भीष्म नारायण सिंह का जाना भोजपुरी भाषियों का बड़ा नुकसान

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समरस होना ही समर्थ या सामर्थ्यवान भारत की पहचान है। समरसता से मिली ताकत के कारण ही भारत जगत गुरु कहलाया और यही ताकत उसे और आगे ले जाएगी।
समरस होना ही समर्थ या सामर्थ्यवान भारत की पहचान है। समरसता से मिली ताकत के कारण ही भारत जगत गुरु कहलाया और यही ताकत उसे और आगे ले जाएगी।
  • उमेश चतुर्वेदी

हम भोजपुरीभाषियों की एक कमी है, जैसे ही हम थोड़ा पढ़-लिख जाते हैं, सार्वजनिक जगहों पर आपसी लोगों से बातचीत में भोजपुरी को किनारे रखते जाते हैं। गलत ही सही, अपने लोगों के बीच भी अंग्रेजी झाड़ने या हिंदी बोलने में देर नहीं लगाते। दिवंगत भीष्मनारायण सिंह ऐसे नहीं थे। असम और तमिलनाडु के पूर्णकालिक राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री रहे भीष्म नारायण सिंह जब भी मिलते, पलामू की मिठासभरी भोजपुरी वातावरण में गमक जाती- का जी, आईं ना, तनी चाह पीहीं।

भोजपुरी को जीना और उसमें रच जाने का वह पल गहरे तक भिगो जाता था। कुछ महीने पहले इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अजीत दूबे ने बुलाया था। वहां भीष्म जी भी मिल गए। लगे हाथों उन्होंने खाते वक्त गरम पानी पीने की ताकीद कर दी-  खात खानी गरम पानी पीहीं। तबियत ठीक रही आ वजनो। देखेनी जापानी लोगन के..उ लोग खात खानी या त गुनगुना पानी पियेला ना त खइला के बाद चाह। ओसे उ लोग फिट रहेला। तब से जब भी खाना खाता हूं, गुनगुने पानी की याद आ ही जाती है।

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भीष्म जी को इस बात का गर्व था कि 14 अगस्त 1984 को हुए असम समझौते में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी..जिसके बाद असम में शांति लौटी थी। उसी समझौते में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को अपडेट करने की भी शर्त है। वह अब यानी 33 साल बाद जाकर हो रहा है, जिस पर तेज राजनीति चल रही है।
असम समझौते के बाद हुए विधानसभा चुनावों में असम गण संग्राम परिषद की सरकार बनी थी। छात्रावास से सीधे सचिवालय जाने वाली उस युवा सरकार को भीष्म नारायण सिंह ने ही शपथ दिलाई थी।

यह कैसा दुर्योग है कि जिन दिनों असम समझौते का बार-बार जिक्र हो रहा है, उन्हीं दिनों उस समझौते के एक सूत्रधार भीष्म नारायण सिंह इस दुनिया को सदा के लिए नमस्ते कर गए। जयललिता को लेकर भी उनके पास ढेरों संस्मरण थे। एक बार मैंने उनसे अनुरोध किया था, ए सब के लिखि दीं। देखीं, हमनी के राजनीति में रहल बानीं जा। बहुते अनुभव बा, लेकिन ओके लिखल खतरा से खाली नइखे। इतना कहकर वे मुस्कुरा उठे थे।

राजनीति में धोती और गांधी टोपी वाले लोग गिने-चुने ही हैं, उनमें से भीष्म जी भी एक थे। भोजपुरी के लिए हमेशा सक्रिय रहे भीष्म नारायण सिंह का जाना भोजपुरी का, अपनी भाषा का बड़ा नुकसान है।

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