कोरोना के बहाने बिदेेसिया की याद- अंखियां से दिन भर गिरे लोर ढर-ढर

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कोरोना काल में न सिर्फ जरूरी कामकाज छप पड़ गये हैं, बल्कि शादी-विवाह और प्रणय संबंधों पर इसने चोट पहुंचायी है।
कोरोना काल में न सिर्फ जरूरी कामकाज छप पड़ गये हैं, बल्कि शादी-विवाह और प्रणय संबंधों पर इसने चोट पहुंचायी है।

कोरोना के बहाने बिदेसिया और इसके रचनाकार भिखारी ठाकुर को लेखक ने कुछ इस तरह याद किया है- अंखियां से दिन भर गिरे लोर ढर-ढर। कोरोना काल में न सिर्फ जरूरी कामकाज ठप पड़ गये हैं, बल्कि शादी-विवाह और प्रणय संबंधों पर इसने चोट पहुंचायी है। लीजिए, पढ़िए कोरोना डायरी की 9वीं श्रृंखलाः

कोरोना डायरी: 9                     

डा. संतोष मानव

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डा. संतोष मानव
डा. संतोष मानव

सकारात्मक सोच का जादू, एक विदेशी लेखक की किताब है। उसमें बताया गया है कि अच्छा-अच्छा सोचने से मन-मिजाज तंदुरुस्त रहता है। विकास के नए-नए द्वार खुलते हैं। इसलिए कोशिश रहती है कि सोच सकारात्मक रहे। नकारात्मक विचार मन में आए ही नहीं।  पर क्या कीजिएगा, अनेक सुर्खियां, सूचनाएं दिल तोड़ देती हैं। ऐसे में हरियर मन पीयर हो जाता है। नाश्ते के टेबल पर बैठे देख रहे थे- सेना की पुष्प वर्षा। कोरोना अस्पतालों पर पुष्प वर्षा। श्रीनगर, दिल्ली, भोपाल—–। मन गदगद् हो गया। अच्छा है कोरोना वारियर्स का सम्मान होना चाहिए।

कहीं आना-जाना है नहीं। भरपूर आराम के दिन चल रहे हैं। सोचा कुछ पढ़-लिख लें, लेकिन नाश्ता कुछ हैवी था। इसलिए सुस्ता लिए, सुस्ताए क्या, सो ही गए। पूरे दो घंटे। और जब भोजन के लिए बैठे, तो दुखी हो गए। श्रीनगर में आतंकवादियों से मुठभेड़ में एक कर्नल सहित पांच के शहीद हो जाने की सूचना थी। मन दुखी कैसे न होता?  इसलिए हे पार्थ! काल परिस्थितियों के अनुसार मन की दशा होती है। अपना बहुत जोर नहीं चलता।

इस कोरोना काल में पहली दफा तो दिल टूटा नहीं है।  इस जमाने में इस कोरोना ने कई बार और कितने  दिल तोड़े, हिसाब नहीं है!  कितने को तन्हाइयों में छोड़ा, यह जानना भी संभव नहीं। लाखों को मोहब्बत इन वेटिंग में रख दिया है, इसकी भी गिनती नहीं है।  बड़ा बेदर्द है कोरोना- बेमुरव्वत। सुबह-सुबह नाश्ते के टेबल पर जो कहानी सुनी, उसने हिला दिया था। एक नवविवाहिता का पति शादी के पांच दिन बाद ही ड्यूटी पर विदेश चला गया। वादा था कि जल्द से जल्द वीजा आदि का प्रबंध करके पत्नी को भी ले जाएगा। जाते ही कोरोना काल आ गया, हवाई सेवा बंद। अब पति विदेश और पत्नी यहाँ। इसलिए कहा कि कोरोना बड़ा बेदर्द है। शुक्र है कि संचार के माध्यम तेज हो गए हैं, वाट्सएप, वीडियो काल से बातचीत हो  जाती है। साठ-सत्तर का दशक होता तो बिदेसिया और बटोहिया की मदद लेनी पड़ती।

बिदेसिया का नाम सुना है आपने? नहीं सुना, नहीं जानते तो जानिए। बिदेसिया भोजपुरी बोली में संगीतमय लोकनाट्य है। लेखक हैं बिहार के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर। बिदेसिया की संगीतमय प्रस्तुति के समय दर्शकों का रोना-बिलखना  सामान्य बात है। बिदेसिया मतलब? नायिका का पति आजीविका के लिए कोलकाता गया है। बहुत दिनों से उसकी कोई सूचना नहीं है। नायिका आजीविका के लिए हमेशा कोलकाता आने-जाने वाले एक यात्री यानी बटोहिया के जरिए संवाद भेजती है। यही कथाभूमि है बिदेसिया की। बिदेसिया के हर गीत पर दर्शकों की आंखों से झर-झर आंसू बहते हैं- करि के गवनवां भवनवां में छोड़ के, अपने परइलअ पुरबवा बलमुआँ। अंखियां से दिन भर गिरे लोर ढर-ढर। बटिया जोहत दिन बीतेला बलमुआँ….यानी आप मायका से ससुराल ले आए। घर में रखकर पूर्व दिशा में चले गए। आपके वियोग में दिन भर आंखों से आंसू बहते हैं। पूरा दिन आपके इंतजार में बीतता है—-।

