड़का बतावत रहुवे मलिकार कि पांड़े बाबा के नेतिया जवना इस्कूलवा में पढ़ेला, ओकर पढ़ाई घसेटउआ फोन (एंड्रायड के मलिकाइन घेसेटउआ फोन कहेली) पर होता। रोज तीन बजे से पांच बजे ले के टीवी अइसन पढ़ावल जाता। ई ना कहीं मलिकार कि आपने तीनू बलुआ पर के सरकारी इस्कूमें पढ़े ले सन। बड़का पर साल हुरियवले रहे कि हमरो नांव ओकरे इस्कूल में लिखवा दे। फीस पूछनी त पच्चीस हजार सुनिए के हमार माथा घिरनी अइसन नाच गइल। ना लिखववनी। लिखववले रहतीं त ओकरो खातिर घेसटउआ फोनवा कीने के परित नू। दस-पंद्रह हजार खरचा इहो बढ़ित।

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ए मलिकार, डागदर साहेब लोग कहेला कि टीवी आ घसेटउआ फोन देखला से लड़िकन के आंख जल्दी खराब हो जाता। एही से छोट-छोट लड़िकन के बचपने में चशमा लगावे के परत बा। अब हमरा ई नइखे बुझात कि तीन-चार घंटा जवन लड़िका मोबाइल पर आंख गड़ा के बढ़िहें सन, ओकनी के आंख ना खराब होई का। तीन-चार महीना नाहिएं पढ़िते सन त का बिगड़ जाइत। सरकारी इस्कुलवा के लड़िकवा नइखन स पढ़त त ओकनी के का बिगड़ जाता। कइसन जमाना आ गइल मलिकार।

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पांड़े बाबा बतावत रहुवीं मलिकार कि कोरना अइसन लरछुत बेमारी बा कि एक देह से दोसरा देह में सटला पर समा जाता। अब रउवे बताईं मलिकार कि जवना लोग के ले आवे खातिर सरकार इसपेसल टरेन चलवले बिया, ऊ लोगवा जब गांव में आई त बायन ना बांटी का। केतना दिन ले लोग लुकाइल रही। पेटवो त पोसे के बा। काम-धंधा करहीं के परी। इहो सुने में आवता कि एक बेर जेकर हो के छूट जाता ई बेमारी, फेर दोहरा देता। त केतना केहू बचा पाई। एकर इलाज त डाकदरे लोग नू खोजी मलिकार। सुने में आवता कि खाली बिहार के 25 लाख लोग बाहर से लवटे वाला बा। झारखंडो में आठ-दस लाख लोग लवट रहल बा।

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हमरा इयाद परेला परेला मलिकार कि हमरा माई के आजी जबले जीयली, ऊ बतावस कि पलेग आइल रहे त गांव के गांव डीह हो गइल। लोग के मुअला के लाइन लागल रहे। जब ओइसन बेमारी के इलाज डाकदर लोग खोज लिहल त ई कोरना केतना बड़ा बेमारी बा, जे लोगवा एतना घबराइल बा। थपड़ी-थरिया बजवल आ देवराई मनवला से बेमारी भागे के रहित त लाखों खरचा क के केहू काहें डगदरी पढ़ित। हमरा त ओह दिन बड़ा अखरल मलिकार, जहिया बड़का मोदी जी देवराई मनावे के कहले रहले। एक त केहू बाजारे जात नइखे। तरकारी छेंवके भर के तेल बांचल रहे, बिकर उनकरा कहला पर दियरी भर तेल जियान करे के परल। बिना तेल के कवन तरकारी बनइतीं, एह से चोखा-चटनी से काम चलावे के परल।

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ए मलिकार, हमनी के अबही ले जवन सुननी-गुननी सन, ओइमें त इहे नू रहे- होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावे साखा। त एतना काहें घबराइल जाव। जवन लिखल होई, ऊ हो के रहीं। तबो आपन धेयान राखेब। पाती तनी लमहर हो गइल। बाकी अगिला पाती में।

राउरे, मलिकाइन

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