नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी व चेतन भगत के अजोब तर्क!

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नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी
नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी
  • सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी और अब चेतन भगत! ये दोनों बुद्धिजीवी चाहते हैं कि भारत सरकार भ्रष्टाचार पर कोई कार्रवाई ही न करे। चेतन भगत ने 30 जनवरी, 2020 के दैनिक भास्कर में लिखा है कि ‘बिल गेट्स ने मुझे बताया कि  मैं जानता हूं कि हमारे चैरिटी के काम में कुछ धन सही ढंग से इस्तेमाल नहीं होता। फिर भी अधिकांश उचित तरीके से इस्तेमाल हो रहा है, तो मैं नुकसान और चोरी स्वीकार करने को तैयार हूं।’’

चेतन भगत का आशय यह है कि ‘‘हम कम चैकीदार और अधिक भागीदार बन कर ही अपने देश को शानदार बना सकते हैं।’’ अपने लेख में चेतन भगत घुसपैठी बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ के भी पक्ष में हैं। दूसरी ओर नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी ने गत साल दैनिक हिन्दुस्तान से जो बातचीत की, उसका  एक अंश यहां प्रस्तुत है।

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‘भारत में भ्रष्टाचार अर्थव्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है। भ्रष्टाचार से लड़ना महंगा प्रयास है।’ अब जाकर पता चला कि इस देश के अनेक ‘‘भागीदार या अनजान बुद्धिजीवी’’ क्यों नरेंद्र मोदी से इतना नाराज हैं!

अब सवाल है कि क्या प्रतिभाशाली चेतन भगत बिल गेट्स की बात को समझ पाए? गेट्स ने तो कहा कि ‘‘जब तक अधिकांश उचित तरीके से इस्तेमाल हो रहा है, मैं कुछ नुकसान और चोरी स्वीकार करने को तैयार हूं।’’ क्या भारत में भ्रष्ट लोग सरकारी खजाने के मात्र ‘‘कुछ ही हिससे का नुकसान’’ करते रहे हैं?

आज भी नुकसान कर रहे हैं, उसका नमूना सांसद फंड है। इसे बनाए रखने वाली शक्तियां आज भी इतनी ताकतवर हैं कि प्रधान मंत्री मोदी भी उनके सामने लाचार हैं। वैसे कुल मिलाकर भ्रष्टाचार देश का कितना नुकसान करता रहा  है कि इसका अभी सिर्फ एक नमूना देखिए। मोदी सरकार ने कुछ साल पहले अचानक एक लाख शेल यानी खोखा कंपनियों के निबंधन एक साथ रद कर दिए और फिर भी उसके खिलाफ कोई कर्मचारी आंदोलन तक नहीं हुआ। क्योंकि उनमें कर्मचारी थे ही नहीं।

दरअसल वे  कंपनियां तो टैक्स चोरी के फर्जी धंधे में लगी हुई थीं। वैसे, ऐसी कंपनियों की कुल संख्या 3 लाख थी। जहां तक मुझे याद है, बाकी कंपनियों के धंधे भी बंद किए गए। क्या चेतन भगत को यह मालूम है कि 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने स्वीकारा था कि 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसे बिचैलिए लूट लेते हैं।

1988 में मधु लिमये ने कहा था कि ‘मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं।’’ 1998 में खुद मनमोहन सिंह ने कहा था कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’’ वे तब राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार पर जब भ्रष्टाचार के भीषण आरोप लगने शुरू हुए तो मनमोहन सिंह ने कहा कि यह सब मिलीजुली सरकारों की मजबूरियां हैं।

कुछ अन्य उक्तियां पढ़िए-

  • ‘भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।’- सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल, 5 अगस्त 2006।
  • ‘‘भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए।’’ –सुप्रीम कोर्ट, 7 मार्च 2007
  •  ‘‘भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।’’ –दिल्ली हाईकोर्ट, 9 नवंबर 2007
  •  ‘‘भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।’’ –एन.सी. सक्सेना, पूर्व सचिव, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय

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क्या चेतन भगत को मालूम है कि गमलों में खेती करके इस देश के अनेक बड़े कर चोर,जिनमें कुछ बहुत बड़े नेता भी शामिल हैं, अपने करोड़ों काला धन को आयकर से साफ बचा लेते हैं? दूसरी ओर, केंद्र सरकार का बजट कमी का होता है। देश के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में पैसे के अभाव में रूई व डेटाल तक नहीं है। अधिकतर सरकारी प्राथामिक स्कूलों में बैठने के लिए बेंच तक नहीं हैं।

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फिर भी  चेतन चाहते हैं कि करोड़ों घुसपैठियों को भारत सरकार अपने यहां रखकर खिलाए। फिर उनसे होने वाली अन्य समस्याओं को झेलने के लिए सुरक्षा पर खर्च करे। अभिजीत और चेतन के विचारों से तो यह लगता है कि इस देश के अनेक बुद्धिजीवी भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाइयों के कारण भी मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं। क्या भगत को मालूम है कि घुसपैठियों के कारण इस देश के कुछ जिले हिन्दू बहुल से मुस्लिम बहुल हो चुके हैं? और वहां के अब अल्पसख्यक बन चुके हिन्दुओं की हालत  पहले जैसी सामान्य नहीं रह गई है? कुछ साल पहले इंडियन एक्सप्रेस ने पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों से ऐसी कहानियां छापी थीं। पर उसके बाद मीडिया में सन्नाटा है।

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