हारे हुए दल के नेता हताश-निराश न हों, जनादेश स्वीकारें

0
137
आरजेडी के नेता राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव ने पोस्टर वार से नीतीश के सुशासन को दी चुनौती
आरजेडी के नेता राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव ने पोस्टर वार से नीतीश के सुशासन को दी चुनौती
  • बिपेंद्र कुमार
वरिष्ठ पत्रकार बिपेंद्र
वरिष्ठ पत्रकार बिपेंद्र

हारे हुए दल के नेता हताश-निराश न हों, जनादेश स्वीकारें। आगे की रणनीति बनायें, कमियां दूर करें और क्षेत्र में काम करें। याद आ रहा है 1971 का चुनाव। पांचवीं लोकसभा चुनाव का चुनाव 1972 के बजाय 1971 में ही हो गया था। इस चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आई) को प्रचंड जीत मिली थी। लोकसभा की कुल 518 सीटों में से 352 पर इंदिरा कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे।

यह भी पढ़ेंः बिहार में बैट्री चालित वाहनों पर 50 % कम टैक्सः सुशील मोदी

- Advertisement -

उस वक्त मैं 14 साल का था। लेकिन मन में कांग्रेस विरोध कुलबुलाने लगा था। जिले के  अखबार में लिखना भी शुरू कर चुका था।   इंदिरा गांधी को प्रचंड विजय मिली तो एक छोटे साप्ताहिक गया समाचार में मेरा  लेख छपा। इस लेख में मैंने लिख दिया था, “जनता ने लोकतंत्र के साथ जो गद्दारी की है, उसकी सजा उसे मिलेगी।” बाद में सयाना हुआ और समझ बढ़ी तो  मुझे अपनी इस मूर्खता का एहसास हुआ।

यह भी पढ़ेंः बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले ‘बंगाली-बिहारी’ मुद्दे को हवा

यह एक किशोर मन की त्वरित प्रतिक्रिया थी, जिसमें विवेक पर गुस्सा हावी था। लेकिन आज देख रहा हूँ कि मोदी को शानदार कामयाबी मिलने के बाद स्थापित दलों के साथ-साथ  पढ़े-लिखे बौद्धिक लोग भी इस जीत को पचा नहीं पा रहे तो आश्चर्य होता है। सोचना पड़ रहा कि एक किशोर मन की प्रतिक्रिया और बौद्धिक प्रतिक्रिया में अंतर कहाँ रह गया है।

यह भी पढ़ेंः बंगाल में समय से पहले हो सकता है विधानसभा चुनाव

आज कोई जनता को मूर्ख बता रहा तो कोई कह रहा कि लोकतंत्र मूर्खों का ही शासन है। तरह-तरह से जनता को कोसा जा रहा और जनादेश को स्वीकार करने या उसका सम्मान करने से इंकार किया जा रहा। यह सब अपना दोष दूसरे पर मढ़ने जैसा है। याद रखना चाहिए कि जनादेश का सम्मान नहीं कर आप लोकतंत्र में ही अविश्वास कर रहे। सम्मान का मतलब नतमस्तक होना नहीं होता।

यह भी पढ़ेंः बिहार, बंगाल समेत देशभर के विपक्षी दलों में मचा है घमासान 

आपके पास अगले चुनाव में जनादेश को अपने पक्ष में कर लेने का पूरा मौका है। 1971 के बाद 1977 में हुए चुनाव का नतीजा याद होगा। लेकिन अगर आप जनता को ही अविश्वास की नजरों से देखने लगेंगे, उसे मूर्ख बताकर अपने अहं की तुष्टि में लग जायेंगे तो 1977 की तरह 2024  नहीं हो पायेगा। आपको सोचना है कि क्या आप 2024 को 1977 बनाने को तैयार हैं? फिलहाल तो उसका कोई संकेत नहीं मिल रहा। लेकिन वक्त है। अनुभवों से सीख लेना होगा। खुद में सुधार करना होगा। तब वह हो सकता है। जनादेश का सम्मान कीजिए और अगले जनादेश को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू कीजिए। जनता और जनादेश को नकार कर नया जनादेश नहीं हासिल कर सकते।

यह भी पढ़ेेंः RJD का जनाधार बिहार में खत्म नहीं हुआ है, रणनीति बदलनी होगी

यह भी पढ़ेंः हिंदी साउथ वाले भी सीखना चाहते हैं, विरोध राजनीतिक है

 

- Advertisement -