प्रियंका महाराज को कभी मुंबई में फुटपाथ पर रहने की नौबत आयी थी

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प्रियंका महाराज जब मुंबई गई थीं, तब फुटपाथ पर रहने की नौबत आ गयी थी। अब इस सितारे की चमक ने संघर्ष गाथा को नजरअंदाज कर दिया है।
प्रियंका महाराज जब मुंबई गई थीं, तब फुटपाथ पर रहने की नौबत आ गयी थी। अब इस सितारे की चमक ने संघर्ष गाथा को नजरअंदाज कर दिया है।

पटना। प्रियंका महाराज जब मुंबई गई थीं, तब फुटपाथ पर रहने की नौबत आ गयी थी। अब इस सितारे की चमक ने संघर्ष गाथा को नजरअंदाज कर दिया है। यह अलग बात है कि वे खुद इसे नहीं भूल पायी हैं। अतीत ही अमूमन भविष्य की बुनियाद की रूपरेखा बनाता है। इसे वह बखूबी समझती हैं। शायद यही वजह है कि वे अब कामयाबी की सीढ़ियां दनादन चढ़ रही हैं।

जब सितारे चमकने लगते हैं तो उनकी संघर्ष गाथा किसी को नजर नहीं आती। आज हम आपको बताने जा रहे हैं बिहार मूल की भोजपुरी की चर्चित अभिनेत्री प्रियंका महाराज की संघर्ष गाथा। फिल्मों में काम कर के बड़ा कलाकार बनने का सपना तमाम लड़के-लड़कियां देखते हैं। कई कलाकारों का शुरुआती सफर बहुत ही मुश्किल भरा होता है, जिससे आने वाले लोगों को सीख भी मिल सकती है। इस के जरिए वे तमाम तरह की परेशानियों से बच सकते हैं। बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली प्रियंका महाराज के फिल्मी सफर की कहानी काफी मुश्किलों भरी रही, पर अब वे कामयाबी की राह पर हैं। जद्दोजहद के उस दौर में वे काफी परेशान थीं। उन्हें लग ही नहीं रहा था कि कामयाबी कभी मिलेगी भी।

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प्रियंका महाराज की मां टीचर थीं। अब वे नौकरी छोड़ कर बेटी के साथ रहती हैं। प्रियंका के पिता इंस्पेक्टर थे। पहले वे बेटी को फिल्म लाइन में नहीं भेजना चाहते थे, पर जब बेटी की जिद देखी तो मदद के लिए आगे बढ़े। उसे अपने मन की करने की छूट थी। आज वे भी खुश हैं, यह देख कर बेटी की जिद जायज थी।

अपने मुश्किल दिनों की यादें प्रियंका महाराज ने बातचीत के दौरान साझा की। वह बताती हैं कि पटना से वह सबसे पहले दिल्ली क्यों पहुंची थीं। उन पर ‘मिस इंडिया’ बनने का जुनून सवार था। डांस और माडलिंग उनकी हाबी थी। घर में किसी का कोई सहयोग नहीं था। वह बताती हैः  पापा तो कतई नहीं चाहते थे कि मैं फिल्म या माडलिंग लाइन में काम करूं। ऐसे में मैं पापा से छिप कर डांस सीखती थी।

मैंने कभी हार नहीं मानी। मैं अपनी कोशिश में लगी रही। ऐक्टिंग सीखने के लिए मैंने थिएटर किया। फिर टेलीविजन पर ‘बिग मैजिक’ पर ‘पुलिस फाइल’ सीरियल में काम करने का आफर मिल गया। इसके बाद ‘दूरदर्शन’ पर भी एक सीरियल किया। माडलिंग भी शुरू कर दी। सब ठीकठाक चल रहा था। इस बीच थोड़ा-सा मम्मी का सहयोग मिलने लगा। बाद में पापा ने भी विरोध करना बंद कर दिया।

प्रियंका महाराज बताती हैंः शुरुआती कामयाबी के बाद ऐसा लगा कि सब ठीक है। बिहार में भोजपुरी फिल्में बहुत चलती हैं। ‘निरहुआ’ का हीरो के रूप में बड़ा नाम है। फेसबुक पर एक लड़के से संपर्क हुआ। उसने खुद को ‘निरहुआ’ का भांजा बताया और मुझ से बोला कि वह सीरियल और फिल्म दोनों में काम दिला देगा। उसने मुझे दिल्ली बुलाया। मैं अपनी मां के साथ उसकी बात को सच मान कर दिल्ली चली आई। इसके पहले मुझे बिराज भट्ट के साथ फिल्म ‘जिद्दी’ का आफर मिला था। शूटिंग शुरू नहीं हो रही थी। पूरा एक महीना मैं अपनी मां के साथ दिल्ली में ही रही।

वह लड़का आया और बोला कि दिनेशजी ने मुझे भेजा है। उनके पास समय नहीं है। उसने आर्टिस्ट कार्ड बनाने के लिए 60 हजार रुपए मांगे। हम लोगों ने दे दिए। हमें लगा कि जब सीरियल में काम मिल जाएगा, तो यह पैसा वापस आ जाएगा। फिर सच सामने आया। हम लोग एक महीने तक वहां रहे, पर कोई सीरियल नहीं मिला। तब हमने सच पता करने की कोशिश शुरू की, तो पता चला कि वह लड़का दिनेशजी का भांजा नहीं है। मैं झांसे में आ गई थी।

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इस बीच मेरी मां की तबीयत खराब हो गई। मैं बहुत डर गई। फिर मुंबई में फिल्म करने का एक औफर मिला। हम लोग वहां से मुंबई चले आए। जोगेश्वरी इलाके में होटल में रहने लगे। वहां भोजपुरी के कुछ कलाकारों, प्रोड्यूसरों व डायरेक्टरों से मिली। ऐसे में 20 दिन बीत गए। हमारे पास पैसे खत्म हो गए थे। होटल वाले ने हमें निकाल दिया। वहां रहने-खाने को पैसा नहीं था।

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हम स्टेशन पर निराश बैठे थे। वहां पर कुछ लोगों से बात हुई। बड़ी मुश्किल से रहने के लिए होटल मिला। वहां रहते हुए मैं छोटे काम कर के पैसा कमाने लगी। इस बीच फिल्म ‘जिद्दी’ की शूटिंग शुरू हो गई। तब पैसा मिला। फिल्म ‘जिद्दी’ की शूटिंग के बाद पापा को सब कुछ बताया। तब से वे हमारा सहयोग करने लगे। फिर मुझे कई फिल्में मिलने लगीं। मैं फिल्मों के साथ डांस शो भी करने लगी। मेरी आने वाली फिल्मों में ‘नसीब’, ‘जान तोह पे लुटाइब’, ‘बनारसी बबुआ’, ‘इश्कवाले’ और ‘घूंघट में के बा’ खास हैं।

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यह पूछे जाने पर कि भोजपुरी फिल्में खुलेपन के लिए मशहूर हैं। आप पर किसी तरह के समझौते का दबाव तो नहीं पड़ा? इस पर प्रियंका महाराज बताती हैः मैं पैसे के लिए नहीं, अच्छे काम के लिए फिल्में करती हूं। अपनी पसंद की फिल्में करती हूं। इसी वजह से फिल्म ‘जिद्दी’ के बाद दूसरी फिल्मों के बीच समय भी लिया। मेरा मानना है कि हम लोग जो दिखाएंगे, वही लोग देखेंगे।  ज्यादा गंदा दिखाने से कामयाबी नहीं मिलती। थोड़ी-बहुत तड़क-भड़क तो ठीक है, पर फूहड़ता ठीक नहीं।

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