बिहार में इस बार बेमन से मुख्यमंत्री बने हैं नीतीश कुमार

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बिहार में नीतीश सरकार सुशांत मामले में जितना तत्पर या हड़बड़ी में दिखी, अब बिहार में ही हो रहे अपराधों पर उतनी मुखर या सक्रिय क्यों नहीं है?
बिहार में नीतीश सरकार सुशांत मामले में जितना तत्पर या हड़बड़ी में दिखी, अब बिहार में ही हो रहे अपराधों पर उतनी मुखर या सक्रिय क्यों नहीं है?

पटना। बिहार में नीतीश कुमार इस बार बेमन से मुख्यमंत्री बने हैं। यह बात कल नीतीश कुमार ने खुद कबूल की थी। आज सुशील कुमार मोदी ने इसकी तस्दीक की। आज बीजेपी से राज्यसभा के सदस्य और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इस बात की तस्दीक कर दी। मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार ने विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री बनने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि बीजेपी का ही कोई मुख्यमंत्री बने। लेकिन उनके और जेडीयू नेताओं के यह समझाने पर कि आपके ही नेतृत्व में चुना लड़ा गया और बिहार की जनता आपको ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हुए।

बिहार में नीतीश कुमार इस बार बेमन से मुख्यमंत्री बने हैं। यह बात कल नीतीश कुमार ने खुद कबूल की थी। आज सुशील कुमार मोदी ने इसकी तस्दीक की।
बिहार में नीतीश कुमार इस बार बेमन से मुख्यमंत्री बने हैं। यह बात कल नीतीश कुमार ने खुद कबूल की थी। आज सुशील कुमार मोदी ने इसकी तस्दीक की।

अरुण जेटली की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए सुशील मोदी ने कहा कि अरुणा प्रदेश की घटना का बिहार में कोई असर नहीं पड़ेगा। बिहार में एनडीए अटूट है और रहेगा। सरकार अगले पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। दरअसल अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 6 विधायकों के बीजेपी के पाले में जाने के बाद माना यह जा रहा है कि बीजेपी और जेडीयू में कड़वापन आ गया है। इस कड़वापन को दूर करने के लिए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी प्रतिक्रिया दी थी कि अरुणाचल की घटना का बिहार में असर नहीं पड़ेगा।

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हालांकि दो दिनों तक चली जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान और बाद में भी पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने स्पष्ट कर दिया कि बीजेपी के साथ जेडीयू का गठबंधन महज बिहार में है। बिहार के बाहर जेडीयू का बीजेपी के साथ कोई गठबंधन नहीं है। दोनों दल चुनाव में आमने-सामने होंगे। फि हाल बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने का फैसला किया है।

नीतीश कुमार भी अरुणाचल की घटना से आहत हैं, लेकिन खुल कर कुछ बोलने से बच रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि नीतीश जो करते हैं, उसे पहले कहते नहीं। उनके मन में क्या चल रहा है, वह अपने ऐक्शन से ही जाहिर करते हैं। इसलिए अरुणाचल की घटना को सामान्य तरीके से देखने की जरूरत नहीं। संभव है कि नीतीश कोई बड़ा फैसला कर लें, लेकिन कब और कैसे, इसके बारे में उनके स्वभाव को देखते हुए पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।

इस बीच आरजेडी ने नीतीश पर डोरे डालने शुरू कर दिये हैं। एक प्रस्ताव आरजेडी की ओर से यह आया है कि नीतीश आरजेडी के साथ लौट आयें और तेजस्वी को मुख्यमंत्री बना कर खुद पीएम फेस बनें। कांग्रेस ने भी नीतीश को एनडीए छोड़ महागठबंधन के साथ आने का प्रस्ताव दिया है। कांग्रेस नेता अजित शर्मा ने कहा कि बीजेपी सेकुलर फेस नहीं है, इसलिए नीतीश कुमार को महागठबंधन के साथ आ जाना चाहिए। जाने-अजाने नीतीश ने विधानसबा चुनाव प्रचार के दौरान कह भी दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। इसलिए अंत भला तो सब भला। देखना है कि बिहार की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है।

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