कोरोना मामले में नो पालिटिक्स, जानिए क्यों चर्चा में हैं ये खबरें

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झारखंड स्वास्थ्य सेवा के मार्च 2022 तक सेवानिवृत होने वाले चिकित्सकों को राज्य सरकार ने सेवा अवधि में विस्तार करने का निर्णय लिया है।
झारखंड स्वास्थ्य सेवा के मार्च 2022 तक सेवानिवृत होने वाले चिकित्सकों को राज्य सरकार ने सेवा अवधि में विस्तार करने का निर्णय लिया है।
  • श्याम किशोर चौबे
श्याम किशोर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार
श्याम किशोर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार

रांची। कोरोना मामले में नो पालिटिक्स नीति पर अमल करते हुए झारखंडी भाजपा नेताओं ने अपने-अपने आवास में बुधवार को एक दिवसीय उपवास अनशन किया। राज्य में झामुमो के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार है। भाजपा हमेशा सकारात्मक राजनीति करती आई है। ‘कोरोना’ प्रादेशिक अथवा राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक आपदा है। इस पर भाजपा कोई पालिटिक्स नहीं करना चाहती। राज्य में वह सरकार का सहयोग करना चाहती है। लेकिन कबतक? घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या? इसलिए आंतरिक अप्रवासी कामगारों और कोटा में रह रहे झारखंडी छात्रों और सब्जी उत्पादकों के नाम उसने दिन के दस से चार बजे तक अनशन किया।

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वह बेचारी इतनी सकारात्मक है, इतनी सकारात्मक है कि अपनी पिछली सरकार में तब के प्रबल विरोधी बाबूलाल मरांडी के दल जेवीएम के छह विधायकों का अपने में विलय कराकर भी कोई पालिटिक्स नहीं की थी। अब बाबूलाल पुनः भाजपाई हो गए हैं और अनशन पर वे भी बैठे। जब एक बड़े भाजपा नेता से पूछा गया कि चार महीने पहले तक रही आपकी मुकम्मल सरकार ने सब्जी उत्पादकों के लिए किस सप्लाई चेन की व्यवस्था की थी तो छूटते ही उन्होंने कहा, नो पालिटिक्स। नाम न लीजिए रघुराई सरकार की। भद्दी-सी एक गाली उचारते हुए उन्होंने राजफाश किया, उसने तो बेड़ा ही गर्क कर दिया। सबकुछ तेल में मिला दिया, वरना आज हम भी सरकार होते।

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तेल देखो, तेल की धार देखो

तेल की बात चली तो वैश्विक बाजार में क्रूड आयल की पाताल धंसती कीमत पर ध्यान गया। अपना ख्याल आया तो पता चला कि यहां तो अंगद के पांव की नाईं 70 रुपये लीटर के आसपास तक ही उस जमाने से खरीदना पड़ रहा है, जब इसके नाम पर कांग्रेस का सूपड़ा लगभग साफ कर दिया गया था। जब इस विषय पर एक कांग्रेसी नेता से बात की गई तो उनका कहना था, कोरोना देखें कि तेल देखें। पूछना ही है तो उनसे पूछिए, जिस महाराज के इशारे पर आप ताली-थाली बजाते हैं। एक बार फिर ताली-थाली बजाइए कि उनके जमाने में तेल मिल तो रहा है।

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राजरानी चाहें सेहत महकमा

सब्जी उत्पादकों की सेवा करते-करते राजरानी ऊब गई हैं। सुनते हैं कि उनकी नजर अब सेहत महकमे पर है। वहां समीकरण भी फिट बैठता है। बहुत दिन नहीं हुए जब सूबे में राजमाता और राजरानी के जलवे हुआ करते थे। राजरानी को अत्यंत गंभीर मामले से उबार कर राजमाता ने ‘नाम कमाया’ था। कालक्रम में वे रिटायर होकर अंधेरे में गुम हो गईं, लेकिन राजरानी को अभी काफी कुछ करना है। उनका खुद का, नहीं-नहीं उनके पतिदेव का, बन रहा बड़ा सा अस्पताल जांच के फंदे में फंस गया, वरना वे भी कोरोना-कोरोना खेल रहे होते। राजरानी को सेहत महकमा मिल जाए तो कुछ बात बने।

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