इस तरह वोट जरूर दें कि बहुमत किसी एक दल को मिले

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लालू रिहा होंगे, यह फैसला महाधिवक्ता की राय पर निर्भर
लालू रिहा होंगे, यह फैसला महाधिवक्ता की राय पर निर्भर

पटना। लोगों को परिणाम क्या मिला ? भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, रंगदारी, अपहरण और गुंडों को संरक्षण ! नतीज़ा जिस मंडल पर ये लोग (लालू का नेतृत्व) सवार हो कर आये थे उसी को चूर-चूर कर डाला। विकास की गंगा ऐसी बही कि (नागरिक) आम जनता त्रस्त हो गयी और लोगों में भय बना रहता था कि कब कोई अनहोनी हो जाय, क्या पता। एक जाति विशेष और खास समुदाय को इनके शासन में वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया और आजतक किया जाता रहा है पर दूसरे जातियों के भी कुछ लोग इनके साथ रहे पर मकसद सिर्फ सत्ता और लूटना रहा।
पंद्रह वर्षों तक इनका शासन चला और बिहार एक शताब्दी से पीछे चला गया। लोग अब तक परेशान हो चुके थे, कांग्रेस का वजूद बिहार में लगभग मिट सा गया था तभी 2005 में बिहार की जनता ने एनडीए को बिहार में सत्ता की चाभी सौंप डाली और लोगों में कुछ उम्मीद बंधी कि अब कुछ अच्छे काम होंगे और माननीय श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने अपना काम शुरू कर दिया।
पहला चोट गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार पर था और धीरे-धीरे लगभग डेढ़ वषों में इनपर लगाम लगा दिया गया कुछ छूट-पुट राजनैतिक और आपसी अदावत की घटनाओं को छोड़ कर। फिर लागातार जमीनी कामों को किया जाने लगा जिसमे हर गांव को सड़क संपर्क और बिजली प्राथमिकता रही और सड़क के क्षेत्र में तो अमूमन पूरी सफलता मिल गयी पर बिजली का कार्य निरंतर चलता रहा विभिन्न अड़चनों के बाद भी और अब इसमें भी सफलता मिल चुकी है।
सारे सफलताओं के बाद भी एक चीज़ जो देखने को मिली जो थी शिक्षा के प्रति उदासीनता। इसका कारण मुझे आजतक समझ मे नही आया है कि क्यों सरकारी शिक्षण संस्थाओं की गुणवत्ता को लगातार खराब होने दिया गया और जा रहा है ? पर जनता जिन परेशानियों से 2005 के पहले तक जूझ रही थी उससे छुटकारा तो मिला, ये सोच कर खुश थी पर उम्मीद थी कि इस क्षेत्र में भी काम होगा।
अब तक दो वर्ष बीत चुके थे और फिर शिक्षा सुधार का काम शुरू किया गया और कुछ काम भी हुए पर गठबंधन और दल के ही कुछ ऐसे तत्व जो कि सिर्फ सत्ता चाहते थे उनलोगों ने एक सोची समझी शाजिस के तहद अंदर ही अंदर पूरे सिस्टम को खोखला करने में लग गया और ये बातें तब संज्ञान में आई जब 2011 में बिहार में बोर्ड की परीक्षा में भारी संख्या में बच्चे-बच्चियां नकल करते हुए पकड़े गए और परीक्षा से बाहर कर दिए गए। तब पुनः इसको दुरुस्त करने का काम शुरू किया गया पर अब देर हो चुकी थी और प्रदेश के नेतृत्व का कोई भी कठोर कदम फिर से बिहार को गर्त में झोंकने वाला काम साबित होता पर धीरे-धीरे उस पर भी काम चलता रहा।
वर्ष 2012 एनडीए में खटपट हुई और कांग्रेस और राजद को मौका मिल गया और श्री जीतन राम मांझी जी मुख्यमंत्री बने और फिर दौर शुरू हुआ सत्ता की राजनीत का और विकास की गति धीमी होने लगी पर ऐन मौके पर पुनः माननीय श्री नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली और अपने काम मे लग गए।
