कैंपस में क्या गैर राजनीतिक छात्र संघ संभव है? 

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जेएनयू का परिसर
जेएनयू का परिसर
  • देवेंद्र मिश्र

कैंपस में क्या गैर राजनीतिक छात्र संघ संभव है? JNU की हाल की घटनाओं से यह सवाल बड़ी शिद्दत से उठ रहा है, जिस पर विचार करना जरूरी है। यह धारणा बलवती हो रही है कि आज विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों की सबसे बड़ी बीमारी छात्र यूनियनों का व्यापक राजनीतिकरण ही है, जो निस्संदेह देश के  शैक्षणिक वातावरण को पूर्णतः दूषित कर चुकी हैं।

अकादमिक परिसरों में छात्र राजनीति के गिरते स्तर के कारण छात्र संघों के निर्माण के पीछे के मूल मकसद समाप्तप्राय होते जा रहे हैं। दरअसल छात्र संघों का मकसद था, समाज में ऐसे नेताओं का निर्माण, जो बहस और चर्चाओं के माध्यम से विभिन्न और विपरीत विचारों के बीच सामंजस्य ला सकें तथा जो आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देते हुए ऐसी युवा पीढ़ी की पौध तैयार कर सकें, जो लोकतंत्र और बहुलवाद की विरासत को आगे बढ़ाने में सक्षम हो।

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साथ हीं, जो विरोध की राय रख पाने एवं सवाल पूछ पाने के अधिकार वाली संस्कृति, जो कि निस्संदेह हीं मनुष्य की प्रगति की आधारशिला है, को सम्मान दे सकें। पर हुआ इसके विपरीत। अनुभव बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में छात्र संघ की राजनीति ने छात्रों को लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुँचाया है। यह सच्चाई है कि आज शैक्षणिक वातावरण में विषाक्तता बढ़ी है और शिक्षा के अपराधीकरण के द्वारा शैक्षणिक परिसरों की स्थिति बेहद ख़राब हुई है।

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प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में हुई हिंसा दुखद है, फिर भी यह आश्चर्यजनक नहीं है। हाल के कुछ वर्षों में शैक्षणिक परिसरों में जिस स्तर का ध्रुवीकरण तथा वैचारिक विभाजन देखा जा रहा है, इसमें इस तरह की हिंसक घटनाओं को इनकी तार्किक परिणति के रूप में देखा जा सकता है। इस संदर्भ में क्या यह सही समय नहीं है कि शैक्षणिक परिसरों के अंदर छात्र संघों को पूरी तरह से गैर राजनीतिक कर दिया जाए और किसी भी राजनीतिक दल के साथ छात्र निकायों के किसी भी संबद्धता को गैरकानूनी घोषित कर दिया जाए?

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