कोरोना जितना मारक है, उससे अधिक मौत का कारक बन रहा

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कोरोना जितना मारक है, उससे अधिक यह दूसरी तरह की मौत और परेशानी का कारक बन रहा है। कोई पैदल चलते दम तोड़ रहा, कुछ राह चलते वाहनों से कुचले जा रहे। कई ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।
कोरोना जितना मारक है, उससे अधिक यह दूसरी तरह की मौत और परेशानी का कारक बन रहा है। कोई पैदल चलते दम तोड़ रहा, कुछ राह चलते वाहनों से कुचले जा रहे। कई ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।
  • दूरदर्शी

कोरोना जितना मारक है, उससे अधिक यह दूसरी तरह की मौत और परेशानी का कारक बन रहा है। कोई पैदल चलते दम तोड़ रहा, कुछ राह चलते वाहनों से कुचले जा रहे। कई ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। ऐसी मौतों का आंकड़ा अगर एकत्र कर लिया जाये, तो यह कोरोना से हुई मौतों के मुकाबले थोड़ा ही आगे-पीछे होगा। इसलिए कि कुछ ही दिनों पहले आई खबरों में ऐसी मौतों की संख्या 100 से अधिक बतायी गयी थी।

मुंहमांगा-मनमाना टैक्सी किराया

अब जो ट्रेनों से लौट रहे हैं, उन्हें घर के करीब पहुंच कर घर तक पहुंचने के लिए मनमानी टैक्सी किराये से रोज दो-चार होना पड़ रहा है। 200-300 किलोमीटर के लिए टैक्सी वाले 10 से 20 हजार रुपये किराया मांग रहे हैं। सबसे खराब हालत यह है कि भूखे-प्यासे तमाम तकलीफें झेल कर हजार किलोमीटर दूर से जो लोग अपने सूबे पहुंच रहे हैं, उनके साथ अपराधी जैसा सलूक हो रहा है।

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लोगों में बढ़ रहा तनाव और गुस्सा

कोरोना काल में तनाव और गुस्सा भी तेजी से लोगों में बढ़ रहा है। अपराधों पर तो करीब-करीब अंकुश लग गया है, लेकिन अस्वाभाविक मौतों की संख्या बढ़ रही है। हाल ही में रांची में पढ़ाई कर रही पलामू की एक लड़की ने इसलिए आत्महत्या कर ली कि उसे लाक डाउन के कारण घर लौटने की उम्मीद नहीं दिख रही थी। गुस्से का आलम यह कि रांची के उलीडीही थाना इलाके में एक पिता ने अपनी 6 साल की बच्ची को इसलिए मार डाला कि उसने बिस्तर पर पेशाब कर दिया था।

मुनाफाखोरों ने बिगाड़ा घर का बजट

कोरोना के कारण जारी लाक डाउन में मुनाफाखोर व्यवसायियों ने लोगों के घरों का बजट बढ़ा दिया है। सामान्य दिनों में सामान की जो दर थी, उससे 15-20 फीसदी अधिक चुका कर लोगों को खरीदना पड़ रहा है। यह अलग बात है कि थोक में सामान के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन खुदरा व्यवसायी दाम बढ़ाने से बाज नहीं आ रहे। ऐसा इसलिए हो रहा कि आम आदमी की पहुंच थोक दुकानों तक नहीं है। लाक डाउन के कारण उन्हें गिनी-चुनी खुली दुकानों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

दुर्घटनाओं में जा रही मजदूरों की जान  

कोरोना जितना मारक है, उससे अधिक यह दूसरी तरह की मौत और परेशानी का कारक बन रहा है। कोई पैदल चलते दम तोड़ रहा, कुछ राह चलते वाहनों से कुचले जा रहे। कई ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।
कोरोना जितना मारक है, उससे अधिक यह दूसरी तरह की मौत और परेशानी का कारक बन रहा है। कोई पैदल चलते दम तोड़ रहा, कुछ राह चलते वाहनों से कुचले जा रहे। कई ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।

कोरोना के चलते हुए लाक डाउन के कारण हरियाणा से बिहार के लिए पैदल निकले 10 मजदूरों को यूपी की सीमा में एक बस ने कुचल दिया। इनमें 6 लोगों की मौत हो गयी। मरने वालों में 4 गोपालगंज के हैं। जो 4 घायल हैं, वे भी गोपालगंज के ही बताये जाते हैं। मुजफ्फरपुर से प्रवासी मजदूरों को लेकर कटिहार जा रही बस ट्रक से टकरा गई, जिससे 2 की जान चली गयी और 18 घायल हो गये। ट्रक पर चढ़ कर महाराष्ट्र से झारखंड लौट रहे बोकारो के एक मजदूर की मौत हो गयी। उसके और भी साथी ट्रक में सवार थे। वे लाश वहीं छोड़ भाग आए। इसी तरह महाराष्ट्र के नासिक से प्रवासी मजदूरों को लेकर चला एक ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे साहेबगंज (झारखंड) के एक मजदूर की मौत हो गयी और 2 गंभीर रूप से घायल हैं।

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प्रवासियों का दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ रहा

कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों का दुर्भाग्य इतने पर पीछा नहीं छोड़ता। जो किसी तरह पहुंच जा रहे, उन्हें अपने सूबे में भी अपराधी जैसा समझा जा रहा है। कल ही इटखोरी के 30 मजदूर महाराष्ट्र से किसी तरह रांची तो पहुंच गये, लेकिन उन्हें कोरोना का संदिग्ध मरीज मान कर चार युवकों ने बुरी तरह पीट दिया। जो गांवों तक पहुंच गये हैं, उन्हें अपने भी अछूत समझने लगे हैं।

कोरोना के कारण दूसरी बीमारियों से मौतें बढ़ेंगी

कोरोना के कारण मौतों के और भी दरवाजे खुल रहे हैं। हेल्थ सिस्टम में इस असंतुलन का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यूनिसेफ का अध्ययन है कि 118 देशों में हेल्थ सिस्टम कमजोर पड़ा है। इनमें भारत-पाकिस्तान समेत 10 देशों में यह खतरा सर्वाधिक है। सामान्य दिनों में रोजोना इन देशों में 13500 बच्चों की मौत होती थी। कोरोना के कारण यह संख्या 19500 होने की आशंका है। यानी बाल मृत्यु की दर में 6000 की बढ़ोतरी का अनुमान है। माताओं पर भी इसका खराब असर पड़ रहा है। सामान्य दिनों में माताओं की मौत रोजाना औसत मृत्यु दर 792 थी, जो कोरोना के कारण बढ़ कर 1104 होने का अनुमान है। यानी 312 की बढ़ोतरी की आशंका है।

बुजुर्गों के लिए शामत साबित हो रही कोरोना 

कोरोना को लेकर हुए लाक डाउन में बुजुर्गों पर भी शामत आई है। जर्नल आफ अमेरिकन जेरियाट्रिक सोसाइटी में प्रकाशित स्टडी में बताया गया है कि लाक डाउन में बूढ़ों की नींद उड़ा जाएगी। याददाश्त भी कमजोर होने का खतरा है। स्टडी में दिखे खतरों के मद्देनजर नीति आयोग ने गाइडलाइंस जारी किये हैं। इसमें पहली सलाह यह है कि उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का सही मायने समझाया जाये। दूर हैं तो परिवार के लोग उनसे नियमित बात करें। उन्हें डिप्रेशन में जाने से बचाना बहुत जरूरी है।

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