जयप्रकाश जी ने कहा था- आग तो तुम्हारी कुर्सियों के नीचे सुलग रही है

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वर्ष 1974 की तारीख 5 जून. यही वह दिन था, जब जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने पटना के गांधी मैदान में दो शब्दों- संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था.
वर्ष 1974 की तारीख 5 जून. यही वह दिन था, जब जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने पटना के गांधी मैदान में दो शब्दों- संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था.

जयप्रकाश जी ने कहा था- आग तो तुम्हारी कुर्सियों के नीचे सुलग रही है। वह तारीख थी 5 जून, 1974। उसी दिन उन्होंने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। स्थान था पटना का गांधी मैदान।

संपूर्ण क्रांति दिवस पर विशेष

  • सुरेंद्र किशोर 
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर

बिहार आंदोलन के दौरान 5 जून, 1974 को पटना के गांधी मैदान से जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान करते हुए कहा था कि ‘‘यह संघर्ष केवल सीमित उद्देश्यों के लिए नहीं हो रहा है। उद्देश्य दूरगामी हैं। भारतीय लोकतंत्र को रीयल यानी  वास्तविक तथा सुदृढ़ बनाना है। जनता का सच्चा राज कायम करना है। समाज से अन्याय,शोषण आदि का अंत करना, एक नैतिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक क्रांति करना, नया बिहार बनाना और अंततोगत्वा नया भारत बनाना है।यह संपूर्ण क्रांति है।’’

तब के शासकों की ओर इंगित करते हुए जेपी ने यह भी कहा कि ‘‘किसी को कोई अधिकार नहीं है कि जयप्रकाश नारायण को लोकतंत्र की शिक्षा दे। यह पुलिसवालों का देश है? यह जनता का देश है। मेरा किसी व्यक्ति से झगड़ा नहीं है। हमें तो नीतियों से झगड़ा है। सिद्धांतों से झगड़ा है। कार्यों से झगड़ा है। चाहे वह कोई भी करे मैं विरोध करूंगा। यह आंदोलन किसी के रोकने से, जयप्रकाश नारायण के भी रोकने से, नहीं रुकने वाला है।

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कुर्सियों पर बैठते हो! आग तो तुम्हारी कुर्सियों के नीचे सुलग रही है। यूनिवर्सिटी-कालेज एक वर्ष तक बंद रहेंगे। सात जून से एसेम्बली के चारों गेटों पर सत्याग्रह होंगे। अब नारा यह नहीं रहेगा कि ‘विधान सभा भंग करो।’ नारा रहेगा- ‘विधान सभा भंग करेंगे।’ इस निकम्मी सरकार को हम चलने न दें। जिस सरकार को हम मानते नहीं, जिसको हम हटाना चाहते हैं, उसको हम टैक्स क्यों दें? हमें कर बंदी आंदोलन करना होगा।’’

आज भी कुछ लोग तंज कसते हुए यह पूछते हैं कि जेपी आंदोलन ने देश को क्या दिया? उसका संक्षिप्त जवाब यह है कि जेपी ने इमरजेंसी से देश को मुक्ति दिलाई। साथ ही, केंद्र में 1977 में मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनवाया। बिहार में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने। कोई भी खुले दिल-ओ-दिमाग वाला व्यक्ति आसानी से इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच का अंतर समझ सकता है। उसी तरह डा.जगन्नाथ मिश्र और कर्पूरी ठाकुर के बीच का अंतर समझना भी कठिन नहीं है। यानी, जेपी के आंदोलन के बाद दोनों जगहों में साफ-सुथरे नेतृत्व ने गद्दी संभाली।

देसाई और कर्पूरी पर भ्रष्टाचार व वंशवाद का कभी कोई आरोप नहीं लगा, जो भारतीय राजनीति की आजादी के बाद से ही सबसे बड़ी बुराइयां रहीं। 1990 में सत्ता में आए कुछ नेताओं को जेपी से जोड़ कर जो लोग जेपी आंदोलन को बदनाम करना चाहते हैं, वे मूल बात भूल जाते हैं। सन् 1990 के सत्ताधारी लोग बोफोर्स अभियान और मंडल आंदोलन के कारण सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे थे और वर्षों तक बने भी रहे, न कि जेपी आंदोलन के कारण।

हां, एक बात जरूर हुई। जेपी आंदोलन 1974 में शुरू हुआ और 1975 में ही इमरजेंसी लगा दी गई। 19 महीनों के लिए देश को जेल में बदल दिया गया। इमरजेंसी में जेल में ही जेपी की किडनी खराब हो गई या कर दी गई। यानी, जेपी को अपने अनुयायियों को संस्कारित करने का अवसर बहुत कम मिला। हां, संघर्ष वाहिनी के कुछ सदस्य जेपी के अधिक  करीबी थे। उनका संस्कार बेहतर था।

मूल आंदोलनकारी संगठन छात्र-युवा संघर्ष समिति के कुछ सदस्य भी संस्कारित थे, पर सभी नहीं। कई अनगढ़ थे। जेपी जेल में अस्वस्थ नहीं हुए होते तो 1977 के बाद भी अन्य युवकों को भी उसी तरह संस्कारित करते जैसा वे खुद थे। संस्कारित मतलब- ‘‘राजनीति सत्ता के लिए नहीं, सेवा के लिए होती है।’’

एक बात तो तय है कि खुद जेपी को सत्ता का कभी मोह नहीं रहा। केंद्र में सत्ता में भागीदार बनाने  का आफर जवाहरलाल नेहरू ने जेपी को दिया था। पर जेपी की कुछ कड़ी शर्तें थीं, जिन्हें मान लेना नेहरू के लिए तब संभव नहीं था। इसलिए बात नहीं बनी। याद रहे कि नेहरू और जेपी के बीच स्नेहपूर्ण संबंध था। उसी तरह का संबंध कमला नेहरू और प्रभावती जी के बीच था।

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