इंडियन डेमोक्रेटिक फ्रंट व AIMIM को ले कांग्रेस, लेफ्ट व TMC चिंतित

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बंगाल में अंतिम चरण के चुनाव में भी हिंसा नहीं थमी। सुरक्षा के व्यापक तामझाम के बावजूद बंगाल में आठवें चरण का मतदान भी शांतिपूर्ण नहीं रहा।
बंगाल में अंतिम चरण के चुनाव में भी हिंसा नहीं थमी। सुरक्षा के व्यापक तामझाम के बावजूद बंगाल में आठवें चरण का मतदान भी शांतिपूर्ण नहीं रहा।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। इंडियन डेमोक्रेटिक फ्रंट व AIMIM ने कांग्रेस, लेफ्ट व टीएमसी की चिंता बढ़ा दी है। अब्बास सिद्दीकी की पार्टी है इंडियन डेमोक्रेटिक फ्रंट। बंगाल विधानसभा चुनाव में अपना गढ़ बचाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस पर नरम रुख अपनाना चाहता है। यह सबको मालूम है कि मालदा, मुर्शिदाबाद व उत्तरी 24 परगना के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस का थोड़ा-बहुत संगठन बचा हुआ है। कांग्रेस नेता अधीर चौधरी को यह भी पता है कि ओवैसी और अब्बास सिद्धकी जिस तेजी से बंगाल में अपना संगठन विस्तार कर रहे हैं, भाजपा के कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ मुसलमानों को अपने तरफ खींच रहे हैं, उससे कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जाएगा।

बंगाल कांग्रेस नेतृत्व को यह भी पता है कि  बदली परिस्थितियों में अगर वह तृणमूल के खिलाफ खुलकर बोलेगा तो ममता बनर्जी भी  अपनी प्रशासनिक क्षमता से कांग्रेस का फन कुचलने की कोशिश करेंगी। इस दोतरफा मार से कांग्रेस पिछली बार जीती 44 सीटों में से कितनी सीटों पर अपना अस्तित्व बचा पाएगी, वह कहना मुश्किल है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस नेता अधीर चौधरी ने विक्टोरिया कांड पर खुलकर ममता बनर्जी के पक्ष में भाजपा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।

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सूत्रों से मिली खबरों के मुताबिक बंगाल की इस परिस्थिति को जानते हुए केंद्रीय नेतृत्व भी  ममता के खिलाफ ज्यादा कुछ बोल नहीं रहा। अब सवाल यह पैदा होता है कि कांग्रेस खुलकर तृणमूल कांग्रेस को सपोर्ट क्यों नहीं कर रही है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी ने पिछले 5 साल में जिस तरह कांग्रेस के 20 विधायकों को बाहुबल और पैसे के बल पर अपनी तरफ खींच लिया,  इससे कांग्रेस में तृणमूल को लेकर काफी असंतोष है।

वाममोर्चा के साथ सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस में खींचतान अब भी चल रही है। सोमवार को कांग्रेस व लेफ्ट  के नेता एक बैठक में शामिल हुए। इसमें तय हुआ कि पिछली बार जिन सीटों पर जिसकी जीत हुई थी, वे सीटें उनके पास ही रहेंगी। कांग्रेस ने 44 व लेफ्ट ने 33 सीटों जीत दर्ज की थी। इन सीटों पर कोई परिवर्तन नहीं होगा। बाकी सीटों पर हिस्सेदारी अगली बैठक में तय की जाएगी। सोमवार की बैठक में कांग्रेस नेता अधीर चौधरी मौजूद नहीं थे। मालूम हो कि पिछली बैठक में अधीर चौधरी ने 130 सीटों पर कांग्रेस का दावा ठोका था। लेफ्ट की ओर से इस दावे को नहीं मानने पर अधीर चौधरी गुस्से में आ गए थे और बैठक से निकल गए।

सूत्रों से मिली खबरों के मुताबिक अभी भी लेफ्ट व कांग्रेस  अब्बास सिद्दीकी के इंडियन डेमोक्रेटिक फ्रंट से गठबंधन का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सारा पेंच AIMIM पर पर फंसा हुआ है। कांग्रेस व लेफ्ट AIMIM को इस गठबंधन में रखना नहीं चाहते। राज्य में अगली सरकार किसकी बनेगी, यह पूरी तरह मुस्लिम मतों पर निर्भर है। मुस्लिम वोट एकजुट रहने पर  नतीजा कुछ अलग होगा। मुस्लिम मतों को बंटने से  नतीजा रोमांचक होगा। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वे पार्टियां होंगी, जो मुस्लिम मतों पर ज्यादा निर्भर करती हैं।

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आंकड़ों को देखा जाए तो राज्य में 20% से ज्यादा मुस्लिम मत हैं। ऐसे सीटों की संख्या 144 है, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। पिछले 2016 के विधानसबा चुनाव में राज की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को 294 सीटों में से 211 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इनमें 85 सीटें ऐसी थीं, जो मुस्लिम बहुल इलाकों की हैं। लेफ्ट और कांग्रेस ने मिलकर 77 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिनमें 39 सीटें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की थीं। इसके अलावा भाजपा 3 सीटों पर जीती थी, जिनमें एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। 2019 के लोकसभा चुनाव में  तृणमूल की मुसलमान मतों पर निर्भरता काफी बढ़ गयी थी। तृणमूल 163 सीटों पर आगे रही, जिनमें से 92 ऐसी हैं, जहां मुसलमान मतदाताओं का प्रभाव बहुत ज्यादा है। भाजपा 122 सीटों पर आगे रही, जिनमें 24 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमानों की संख्या अधिक है और कांग्रेस और लेफ्ट गठजोड़ को 9 सीटों पर बढ़त मिली, जिनमें 9 सीटें मुस्लिम प्रभावित इलाकों में थीं। यही वजह है कि इंडियन डेमोक्रेटिक फ्रंट व AIMIM को लेकर सभी बीजेपी खुश है तो बाकी दल चिंतित हैं।

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