RJD किनारे रह कर भी बिहार में किंग मेकर की भूमिका निभाता रहेगा

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वक्त-वक्त की बात है- 2015 की दोस्ती
वक्त-वक्त की बात है- 2015 की दोस्ती

पटना। RJD किनारे रह कर भी बिहार में किंग मेकर की भूमिका निभाता रहेगा। अपने जनाधार के कारण आरजेडी नेता लालू प्रसाद कभी किंग मेकर की भूमिका हुआ करते थे। RJD के जातीय समीकरणों में कोई कितना भी सेंध लगा ले, पर इसका पूरी तरह खत्म होना नामुमकिन है। यादवों और मुसलमानों की पहली पसंद अब भी राजद बना हुआ है।

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2019 के लोकसभा चुनाव में राजद ने अकेले 16 प्रतिशत वोट हासिल कर साबित किया है कि बिहार में एनडीए के दो बड़े घटक दल बीजेपी और जेडीयू में कभी खटपट हुई तो दोनों दलों में कोई भी आरजेडी को साथ लेकर मैदान फतह कर सकता है। हाल के दिनों में जेडीयू और बीजेपी में तनातनी के संकेतों के बीच तेजस्वी यादव का राजनीतिक मौन साधना इस बात की ओर इशारा करता है कि बिहार में सियासी खिचड़ी पक रही है और आरजेडी उसमें किंग मेकर की भूमिका निभा सकता है।

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इसे समझने के लिए लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों पर गौर करें। बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और बीजेपी ने समेकित रूप से 53.25 प्रतिशत वोट हासिल किये थे। लोजपा का वोट प्रतिशत 2014 के 6.40 से बढ़ कर 2019 में 7.88 प्रतिशत रहा। जदयू का वोट प्रतिशत 2014 के 16.4 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 21.8 प्रतिशत हो गया। बीजेपी के वोट प्रतिशत में इन दो टुनावों के दौरान कमी दर्ज की गयी। बीजेपी को 2014 में 29.4 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2019 में 23.58 प्रतिशत पर आ गये। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि 2014 में बीजेपी राज्य की 22 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी थी, लेकिन 2019 में समझौते के तहत भाजपा ने अपने बराबर 17 सीटें जदयू को दे दी थीं। बीजेपी का वोट प्रतिशत घटने और जदयू का बढ़ने के पीछे बड़ी वजह यही है।

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अब बात करते हैं आरजेडी की। आरजेडी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन 20 प्रतिशत वोट हासिल किये थे। 2019 के चुनाव में आरजेडी को 4.74 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ और इसे 15.36 प्रतिशत वोट मिले। जिस सियासी खिचड़ी की संभावनाएं बिहार में जतायी जा रही हैं, उनमें अगर आरजेडी के 15 प्रतिशत वोट शेयर को जेडीयू ले जाने में सफल होती है तो दोनों के वोट प्रतिशत 36-37 प्रतिशत हो जायेंगे। भाजपा अगर आरजेडी को रिझाने में कामयाब हुई तो दोनों के वोटों का समेकित आंकड़ा 37-38 प्रतिशत पर आ जायेगा। यानी आरजेडी किंग मेकर की भूमिका में बना रहेगा।

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आरजेडी में फिलवक्त तेजस्वी यादव अग्रणी पंक्ति के अव्वल नेता हैं। मुजफ्फरपुर में इंसेफलाइटिस (चमकी बुखार) से सैकड़ों बच्चों की मौत, लू से मौतें, बाढ़ के कहर से कराहते लोग, स्वास्थ्य सेवाओं में कमजोरी दर्शाता राज्य सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा, मुजफ्फरपुर का शेल्टर होम कांड और भागलपुर के सृजन घोटाले पर तेजस्वी यादव की चुप्पी से इस कयासबाजी को काफी बल मिलता है कि बिहार में सियासी खिचड़ी पक रही है। आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों के बारे में ब्योरा जुटाने का नीतीश की पुलिस का आदेश भी सियासी खिचड़ी का हिस्सा हो सकता है। अगर खिचड़ी पकने के कयास सही होते हैं तो यकीनन आरजेडी के सहारे के बिना एनडीए के किसी घटक की कामयाबी सुनिश्चित नहीं है।

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