आरजेडी के पोस्टर खोल रहे हैं नीतीश कुमार के सुशासन की पोल

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आरजेडी के नेता राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव ने पोस्टर वार से नीतीश के सुशासन को दी चुनौती
आरजेडी के नेता राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव ने पोस्टर वार से नीतीश के सुशासन को दी चुनौती
पोस्टर वार में जेडीयू की ओर से जारी पहला पोस्टर, जो विवादों में उलझ गया
पोस्टर वार में जेडीयू की ओर से जारी पहला पोस्टर, जो विवादों में उलझ गया

पटना। आरजेडी के पोस्टर नीतीश कुमार के सुशासन के दावे की पोल खोल रहे हैं। पोस्टर वार की शुरुआत नीतीश की पार्टी जेडीयू ने सबसे पहले की थी, जो विवादों में फंस गया। 2015 के चुनाव में नीतीश के लिए बना पोस्टर काफी चर्चित रहा, पर इस बार जेडीयू के पहले ही पोस्टर पर छीछालेदर शुरू हुई। फिर दूसरा पोस्टर जारी कर जेडीयू ने इसकी भरपाई की थी। तीसरे पोस्टर में जेडीयू ने लालू-राबड़ी  के 15 साल और नीतीश के शासन के 15 साल की तुलना की थी। इसके बाद दोनों ओर से पोस्टर वार परवान चढ़ने लगा।

आंकड़ों के हवाले से आरजेडी ने नीतीश को घेरने की कोशिश की है
आंकड़ों के हवाले से आरजेडी ने नीतीश को घेरने की कोशिश की है

आरजेडी पोस्टर वार में शुरुआत में भले ही पिछड़ गया था, लेकिन अब वह आगे निकलता दिख रहा है। आरजेडी के पोस्टर में नीतीश के सुशासन के घोटालों की लंबी फेहरिश्त दी गयी है। इसमें सृजन घोटाले से लेकर मेधा (टापर) घोटाले तक का जिक्र है। सरकारी आंकड़ों के हवाले से बिहार के विकास के नीतीश के दावे की पोल खोली गयी है।

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नीतीश के सुशासन को मुंह चिढ़ाता आरजेडी का यह पोस्टर
नीतीश के सुशासन को मुंह चिढ़ाता आरजेडी का यह पोस्टर

इन पोस्टरों में दर्ज बातें लोगों के दिमाग पर असर कर रही हैं। इससे आरजेडी अपने पक्ष में हवा बना पायेगा कि नहीं, यह कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तो तय है कि लोगों के दिमाग से उतर चुके इन घोटालों-घपलों का असर नीतीश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

नीतीश के शासन में घपलों-घोटालों की लंबी फेहरिश्त आरजेडी ने जारी की है
नीतीश के शासन में घपलों-घोटालों की लंबी फेहरिश्त आरजेडी ने जारी की है

नीतीश ने दो दिन पहले ही कार्यकर्ता सम्मेलन में दावा किया था कि उनके शासन में स्वास्थ्य व्यवस्था काफी सुधरी है। पहले स्वास्थ्य केंद्रों पर गिने-चुने मरीज ही पहुंचते थे, लेकिन अब उनकी संख्या बेशुमार हो गयी है। हालांकि सच्चाई इसके पलट है। बिहार के स्वास्थ्य महकमे की हालत काफी खराब है। हाल ही में नीति आयोग ने 23 पैमानों पर आधारित वार्षिक स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया तो इसमें बिहार सबसे निचले पायदान पर खड़ा दिखा। बिहार में 2015-16 के मुकाबले 2017-18 में स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे ज्यादा गिरावट पायी गयी है। ऐसी स्थिति तब हुई है, जब राज्य और केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भाजपा कोटे के हैं। दोनों बिहार के ही हैं। मंगल पांडेय को बिहार की कमान मिली है तो अश्विनी चौबे केंद्र सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री हैं।

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बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल को समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है। लोगों को अपनी बीमारी पर जितना खर्च करना पड़ता है, उससे हर साल 4 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा से नीचे चले जाते हैं। बिहार में प्रतिव्यक्ति स्वास्थ्य सेवा पर ₹450 खर्च होते हैं, वही उत्तर प्रदेश में ₹890 खर्च होते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर सर्वाधिक खर्च हिमाचल प्रदेश की सरकार करती है, जहां प्रतिव्यक्ति ₹2500 का प्रावधान है। यानी प्रतिव्यक्ति ₹450 के खर्च को ही आधार मानें और हिमाचल के प्रावधान से तुलना करें तो बिहार में 5 गुना अधिक रकम इलाज पर लोगों को अपनी जेब से खर्च करनी पड़ती है। इतना ही नहीं, आंकड़े बताते हैं कि बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। ऐसे में बिहार में जिसकी भी सरकार बने, उसे सर्वाधिक ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं पर देना होगा।

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