लघु कथा- दरकती दीवारें

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नेमतपुर में फज़ीर की अज़ान के साथ खुशियों ने डेरा डाल दिया। पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद की नमाज़ अता की जाएगी। भुनी जाती सेवईयां भीनी-भीनी महक दे रही हैं। रंग-बिरंगे कपड़ों में बच्चे बड़े मोहक लग रहे हैं।ईदगाह भी इन नन्हें नमाजियों के खैरमक़दम में बेकरार-सा हुआ जाता है। अतर व खुशबू ने माहौल को और मादक बना दिया है। दिरहम,दीनार की दरियादिली यहाँ नहीं तो और कहाँ ?
बरकत हुसैन साहब ! गांव के नामचीन शख्शियत। अल्लाह तबारक व ताला ने तमाम नेमतों से नवाज़ा। तीन बेटों और दो बेटियों से भरा परिवार। नेहायत ही शरीफ़ बीबी। इलाके में ईज़्ज़त और पंचायत में प्रतिष्ठा,क्या नहीं दिया मौला ने ? लेकिन अफशोष, आज दोनों बिस्तर पर हैं। बुआ ने कई बार कोशिश की,लेकिन कोई उठने को तैयार नहीं।और,फिर उठे भी तो क्या करे ? इटली से इंजीनियर बेटे ने आने से साफ मना कर दिया। ज़िगर के टुकड़े कहे जाने वाले सबसे छोटे बेटे ने हाल ही में अमरीकी जॉब लिया है,लिहाज़ा जबतक ग्रीन कार्ड होल्डर हो न जाता,उसका आना मुमकिन नहीं। बेटियां ब्याही जा चुकी हैं,अब वे अपने घर की ज़ीनत हैं।रहा मंझला,तो वह चाह कर भी घर की देवड़ी पार नहीं कर सकता। अंतरजातीय विबाह क्या किया,हुसैन साहब की नज़रों से गिर गया। पंजाब के फारम में मुंशीगिरी करता है।दौलतमंद बाप का बेटा गुरबत में ज़िन्दगी बशर करता है। गाहे बगाहे संगी साथियों से अब्बू-अम्मी की खैरियत लेता रहता है। अम्मी गुज़री रात जब नमाज़ से फ़ारिग हो दुआ के लिए हाथ उठाई तो दो बूंद आंसू मंझले के लिए भी हथेलियों पर गिरे थे। बेचारा किस हाल में होगा ? बेटियों के लिए कपड़े ख़रीद भी पाया होगा कि नहीं ? काश,उसके अब्बू मान जाते। इन्हें तो मरे बेटे का मुंह तक देखना गंवारा नहीं।अब ऐसे में ईद की क्या खुशी ?
महावीर बाबू रामायण की पाठ समाप्त ही किये थे तबतक किसी ने बाहरी गेट पर दस्तक दी। इतना सबेरे कौन हो सकता है ? अनुमान लगाते-लगाते बढे और गेट खोल दिया। सामने नक़ाब में एक युवती खड़ी थी। हाथ में मुठ्ठीभर समान,साथ में दो बचियाँ। शायद,ज़कात-खैरात के लिए आईं हों,लेकिन इसके लिए तो इन्हें मुस्लिम बस्ती में जाना चाहिए,ये यहां क्यों आई ? अनुमान नतीज़े में बदलता तबतक उस युवती ने दोनों हाथ जोड़ दिए-जी,मैं महावीर बाबू से मिलना चाहती हूं। लेकिन,तुम हो कौन ? जी,मैं बरकत हुसैन साहब की मंझली बहू हूँ। क्या..? ये क्या बक रही हो तुम ? जी,मैं इटली या अमरीका वाली उनकी बहू नहीं ,बल्कि पंजाब के फारम में काम करने वाले उनके मंझले बेटे की बीबी हूँ।हथौड़े पड़े ज़ेहन पर,महावीर बाबू को विश्वास नहीं हो रहा था,लेकिन ये हकीकत था। जोर की आवाज़ लगाई महावीर बाबू ने,बेटे,बहु,पत्नी सभी भागे चले आये। पत्नी को ईशारा कर लगभग चीखते से बोले-देख रही हो,ये बड़े-बड़े बकने वाले बरकत की बहू है ! तुम अब ओछी बातें न करो, महावीर बाबू की पत्नी ने आगे बढ़ बहू को गले लगा लिया,बहुएं बढ़ीं और बचियाँ को गोद में ले लिया। आरती की थाल लाई गई।आरती हुई और बरकत हुसैन की बहू ने महावीर बाबू की देवड़ी में क़दम रखे। पीछे से बशीर हुसैन भी आये और आकर नजरें नीची किये बैठ गए। महावीर बाबू अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाए,उठे और बशीर को दो थप्पड़ रशीद कर दिए।अभागे,क्या हाल कर लिया अपना,क्या ये दुश्मन का घर है जो अबतक नहीं आये,देख तो बहू,बचियाँ किस हाल में पहुंच गईं ? और,महावीर बाबू खुद भी रो पड़े। अज़ीब मंज़र बन गया। आस-पड़ोस के लोग जमा हो गए। जिस बरकत हुसैन साहब के जकात-खैरात से कई गांव की ईद हुआ करती थी,उन्हीं के बेटा-बहु आज इस हाल में ! ओफ़ ,देखा भी तो नहीं जाता। लेकिन किया भी क्या जा सकता ? बड़े लोगों की बड़ी बातें! अब तो महावीर बाबू ही कोई हल निकालें ।
