SC/ST मसले पर भाजपा विपक्ष के बिछाये जाल में फंस गयी है

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आरक्षण और SC/ST ऐक्ट के खिलाफ सवर्णों का गुस्सा कल दिन पर देशभर की सड़कों पर दिखा। कहां गाड़ियां रोकी गयीं, टायर जलाये गये, बिहार में पप्पू यादव और श्याम रजक के काफिले के साथ बदसलूकी हुई। देश एक बार फिर मंडल की सिफारिशों के अमल के बाद उपजी हिंसा की ओर बढ़ता दिखा। सोशल मीडिया इसका सबसे बड़ा टूल बना। पेश है दो रिपोर्टः  

डा. राजेंद्र ने लिखाः आरक्षण और एससी-एसटी ऐक्ट के मामले में भाजपा विपक्ष के द्वारा बिछाए गए जाल में बुरी तरह फँस चुकी है। भाजपा के रणनीतिकार सही रणनीति नहीं बना पाए हैं। जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी ऐक्ट को संशोधित किया, तब विपक्ष ने सरकार पर दबाव बनाया कि सरकार संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने वाला कानून बनाए। सधी हुई रणनीति के तहत पूरे देश में दलितों द्वारा भयंकर आंदोलन किया गया, जिसका कांग्रेस आदि दलों ने समर्थन भी किया। जन धन दोनों की हानि हुई और सरकार दबाव में आ गई।

विपक्ष  एससी-एसटी ऐक्ट को 2019 का मुख्य मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी कर चुका था और साथ-साथ उसने प्लान बी भी तैयार कर लिया था, जिसे भाजपा भाँप नहीं पाई। जब सरकार विपक्ष और पासवान, नीतीश आदि के दबाव में ऐक्ट में बदलाव के विरुद्ध संसद में कानून बनाने पर राज़ी हुई तो पहले तो विपक्ष ने चुपचाप उसे पास होने दिया और प्लान बी के अनुसार अपने सवर्ण समर्थकों को सवर्णों, ख़ासकर ब्राह्मणों को भड़काने का  दायित्व सौंप दिया। सोशल मीडिया ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और ब्राह्मण, जो योगी से असंतुष्ट  थे ही, आसानी से सरकार के विरुद्ध हो गए। उन्हें समझाया गया कि राहुल या विपक्ष को वोट नहीं देना है, बल्कि नोटा दबाना है। अब सवर्ण समाज यह नहीं समझ पाया कि नोटा का फ़ायदा किसे मिलेगा!

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दलितों द्वारा कुछ जगहों पर फ़र्ज़ी मुकद्दमे भी करवाए गए, जिससे ब्राह्मण समाज और अधिक उत्तेजित हो जाए। विपक्ष की चाल पूरी तरह कामयाब रही और आज सवर्ण जब सड़कों पर उतर आए हैं तो कांग्रेस की आत्मतुष्टि देखने लायक है। आनन-फानन में हरियाणा में ब्राह्मणों को आरक्षण देने का आश्वासन भी कांग्रेस की ओर से दिया गया है और सिंधिया साहब को तो अब कांग्रेस के पक्ष में ज़ोरदार हवा भी बहती हुई दिखाई पड़ने लगी है। कुल मिलाकर यह भाजपा की पराजय है। पहले राउंड में भाजपा की हार हुई है। सवर्णों का गुस्सा सड़क पर है। भाजपा ने यदि फौरन इस ओर ध्यान नहीं दिया तो 2019 में उसकी पराजय निश्चित हो जाएगी। मोदी को पिछड़ों का नेता घोषित किया जा रहा है, ताकि सवर्ण भाजपा से दूर हो जाएं, जबकि दूसरी ओर दलितों और पिछड़ों का वोट अपने परंपरागत खेमों में ही जाएगा। उनकी प्रतिबद्धता स्थिर है। कुछ नक्सल बुद्धिजीवी अब सुप्रीम कोर्ट की शह पाकर और भी मुखर होंगे और पुलिस का मनोबल मीलॉर्ड तोड़ ही चुके हैं! जस्टिस गोगोई नमक का फ़र्ज़ तो अदा करेंगे ही! दीपक मिश्रा का कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है। 3 अक्टूबर से नए मुख्य न्यायाधीश सत्ता संभालेंगे। ये वही हैं, जिन्होंने जस्टिस  मिश्रा के विरुद्ध प्रेस कांफ्रेंस की थी! अब सबकुछ पुनः उन्हीं लोगों के अनुसार होगा जिनके अनुसार अबतक होता रहा है। कोलेजियम के आगे सरकार कुछ कर नहीं पाएगी। यदि मोदी सवर्णों की कृपा से हार गए तो वामी, कांगी आदि पुनः राज करेंगे।

राहुल पीएम होंगे! अखिलेश गृहमंत्री होंगे! उनके रिश्तेदार तेजस्वी भी किसी बड़े मंत्रालय को संभालेंगे! ममता को भी कोई बड़ा पद मिलेगा! मायावती शायद वित्त मंत्री होकर नोटबन्दी को समाप्त कर देंगी! सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा और इसके ज़िम्मेदार सवर्ण होंगे, जिनके पास अगले पाँच साल तक इंतजार करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होगा।

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हरेंद्र शुक्ला ने लिखाः सामाजिक समरसता को रौंदकर, प्रतिभाओं को कुचलकर सता हथियाने का धंधा बंद होना चाहिए। आरक्षण के हथियार का उपयोग देश के गरीबों, दबे-कुचले लोगों के उत्थान के लिए होना चाहिए, 2019 आम चुनाव के लिए नहीं। आरक्षण के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय के फैंसले को पलटने वाली सरकार और उसके नुमांदों ने देश को जातीय आग में झोंककर 2019 का सपना देखा है। अगर पीएम श्री नरेन्द्र मोदी सही मायने में राष्ट्रवादी सोच रखते हैं, दलितों के दिल से हितैषी हैं तो उनको अपने गठबंधन के किसी दलित सांसद को तत्काल प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप देनी चाहिए। मेरा मानना है कि देश ही नहीं, दुनिया के सियासी पटल पर त्याग के मामले में वह दूसरे महात्मा गांधी साबित हो सकते हैं।

मुझे यह कहने में तनिक गुरेज नहीं कि तुच्छ सियासी स्वार्थ में एक बार फिर भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने की बात करने वाले लोग आरक्षण के राफेल से देश के युवाओं को जमींदोज कर समाज में नफरत की फसल को लहलहाने में लगे हैं। इस देश में ओरिजिनल गरीबों को आरक्षण का लाभ मिले। सता के लिए आरक्षण का दुरुपयोग करके गरीबों का हक नहीं मारा जाये। सरकार को आरक्षण के आगोश से बाहर निकलकर सामाजिक तानेबाने को मजबूत करके किसी दल या व्यक्ति को भारत मुक्त करने की बजाय गरीबी, बेरोजगारी मुक्त भारत और बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा युक्त भारत का निर्माण करना चाहिए।

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