वोट पाने के लिए ममता बनर्जी ने हिन्दू देवी-देवताओं को भी बांटा

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ममता बनर्जी की जीत वामपंथी संस्कृति की ही जीत है। बंगाल से वामपंथियों का सूपड़ा साफ होने वालों को पहले बंगाल की संस्कृति समझ लेनी चाहिए।
ममता बनर्जी की जीत वामपंथी संस्कृति की ही जीत है। बंगाल से वामपंथियों का सूपड़ा साफ होने वालों को पहले बंगाल की संस्कृति समझ लेनी चाहिए।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। वोट पाने के लिए ममता बनर्जी ने हिन्दुओं के देवी-देवताओं का भी बंटवारा कर दिया। ममता ने कहा- राम से बड़ी हैं दुर्गा। आदिवासियों के देवता राम नहीं हैं। उदाहरण के साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने झाड़ग्राम की सभा में इसे लोगों को समझाने की कोशिश की। हिन्दुओं को देवी-देवताओं के नाम पर बांट कर उन्होंने एक नयी बहस को तो जन्म दे दिया, लेकिन चुनावी मौसम में ऐसी बातों का मकसद साफ है कि कैसे हिन्दू वोटों का बंटवारा हो और उन्हें इसका लाभ मिल जाये।

ममता न केवल हिन्दुओं के देवी-देवताओं को लेकर नयी मान्यता गढ़ रही हैं, बल्कि आदिवासियों को हिन्दुओं से अलग बताने की भी उनकी कोशिश है। झाड़ग्राम आदिवासी बहुल इलाका है। आदिवासियों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उन्होंने कहा कि आदिवासियों के देवता मरंगबुरू हैं। आदिवासी दुर्गा या काली को तो मानते-पूजते हैं, लेकिन राम को नहीं। सभा में जुटी भीड़ की ओर इशारा कर उन्होंने पूछा- अब आप ही बताइए कि आप लोग दुर्गा या काली को  पूजेंगे  या जय  श्री राम बोलेंगे? यह कहते हुए ममता बनर्जी ने राम बड़े या दुर्गा, इसकी उदाहरण के साथ व्याख्या भी कर डाली। ममता ने कहा कि रामचंद्र ने रावण वध के लिए दुर्गा की पूजा की थी। इससे समझ में आता है कौन बड़ा है- रामचंद्र या दुर्गा।

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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी  ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा आपको अपना धर्म पालन करने से रोकेगी। आपको जय श्रीराम बोलना होगा। आप जय श्रीराम तो बोल नहीं सकते। इतना कह कर बनर्जी ने  आदिवासी, बंगाली और गैर बंगाली हिन्दुओं में  एक विभाजन रेखा खींचने की कोशिश की। उन्होंने यह साबित करना  चाहा कि दुर्गा रामचंद्र से बड़ी देवी हैं और हम दुर्गा की पूजा करते हैं। मतलब रामचंद्र बोलने वाले लोगों को वोट मत दीजिए।

इससे एक  बात स्पष्ट हो रही है कि  ममता बनर्जी को पता चल गया कि हिन्दू वोट का ध्रुवीकरण हो गया है। इसे किसी भी तरह   तोड़ना जरूरी है। इसके लिए देवी-वताओं के बीच दरार ही क्यों न पैदा करनी पड़े। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि  राम शब्द के साथ  आम बंगाली भद्र लोगों के  सामने बिहार और  यूपी वाले लोगों का चेहरा  निकल कर सामने आता है  और  दुर्गा शब्द के साथ बंगाली लोगों में  अपनी अस्मिता का प्रकाश दिखता है। हालांकि जो दुर्गा को  पूजते हैं, वे राम को भी मानते हैं। लेकिन उत्तर  भारतीय और बंगालियों की अस्मिता के बीच लड़ाई कराने की कोशिश ममता जान बूझकर कर रही हैं। पूरे भारत में राम शब्द से  लोगों के बीच जो श्रद्धा और भक्ति का भाव  उत्पन्न होता है,  बंगाल में उसी तरह दुर्गा या काली के नाम पर  लोगों में श्रद्धा और भक्ति का भाव दिखता है।

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