काजू जहां 30 से 40 रुपये किलो बिकता है, वह है झाऱखंड का नाला

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काजू जहां 30 से 40 रुपये किलो बिकता है, वह है झाऱखंड के जामताड़ा इलाके का एक प्रखंड नाला। झारखंड में काजू की खेती के लिए उपयुक्त जमीन है।
काजू जहां 30 से 40 रुपये किलो बिकता है, वह है झाऱखंड के जामताड़ा इलाके का एक प्रखंड नाला। झारखंड में काजू की खेती के लिए उपयुक्त जमीन है।
  • प्रेम शंकर पाठक

जामताड़ा। काजू जहां 30 से 40 रुपये किलो बिकता है, वह है झाऱखंड के जामताड़ा जिले का एक प्रखंड नाला। झारखंड में काजू की खेती के लिए उपयुक्त जमीन है। कम खर्च पर काजू की खेती कर लोग अच्छी कमाई कर सकते हैं। सरकार को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। जामताड़ा जिले के नाला प्रखंड में इसके बागान और बाहर से आने वाले ग्राहकों को देख कर यही लगता है कि खाली पड़ी सरकारी जमीन पर काजू के बागान लगाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा सकता है।

नाला प्रखंड के डाड़र मौजा एवं भंडारकोल पहाड़ी से सटी जमीन पर लगे काजू बागान बड़े पैमाने पर राजस्व प्राप्ति का जरिया बन सकते हैं। 90 के दशक में तसर वन प्रमंडल, देवघर द्वारा वृहद तौर पर लगाए गए काजू के बागान को प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है। प्रशासन की लापरवाही से स्थानीय लोगों के जिम्मे इसकी सुरक्षा टिकी है। ज्ञात हो कि 90 के दशक में डाड़र एवं भंडारकोल मौजा के दाग संख्या 1757 स्थित लगभग 30 एकड़ जमीन में करीब दस हजार एवं 2007-08 में वन प्रमंडल जामताड़ा द्वारा 49 एकड़ रकबा में 12 हजार पौधे लगाये गए थे।

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दो दशक पहले लगाये गए पौधे पेड़ बन कर सालाना लाखों का फल देने लगें हैं, जो आसपास के चंद व्यवसायियों एवं स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का जरिया बना हुआ है। गौरतलब है कि स्थानीय लोगों द्वारा काजू फल को घरेलू विधि के प्रोसेस किया जाता है। हालांकि ग्रामीणों द्वारा एकत्रित किए गए कीमती काजू के बीजों को पेशेवर व्यवसायी साग-सब्जी की कीमत पर महज 30 से 40 रूपये प्रति किलो की दर से खरीद कर ले जाते हैं। प्रसंस्कृत काजू का थोक बाजार मूल्य लगभग 5 से 6 सौ रूपये किलो है। पेड़ पर फल आते ही क्षेत्र के लोग काजू बागान से फल तोड़ कर मुल्यवान काजू फलों की बर्बादी भी करते हैं।

कई दफा मीडिया के माध्यम से उपेक्षित बागान के डाक को लेकर प्रयास किए गए। 2011-2012 में तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी जयवर्द्धन कुमार के समय उपायुक्त के निदेशानुसार उक्त काजू बागान के डाक या सैरात बंदोबस्ती के लिए आवश्यक प्रतिवेदन जिला कार्यालय को सुपुर्द किया गया था। डाक संबंधी प्रक्रिया जल्द प्रारंभ करने को लेकर निकटस्थ डाड़र और केवलजुड़िया गांव में समिति बनाने का कार्य भी आरंभ किया गया था। लेकिन जटिल प्रक्रियाओं में यह उलझ कर रह गया। और इस तरह काजू फायदे के सौदे में बदल नहीं सका।

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नाला के पूर्व प्रखंड विकास पदाधिकारी प्रशांत लायक एवं जयवर्धन कुमार द्वारा डाक एवं सैराती बंदोबस्ती को लेकर प्रयास किए गए थे। आखिरकार तत्कालीन उपायुक्त के दबाव पर वर्ष 2015 में बीडीओ ज्ञान शंकर जायसवाल द्वारा डाक एवं सैराती बंदोबस्ती की गई। लेकिन डाक की रकम अपेक्षाकृत काफी कम थी। लेकिन तीन वर्षों की डाक अवधि में काजू की खेती से संबंधित तकनीकी जानकारी के अभाव में डाक प्राप्तकर्ता ने डाक एक वर्ष पहले ही 2020 में छोड़ दिया। फिर आनन फानन में दोबारा डाक कर औने-पौने रकम पर डाक कर दिया गया।

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झारखंड अलग राज्य बनने के लगभग दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद उद्योग विहीन नाला प्रखंड क्षेत्र में काजू की खेती रोजगार का एक कारगर साधन बनकर लोगों का आर्थिक स्तर उठाने में सक्षम है। बागान में पेड़ से काजू तोड़ने सहित रखरखाव के कार्यों में स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। काजू बागान की समुचित देखभाल प्रदान करने से प्रखंड क्षेत्र के किसान भी इसकी खेती करने को लेकर प्रेरित होंगे। इससे बेकार पड़ी सरकारी एवं निजी बंजर जमीन का बेहतर उपयोग होगा। साथ हीं प्रखंड में प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना से भी लोग अधिक से अधिक मात्रा में काजू की खेती करने को प्ररित होंगे। प्रशासनिक उदासीनता के कारण किसान पारंपरिक खेती का विकल्प नहीं तलाश पा रहे हैं।

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