इस कोरोना ने संयोग को वियोग में बदल दिया है। एक अनुमंडलाधिकारी हैं, उनका विवाह एक न्यायाधीश से तय हो गया था। अब कोरोना के कारण विवाह स्थगित हो गया है। इसलिए कहा कि मोहब्बत इन वेटिंग की संख्या बढ़ गई है। वियोग, विवाह स्थगन ही नहीं, विवाह की बातचीत भी पहले राउंड के बाद ठहर जाने की सूचनाएं हैं। आवागमन ही रोक दिया गया है, तो बात आगे कैसे बढ़े?

अक्षय तृतीया पर जबरदस्त मुहूर्त होता है। चारों तरफ बैंड-बाजा-बारात की धूम रहती है। इस बार कोरोना बंदी के कारण विवाह ही नहीं हुए। नवयुवक-नवयुवतियों के श्राप से मरेगा कोरोना? मरना तो है ही। ऐसे क्रूर  वायरस को मर ही जाना चाहिए। जनवरी से जून के बीच विवाह के 45 विवाह मुहूर्त में से अधिकतर खाली गए और जाएंगे। बैंड-बाजा- बारात का दुश्मन कोरोना! सोचता हूं कितने युवक-युवतियों के दिन- आओगे जब वो साजना, अंगना फूल खिलेंगे, बरसेगा सावन झूम-झूम के, दो दिल ऐसे मिलेंगे। —गाते हुए गुजर रहे होंगे।  इरशाद कामिल के इस गीत को अनेक गवइयों ने अपने तरह से गाया है। जब वी मेट नामक फिल्म के लिए इसे राशिद खान ने गाया था। यह काफी लोकप्रिय हुआ था। एक बार फिर यह लोकप्रिय है।

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झारखंड से आई एक खबर ने भी साठ-सत्तर के दशक की याद दिला दी, जब बारात  कई-कई दिनों तक लड़की वालों के आतिथ्य का सुख उठाती थी। मार्च में उत्तर प्रदेश से एक बारात झारखंड आई थी। विवाह के दिन ही लाक डाउन हो गया। बाराती पंद्रह दिन लड़की वालों के यहां फंसे रहे। सोचिए, उस लड़की के पिता की क्या हालत हुई होगी?              शादी-विवाह ही नहीं, धार्मिक-परंपराएं भी इस कोरोना के कारण कदाचित पहली बार स्थगित हुईं या टूटी हैं।  वैष्णव देवी यात्रा बीच में रोकनी पड़ी। रामनवमी का त्यौहार फीका गया। न शोभा यात्रा निकली न तलवारें चमकीं। हजयात्रा स्थगित हुई। पुरी रथयात्रा पर संकट के बादल बरकरार हैं। तमाम मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा-गिरजाघर बंद हैं। जुमा की नमाज भी घर में पढ़ी जा रही हैं। केदारनाथ के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि मंदिर के पट खुलते समय वहां के रावल उपस्थित नहीं थे। रावल बड़ा महत्वपूर्ण पद है। रावल की देखरेख में ही मुख्य पुजारी पूजा करते हैं। छह माह जब मंदिर बंद होता है, तो भगवान का मुकुट रावल ही धारण करते हैं।  देश भर के मेला-उत्सव कोरोना के कारण रोकने पड़े। जयपुर का गणगौर मेला, मेवाड़ उत्सव—-। लंबी सूची है।

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इस कोरोना के कारण जीना दूभर हो गया है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि कोरोना बड़ा हठी है। यह जल्दी जाएगा नहीं। हमें भी इसके साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए, नहीं तो जीवन, जीवन नहीं, जेल हो जाएगी।  अच्छा है, अब बंदी में कुछ-कुछ ढील मिलेगी- 40 दिनों के बाद। थोड़ा ही सही, खुलेपन का एससास होगा। अब नेटफ्लिक्स पर सकारात्मकता का डोज देने वाली फिल्म देखेंगे। मिलेंगे कल। लो, खाक सकारात्मकता, देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या तेरह सौ पार कर गई है- हे राम!

(लेखक दैनिक भास्कर, हरिभूमि, राज एक्सप्रेस के संपादक रहे हैं)

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