बिहार में सीट शेयरिंग पर फंस गया पेंच, नीतीश 25 पर अड़े

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नीतीश कुमार पर उनकी ही सरकार के साझीदार दल बीजेपी का दबाव बढ़ने लगा है कि वे कोटा में फंसे बिह7ार के बच्चों को लाने की पहल करें।
नीतीश कुमार पर उनकी ही सरकार के साझीदार दल बीजेपी का दबाव बढ़ने लगा है कि वे कोटा में फंसे बिह7ार के बच्चों को लाने की पहल करें।

पटना। बिहार एनडीए में लोकसभा की सीटों के बंटवारे पर अब भी पेंच फंसा है। भले ही नीतीश ने यह कह दिया कि सीटों के बंटवारे पर एनडीए में कोई खटपट नहीं है और अमित शाह ने बिहार दौरे के वक्त कहा कि उन्हें साथियों को संभालने आता है, पर हालात अच्छे नहीं दिख रहे। अभी 16-16-6-2 (भाजपा-जदयू-लोजपा-रालोसपा) का फार्मूला भाजपा ने दिया है।

नीतीश खेमे का मानना है कि यह सम्मानजनक नहीं है। नीतीश ने अपनी आपत्ति भी जता दी है। बताते हैं कि उन्होंने जदयू के लिए 25 सीटें मांगी हैं। वह विधानसभा चुनाव परिणामों को आधार बना कर भाजपा से अधिक सीटें मांग रहे हैं। बता दें कि विधानसभा चुनाव जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ा था और इसमें भाजपा को कम सीटें आई थीं। राजद नंबर वन था तो जदयू नंबर टू पर था।

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भाजपा के फार्मूले पर गौर करने से पहले पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े को जान लें। कुल 40 लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में 22 भाजपा ने, 6 राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा ने और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने 3 सीटों पर विजय हासिल की थी। बाद में अरुण कुमार ने रालोसपा से नाता तोड़ अलग गुट बना लिया।

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अगर भाजपा का फार्मूला ही अंतिम होता है तो रामविलास पासवान को कोई नुकसान नहीं हो रहा है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एक सीट का नुकसान हो रहा है। दोनों का दावा है कि बीतते कार्यकाल के दौरान उनकी पार्टियों का जनाधार बढ़ा है और लोकप्रियता भी। इसलिए उन्हें पूर्व की जीती सीटों के अलावा भी सीटें चाहिए। उनका दूसरा तर्क है कि सांसदों के संख्या बल में दोनों दल जदयू से अधिक सीटों पर जीते थे। ऐसे में जदयू को इतनी तरजीह क्यों मिलनी चाहिए।

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