उषा गांगुली का निधन, बंगाल के रंगकर्मियों में शोक की लहर

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  • अरुण माहेश्वरी

कोलकाता। उषा गांगुली नहीं रहीं ! यह खबर कोलकाता के सांस्कृतिक जगत पर किसी वज्रपात से कम नहीं है। उनके निधन से पश्चिम बंगाल के रंगकर्मियों में शोक की लहर है। कोलकाता की बांग्ला और हिंदी की सांस्कृतिक दुनिया के बीच उषा जी सचमुच किसी जीवंत पुल की तरह थीं। बांग्ला के अत्यंत विकसित रंगमंच में अपने नाट्यदल ‘रंगकर्मी’ के साथ वे हिंदी की रचनाशीलता का एक अमिट हस्ताक्षर थीं। उन्हें बांग्ला के पूरे सांस्कृतिक जगत का भारी स्नेह और सम्मान मिला था।

बंगाल में वामपंथी राजनीति से कदम से कदम मिलाते हुए उषा गांगुली ने हिंदी रंगमंच को जिस प्रतिष्ठित स्थान पर स्थापित किया, उसे हमेशा गहरी श्रद्धा के साथ याद किया जाएगा। हमें उनके अधिकांश नाटकों पर लिखने का मौक़ा मिला था। रंगमंच के प्रति उनकी गहरी निष्ठा ने ही उनकी वामपंथी वैचारिक प्रतिबद्धता को सार्थक बनाया था।

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उषा जी की इस आकस्मिक मृत्यु का कारण हम नहीं जान पाए हैं। उनके घर से प्रारंभिक सिर्फ एक वाक्य की सूचना मिल पाई- मैडम नहीं रहीं। बाद में उनके भाई राजीव पांडे जी से पता चला कि सुबह साढ़े सात बजे हृदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हुई है। वे पिछले कुछ दिनों से स्पाइन से जुड़े रोग से जूझ रही थीं। मृत्यु के वक्त वे क़रीब पचहत्तर साल की थीं।

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बंगाल के रंग जगत में उषा जी की कमी को कोई पूरा नहीं कर पाएगा। हमारी तो यह बहुत निजी क्षति है। बंगाल में जनवादी लेखक संघ के कामों को उनका हमेशा सक्रिय समर्थन मिला करता था।

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कोरोना के इस काल में उनके अंतिम दर्शन करना कैसे संभव होगा, हम नहीं जानते। हम अपने हृदय की तमाम गहराइयों से भारी दुख के साथ उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। उनकी स्मृतियाँ हमेशा हमारे दिल में बनी रहेंगी। उनका एक बेटा है और रंग जगत के उनके अनेक सहयोगी हैं। उन सबके प्रति भी हम अपनी गहरी संवेदना प्रेषित करते हैं।

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