वर्ष 2014 भ्रष्टाचार के खिलाफ देश मे जबरदस्त आक्रोश फैला था जिसकी शुरुआत दिल्ली से अन्ना हज़ारे ने की और उसके मशाल को आगे ले कर बढ़े श्री अरविन्द केजरीवाल पर यहां क्षेत्रीय दलों से एक बड़ी चूक हो गयी, वो समय को पहचान नही पाए और तभी भाजपा के गोवा अधिवेषण में श्री नरेन्द्र मोदी का उदय होता है और एक लहर से फैल गयी गुजरात मॉडल की कहानी और लोकसभा चुनाव का परिणाम सबके सामने है।
पर विधान सभा चुनाव के आते-आते केंद्रीय नेतृव के कुछ बेतुके बयानबाजियों से लोग ऊबने से लगे थे और श्री नीतीश कुमार आज़माये हुए नेता थे इसलिए लोगों ने 2015 में इनके नेतृत्व को पुनः स्वीकार किया और महागठबंधन की सरकार कांग्रेस और आरजेडी के आंतरिक गठजोड़ से बनी और फिर से नई उचाईं को पाने की दिशा में कार्यरत हो गए श्री नीतीश कुमार, पर यहां जनता ने एक बड़ी भूल कर डाली थी और वो थे राजद को सबसे बड़े दल के रूप में लाना। शायद लोग समझ रहे थे कि माननीय श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजद वाले अपने पुराने चाल-चरित्र को भूल जाएंगे पर ऐसा हुआ नही। जैसे-जैसे समय बीतता गया उस समय के मुख्य विपक्षी दल भाजपा का वार करना जारी रहा और जब घोटाले का पर्दाफाश होना शुरू हुआ तब माननीय श्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। चुकी बिहार की सामाजिक और आर्थिक समरसता बिगड़ने की स्तिथि में थी और कोई भी दल चुनाव में जाने की स्तिथि में नही थी तब भाजपा ने अपना हाथ बढ़ाया और पुनः श्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद संभाला लिया और फिर से कार्यों में प्रगति दिखने लगी पर राजद तो राजद है इन्हें बस सत्ता चाहिए वो भी किसी भी कीमत पर और इनलोगों ने हर काम मे अड़चन लगाना शुरू कर दिया, शराबबंदी का सबसे ज्यादा दुरुपयोग उनके ही समर्थक या कुछ विशेष व्यक्तियीं के द्वारा किया जा रहा है पर दोषी तो जनता भी है। अगर सरकार न किसी वस्तु पर प्रतिबंध लगाया है तो उसके पीछे कुछ अच्छी सोच तो ज़रूर होगी और है भी ! पर ना लोग मानेंगे और फिर से गड्ढे में गिरने को बेकरार हैं। अब शासन क्या करे ? एक तरफ शराब माफियाओं को पकड़े ताकि जिन लोगों के परिवार और समाज खराब हो रहे हैं उनको बचाये या राजद समर्थित गुंडों से निपटे ?
आप सभी समझदार हैं। मैं तो बस यही कहूंगा, वोट ज़रूर दें पर दल और व्यक्ति क्षवि को देख कर ही दें और अपने मत का सही उपयोग करें।
अगर कुछ कमियां हैं तो उसको दूर की जा रही है कुछ भविष्य की योजनाओं पर विमर्श भी हो रहे हैं पर यहां आपको तय करना है कि आप भयभीत हो कर रहना चाहते हैं या भयमुक्त !
श्री नीतीश कुमार आज़माये हुए व्यक्ति हैं इनकी कार्यशैली से आप सभी भली-भांति वाकिफ हैं और अगर कुछ शिकायते हैं भी तो आप सभी अपने सुझाव देते रहिये ताकि उसके लिए सही कदम उठाया जा सके।
वोट ज़रूर दें पर बहुमत किसी एक दल को ही दें पर भय को याद ज़रूर रखेंगे अपने बहुमूल्य मत डालने से पहले।

– जे.एन ठाकुर

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