नेमतपुर अब वह नेमतपुर न रहा। कभी महावीरी मेले में लाठियां भाजने का काम और तमाम जिम्मेवारियां बरकत हुसैन साहब ही लिया करते तो मुहर्रम में ताजिया महावीर बाबू के कंधों पर होता। वख्त के थपेड़ों ने बहुत कुछ बदल दिया। मज़हब की मीनारें ऊंची होती गईं,धर्म ने धंधे का रूप अख़्तियार कर लिया और ईमान की नींव खोखली होती गई। लँगोटिया यार और सहपाठी रह चुके बरकत हुसैन व महावीर बाबू पीछले कई सालों से एक दूसरे का हाल समाचार तक लेना मुनासिब न समझे। बल्कि, गाहे-बगाहे एक दूसरे को नीचा दिखाने से बाज भी न आये। अब तो ख़ैर मोहल्लों को नफरत की ऊंची दीवारों से घेर दिया गया है। महावीर बाबू ने अपनी पत्नी को बुलाया और कान में कुछ कहा। पत्नी के चेहरे पर अचानक आई आभा का आभास लोगों को न हो सका। लोगों ने देखा, महावीर बाबू मंझली बहू,बशीर और अपने पूरे कुनबे के साथ मोटर गाड़ी में सवार हो रहे थे। बन्दूक के साथ स्टेयरिंग सीट पर बैठे उनके तमतमाये चेहरे किसी अनहोनी की आशंका जता रहे थे। बातें बड़ी तेजी से पसरती चली गईं….।
उधर नमाज़ ख़तम हुई और लोगों का मिलना जुलना शुरू हुआ। बरकत हुसैन साहब बोझिल क़दमों अपने दौलतखाने को रुखसत हुए। जानते थे,बीबी ग़मगीन ही होगी।मुद्दत हुए,उसने आंखों में कभी सूरमा नहीं डाला। नहीं,नहीं, कम से कम आज तो उसे नए कपड़े पहन लेने चाहिए।थोड़ी देर में पूरा मोहल्ला मिलने आएगा। लोग क्या सोंचेगें ?
जब बरकत हुसैन साहब अपने घर के बाहर महतो टोली और बबुआन गांव के सैकड़ों लोगों को देखा तो अज़ीब कैफ़ियत होने लगी। क्या ये लोग ईद मिलने आये हैं ? नहीं,नहीं, जरूर कोई गड़बड़ है। हिम्मत की और दरवाजे पर आए। सामने जो देखा तो आंखें फ़टी की फटी रह गईं। मूछों पर ताव देते, हाथ में दुनाली लिए महावीर बाबू बिराजमान थे। बलात बलवे की आशंका से जिश्म के मोशमों ने पानी छोड़ दिया। लेकिन थे आंखाडे के नामी उस्ताद सो हर दाव-पेंच से बख़ूबी वाकिफ़ थे।आगे बढ़े और बोले-क्यों महावीर, बुढ़ापे की दहलीज़ पर क़दम रखे दुनाली घूमा रहे हो?कांपती उंगलियां से ट्रिगर नहीं दबते ! महावीर बाबू ने एक बार फिर मूछों पर ताव दिया और बोले-बरकत,इस मुगालते में न रहना। अभी बहुत जान बाकी है इन उंगलियों में। कहो तो दिखा दूँ ? ऐन मौके पर हुसैन साहब की बीबी ने महावीर बाबू के सामने पानी का ग्लास रखा। भाई साहब पानी पीजिये।नहीं भावज, पहले इस नामुराद को समझाइये, आज अगर बहैसियत बेटी का बाप न आया होता तो दुनाली ख़ाली कर देता इसके सीने में। इत्ते में महावीर बाबू की धर्मपत्नी बाहर आईं और बोली-अब चूप भी रहोगे! रस्सी जल गई लेकिन ऐंठन न गई।लो ये लिस्ट,जल्दी से सारा सामान मंगवा दो। बरकत कुछ समझ न पाए। उधर आंगन में हलचल बढ़ती जा रही थी।माज़रा समझ से परे था। मर्द समझ न पाते लेकिन औरतों ने कानों कान सब कुछ समझ लिया,सो घरों से निकल-निकल आंगन में जमा होने लगीं।फिर आंगन में मंगल गान शुरू हो गया। ये पहला मौका था जब मियांजी के आंगन में महावीर बाबू की बहुएं झूम-झूम कर संस्कार गीत गा रही थीं। मज़ा तो तब आने लगा जब मुस्लिम बहुओं ने उनके सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया। गंगा-जमना का बहाव एक हो गया।
