भाजपा से भाग रहे नीतीश, नहीं गये नरेेंद्र मोदी की आगवानी करने

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अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं
अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं

प्रधानमंत्री का स्वागत करने गया पहुंचे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी

पटना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार की धरती गया आये, विमना से उतरे, कुछ देर ठहरे और झारखंड के लिए हेलीकाप्टर से निकल गये। नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए उपमुख्यमंत्री व भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी पहुंचे, लेकिन नीतीश पटना में ही दूसरे कामों में लगे रहे। उनकी आगवानी के लिए नीतीश कुमार का गया नहीं जाना बदले राजनीतिक हालात में कई सवाल खड़े करता है। ताजा मौका है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश का विरोध नीतीश कुमार ने किया है।

हाल के दिनों में भाजपा और जदयू के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे। जदयू अपनी शर्तों और उसूलों पर काम कर रहा है, जिससे भाजपा की लानत-मलामत हो रही है। सरकार में भाजपा को साथी बनाने के बावजूद नीतीश कुमार कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ रहे, जिससे भाजपा की किरकिरी न हो। अगर गिन कर बताया जाये तो तीन ऐसे मौके आये हैं, जब भाजपा को जदयू ने झटका दिया है।

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पहला झटका जदयू ने सीटों की शेयरिंग को लेकर भाजपा को दिया। लगातार बिहार में नीतीश को एनडीए का बड़ा भाई मानने की जदयू नेताओं-प्रवक्ताओं की मांग और दबाव का असर यह हुआ कि भाजपा को झुकना पड़ा। उसने अपने बराबर 17 सीटें नीतीश कुमार के जदयू को दे दी। ऐसा करते समय भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में जीतीं अपनी पांच सीटों का सौदा (त्याग) नीतीश के कारण करना पड़ा।

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दूसरा मौका राम मंदिर पर अध्यादेश को लेकर आया। भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की पूरी तैयारी हो गयी थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कह दिया था कि सरकार को मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाना चाहिए। भाजपा के दूसरे अनुषंगी संगठन भी अध्यादेश के पक्ष में थे। एनडीए की घटक पार्टी सिवसेना के उद्दऴ ठाकरे तो इसके लिए यात्राएं भी शुरू कर चुके थे। साधु-संतों के समागम का दौर शुरू हो गया था। सिर्फ नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने साफ कह दिया कि मंदिर पर अध्यादेश के वे पक्षधर नहीं हैं। उनके सुर में एनडीए की दूसरी सहयोगी पार्टी लोजपा के नेता रामविलास पासवान ने भी सुर मिला दिया। हाल तक एनडीए के साथ रही रालोसपा (अब अलग) के नेता उपेंद्र कुशवाहा तो अध्यादेश के खिलाफ बोलते-बोलते विदा हो गये। 2014 से एनडीए के साथी रहे कुशवाहा को भी नीतीश के कारण ही जाना पड़ा और भाजपा ने इस साथी को विदा करना मुनासिब समझा।

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भाजपा के लिए तीसरी मुसीबत नीतीश ने तब खड़ी की, जब तीन तलाक बिल लोकसभा से पास होकर राज्यसभा आया। एनडीए के दमदार साथी होने के बावजूद नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के राज्यसभा सदस्य वशिष्ठ नारायण सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि तीन तलाक बिल पर राज्यसभा में जदयू का साथ भाजपा को नहीं मिलेगा। अपने सूबे में प्रधानमंत्री की आगवानी करने नीतीश का नहीं जाना भी इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।

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