बिहार-झारखंड के क्षेत्रीय दल भी बंगाल विधानसभा चुनाव में आजमाएंगे किस्मत

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बंगाल में अंतिम चरण के चुनाव में भी हिंसा नहीं थमी। सुरक्षा के व्यापक तामझाम के बावजूद बंगाल में आठवें चरण का मतदान भी शांतिपूर्ण नहीं रहा।
बंगाल में अंतिम चरण के चुनाव में भी हिंसा नहीं थमी। सुरक्षा के व्यापक तामझाम के बावजूद बंगाल में आठवें चरण का मतदान भी शांतिपूर्ण नहीं रहा।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। बिहार-झारखंड के क्षेत्रीय दल भी बंगाल विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकेंगी। जेडीयू, आजसू और जेएमएम ने तो संकेत भी दे दिये हैं। आरजेडी अभी उहापोह की स्थिति में है। बिहार में बीजेपी से तल्ख हुए रिश्तों के बाद जेडीयू ने राज्यों में होने वाले चुनाव में बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का सैद्धांतिक फैसला पहले ही ले लिया है। जेडीयू सूत्रों के मुताबिक बंगाल में 75 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में जेडीयू है। इसके लिए पार्टी ने बंगाल इकाई के लोगों के साथ बैठक भी की है।

आरजेडी की भी इच्छा बंगाल चुनाव में उतरने की है। लेकिन उसके साथ दिक्कत यह है कि वह महागठबंधन का स्वरूप बरकरार रखते हुए वाम-कांग्रेस गठबंधन के साथ जाये कि अकेले स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़े। आरजेडी नेता तेजस्वी यादल ने इसका फैसला राष्ट्रीय ध्यक्ष लालू प्रसाद पर छोड़ दिया है। हालांकि उन्होंने कहा है कि अगर उनकी पार्टी चुनाव में उतरती है तो वह उन्हीं दलों के साथ जाएगी, जो बीजेपी को हराने में सक्षम होंगे।

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बंगाल में बसे बड़ी तादाद में बिहारी समुदाय के लोगों को ध्यान में रख कर क्षेत्रीय दल इपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। झारखंड की क्षेत्रीय पार्टी आजसू ने भी अपने उम्मीदवार उतारने के संकेत दिये हैं। दरअसल झारखंडी मूल की पार्टियां आजसू, जेएमएम बंगाल के बांकुड़ा, पुरुलिया, झाड़ग्राम और उत्तर बंगाल के कुछ इलाकों में आदिवासी आबादी को ध्यान में रख कर अपने उम्मीदवार उतारने का मन बना रही हैं। इससे वे बीजेपी का विरोध भी कर सकेंगी और अपने सहयोगी दलों के साथ तालमेल भी बिठा सकेंगी।

बंगाल में विधानसभा की 294 सीटों के लिए चुनाव होना है। पहले से ही बीजेपी और तृणमूल में वहां घमासान मचा है। वाम मोरचा और कांग्रेस ने अलग गठबंधन बना लिया है। इस गठबंधन की कोशिश है कि वहां नये उभरते संगठन फुरफुरा शरीफ से तालमेल किया जाये, ताकि मुसलमानों के एक तिहाई वोट को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके। इसमें सबसे बड़ा संकट यह है कि फुरफुरा शरीफ ने ओवैसी की पार्टी AIMIM से परहेज करना चाहती हैं। वाम-कांग्रेस का मानना है कि ओवैसी बीजेपी के हितैषी हैं। जबकि ओवैसी ने फुरफुरा शरीफ से पहले ही तालमेल की बात कर मुसलमानों के वोट को ध्रुवीकृत करने का प्रयास शुरू कर दिया है।

ममता बनर्जी को भी तकरीबन एक तिहाई मुसलिम आबादी के वोटों पर भरोसा है। उन्होंने शुरू से ही मुसलिमपरस्ती की है। उन पर इसके आरोप लगा कर ही बीजेपी हिन्दू वोटों को ध्रुवीकृत करने का प्रयास कर रही है। यानी मुसलिम वोटों पर बंगाल की सियासत की दिशा अब तक तय होती आई है और इस बार इसका कैसा और कितना असर होगा, देखना दिलचस्प होगा।

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