लगभग चीख़ ही पड़े बरकत हुसैन-“आरे कोई बताएगा,ये सब क्या चल रहा है,ये कौन-सा ड्रामा हो रहा है ? कुछ तो बोलो,वरना मेरा सर फट जाएगा,मैं पागल हो जाऊंगा ।” धीरे से महावीर फुसफुसाए-पागल तो तुम पहले से ही हो,अब क्या नया पागल होंना है ! ऐ क्या बोला ?चढ़े तेवर,बरकत ने पूछा। महावीर ने चेहरे पर आई मुस्कान को गायब कर गम्भीरता का लबादा ओढ़ लिया।सवाल मूछों का जो ठहरा ! इत्ते में महावीर बाबू की पत्नी छोटी बच्ची लिए बाहर आईं और बरकत की गोद में डाल दिया। भावज, ये कौन है? पहचानिये भाई साहब। बरकत ने बच्ची को देखा, वह उनकी गोद में खेल रही थी।तबतक बड़ी बच्ची को लिए उनकी बीबी भी बाहर आ गईं। बोलीं-और इसे देखिए,पहचाना आपने ? ये क्या पहचानेगा भावज, बूढ़ा सठिया गया है,महावीर ने चुटकी ली। तीन तरफा मार ने बरकत के सोंचने की रफ़्तार बढ़ा दी। रही सही कसर महावीर की बहुओं ने पूरी कर दी जब दुल्हन के जोड़े में मंझली बहू को ला खड़ा कर दिया। हाथ जोड़ महावीर की पत्नी बोलीं-भाई साहब आज ईद है।अपनी मंझली बहू को ईदी न देंगें ? बरकत ने चाँद-सी दुल्हन को देखा, उसकी आंखें झूकी थीं। झुकी आंखें बरसे जा रही थीं,रुकने का नाम ही नहीं लेतीं। धीरे-धीरे धुन्ध के बादल छँटने लगे। बरक़त उठे,बच्ची को महावीर की गोद में डाला। बहू को भर नज़र देखा और लगभग चीखते-से बोले,-कहाँ है बशीर ? अनहोनी की आशंका ने नीरव सन्नाटा ला दिया। में पूछता हूँ, कहाँ है बशीर ? चीख़ बढ़ती गई। महावीर की पत्नी अंदर गईं और बशीर को ला खड़ा किया। बशीर नज़रें झुकाये ख़ामोश खड़ा था।अंग-अंग कांप रहे थे।अंजाम का आगाज़ हो चुका था।
तड़ाक,तड़ाक,तड़ाक..लगातार तीन थप्पड़! लोगों की सांसें रुक गईं। वही हुआ जिसका डर था..। लेकिन यह क्या ? बरक़त ने आगे बढ़ बेटे को गले लगा लिया और पुका फाड़ लगे रोने। आज सब्र के सारे बाँध टूट गए।बशीर को अब्बू का कन्धा एक अरसे बाद मिला था,सो सिसकी बंधीं तो सिसकते ही रहे। बाप बेटे क्या,सब रो रहे थे। आंसुओं के सैलाब ने मज़हबी दीवारों को धरासायी कर दिया।बड़ी मुश्किल से बाप,बेटे चूप हो पाए।बरक़त ने महावीर की पत्नी की तरफ़ देख कहा-भावज,कह दो इस शैतान से,अब ये कभी मुझे छोड़कर न जाये।ग़रचे गया तो मैं इसे गोली मार दुंगा, सामने पड़ी बन्दूक की तरफ़ ईशारा किया। देखा,बन्दूक जस की तस पड़ी थी लेकिन महावीर नहीं थे वहां।कहाँ गए महावीर ..? बरक़त आगे बढ़ देखा, महावीर मोटर स्टार्ट कर रहे थे। छलाँग लगा दी बरक़त ने,महावीर को पकड़ लिया,गले लगाया और फिर बरसते हुए बोले-बडी अच्छी ईदी दी तूने।बुढ़ापे में क्या जबरदस्त पटकनी दी यार। ताउम्र तेरा तोहफ़ा याद रखूँगा। महावीर ने घुमकर आंसुओं को नाहक छुपाने की कोशिश की लेकिन छिपा न सके।
लोगों ने देखा-” सालों पुरानी नफ़रत की दीवारों ने दरकना शुरू कर दिया और सच तो ये है कि दरकती दीवारें ठहरती कहाँ हैं ?” लम्हे न लगे,ओ धरासायी हो गईं।
मोटर पर पूरा कुनबा सवार हो रहा था। महावीर बाबू की छोटी बहू ने अपने लाडले देवर को धीरे से चिकोटी काटी और घूंघट से फुसफुसाइ-‘देख लिया न देवरजी,भाग-भुग के शादी करने का अंजाम ! सुना है ओ बेलापुर वाली से तेरे नैन-मटके कुछ ज्यादा ही चल रहे हैं। फिर सोंच लेना। बेचारा देवर मारे शर्म पानी-पानी हो गया। मोटर गाड़ी ने बढ़ना शुरू कर दिया..छोटी बहू अब भी घूंघट में हंसे जा रही थी..।

-रमेश चन्द्र

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