बाबा साहब ने भांप लिया था कि भावी भारत का स्वरूप कैसा होगा

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डॉ. अंबेडकर के संपादन में निकले पाक्षिक ‘समता’ में सावरकर के उस पक्ष को तरजीह दी गयी है, जिसमें उन्होंने रोटी-बेटी के संबंध का समर्थन किया है।
डॉ. अंबेडकर के संपादन में निकले पाक्षिक ‘समता’ में सावरकर के उस पक्ष को तरजीह दी गयी है, जिसमें उन्होंने रोटी-बेटी के संबंध का समर्थन किया है।

बाबा साहब भीमराव अंबेदकर ने भांप लिया था कि भावी भारत का स्वरूप कैसा होगा। तभी तो उन्होंने कहा था- जातिभेद और धर्मभेद तो हमारे पुराने दुश्मन हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के लक्ष्य सामने रख कर जो नए राजनीतिक दल बने हैं और बनेंगे, वे हमारे पुराने दुश्मनों के साथ मिलने वाले हैं। पढ़ें, बाबा साहब के भाषण का एक अंश। यह वरिष्ठ पत्रकार निराला के सौजन्य से प्राप्त हुआ है।

  • भीमराव अंबेदकर

जिस समय मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया, उस समय सिंध के राजा दाहिर के सेनापतियों ने मोहम्मद बिन कासिम के दलालों से रिश्वतें लीं और हम तुम्हारे साथ नहीं लड़ेंगे यह स्पष्ट जवाब उन्होंने दाहिर को भिजवाया। भारत पर आक्रमण करने और पृथ्वीराज के खिलाफ युद्ध करने का निमंत्रण जयचंद ने मोहम्मद गौरी को दिया। जयचंद ने मोहम्मद गौरी को आश्वासन दिया कि इस कार्य में मैं स्वयं और सोलंकी खानदान के राजा आपकी मदद करेंगे।

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शिवाजी राजा हिंदुओं की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। उस समय मराठा सरदार और राजपूत राजा मुगल बादशाह की ओर से लड़ रहे थे। ब्रिटिश लोग सिख राजाओं को पराजित करने में लगे थे, उस समय सिखों का प्रमुख सेनापति गुलाबचंद शाह शांत हो गया था। उसने राजपूत राजाओं को ब्रिटिशों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

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1857 में भारत के काफी बड़े हिस्से में ​ब्रिटिशों की सत्ता के खिलाफ विद्रोह का झंडा फहराया गया। उस समय सिख लोग चुपचाप तमाशा देखते रहे। वे तब परायों की तरह विद्रोह का दृश्य देख रहे थे। भारत के इतिहास में ऐसी जो घटनाएं घटी हैं, उसे दुहराया तो नहीं जाएगा, इस बात से मन बेचैन हो उठता है।

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जातिभेद और धर्मभेद तो हमारे पुराने दुश्मन हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के लक्ष्य सामने रख कर जो नए राजनीतिक दल बने हैं और बनेंगे, वे हमारे पुराने दुश्मनों के साथ मिलने वाले हैं। इस बात को मैंने अच्छी तरह से समझ लिया है। इसलिए अपने देश का भविष्य कैसा होगा, इस बात की अधिक चिंता है। मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता कि भारत के लोग अपने दल की विचारधारा के बजाय अपने देश को ज्यादा महत्व देनेवाले हैं या अपने दल की विचारधारा को ज्यादा महत्व देंगे तो अपनी आजादी हमेशा के लिए खतरे में पड़ जाएगी।

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