लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में भूचाल लाने की तैयारी में

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लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में भूचाल लाना चाहते हैं। दिल्ली में बीमारी के नाम पर बैठ कर बिहार की राजनीति में उलट-फेर की वे कई चालें चल रहे हैं।
लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में भूचाल लाना चाहते हैं। दिल्ली में बीमारी के नाम पर बैठ कर बिहार की राजनीति में उलट-फेर की वे कई चालें चल रहे हैं।

पटना। लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में भूचाल लाना चाहते हैं। दिल्ली में बीमारी के नाम पर बैठ कर बिहार की राजनीति में उलट-फेर की वे कई चालें चल रहे हैं। इसकी दो ताजा मिसाल अब तक सामने आ चुकी हैं। उनके निशाने पर नीतीश सरकार को सहयोग दे रहीं उन दो पार्टियां है, जो कभी महागठबंधन का हिस्सा हुआ करती थीं। विधानसभा चुनाव के वक्त सीटों के बंटवारे के सवाल पर ऐन मौके पर दोनों को एनडीए ने झटक लिया। इनके 4-4 विधायक अभी हैं और इतनी छोटी संख्या के बावजूद दोनों दल इसलिए महत्वपूर्ण हो गये हैं कि इनमें सत्ता का समीकरण बनाने-बिगाड़ने की ताकत है।

इन दोनों दलों में एक है हम (से), जिसके नेता नीतीश कुमार की अनुकंपा पर ही मुख्यमंत्री रह चुके जीतन राम मांझी और दूसरा दल है- वीआईपी, जिसके नेता हैं मुकेश सहनी। दोनों से लालू प्रसाद सीधे बात कर रहे हैं। अपने जन्मदिन के मौके पर बड़े बेटे तेजप्रताप के माध्यम से लालू प्रसाद यादव ने पहले जीतन राम मांझी से बात की। फिर मुकेश सहनी से उन्होंने अलग से बात की। तेजप्रताप से मुलाकात को जीतन राम मांझी ने सौजन्यमूलक कहा, लेकिन मुकेश सहनी और लालू प्रसाद की फोन पर हुई बातचीत की पुष्टि मुकेश सहनी के करीबी कर रहे हैं।

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दरअसल बिहार में महागठबंधन और एनडीए का जो स्वरूप है, उसमें सरकार और विपक्ष में विधायकों की संख्या का आंकड़ा इतना कम है कि थोड़ी सी इधर-उधर के बाद सरकार बन-बिगड़ सकती है। नीतीश सरकार को 127 विधायकों का समर्थन है और महागठबंधन के पास अभी 110 विधायक हैं। अगर जीतन राम मांझी की हम (से) और मुकेश सहनी की वीआईपी का मन बदला तो नीतीश कुमार के पास 119 विधायक बचेंगे और सरकार अल्पमत में आ जाएगी। वहीं आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के पास 118 विधायक हो जाएंगे। सरकार बनाने के लिए 122 विधायक जरूरी हैं।

दोनों की स्थिति सरकार बनाने लायक तो नहीं रह जाएगी, लेकिन इसमें क्रिस्टल का काम ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम कर सकती है। उसके पास 5 विधायक हैं। विचारधारा के हिसाब से भी ओवेसी और आरजेडी करीब दिखते हैं। बीजेपी के साथ रहने के कारण जेडीयू के साथ शायद ही वे आ पायें। यानी बिहार में फिलहाल किंग मेकर की भूमिका में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी हैं तो बदली स्थितियों में यह भूमिका ओवैसी की पार्टी की हो जाएगी। वे जिसे चाहें उसकी सरकार बनवा सकते हैं।

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खतरे को नीतीश कुमार भी भांप रहे हैं। इसलिए कई जिलों में दलितों पर अल्पसंख्यकों के अत्याचार के अपने बड़े सहयोगी दल बीजेपी के आरोपों पर उन्होंने चुप्पी साध ली। जिन इलाकों में ऐसे अत्याचार के आरोप लगाये गये, वहीं से ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायक आते हैं। उन इलाकों में अल्पसंख्यक आबादी का वर्चस्व भी है। इधर पूर्व सांसद और जेल में सजा काट रहे शहाबुद्दन की मौत के बाद जिस तरह ओवैसी के विधायक एक साथ उनके बेटे से मिलने सीवान पहुंचे, उससे अनुमान लगाया जाता है कि ओवैसी अपनी पार्टी का बिहार में विस्तार चाहते हैं। शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा जनप्रतिनिध न रहते हुए भी इनदिनों हाट केक बने हुए हैं। वे अपने पिता-माता की पुश्तैनी पार्टी आरजेडी से नाराज बताये जाते हैं। उन्हें इस बात से दुख पहुंचा है कि पिता की मौत के बाद दिल्ली में रहते हुए भी तेजस्वी यादव वहां नहीं पहुंचे।

हालांकि आरजेडी की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें भी शुरू हो गयी हैं। पहले लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप उनके घर पहुंचे, बाद में बाहुबली सांसद रह चुके प्रभुनाथ सिंह के बेटे ने भी उनसे मुलाकात की। उसके बाद पैरोल पर घर आये प्रभुनाथ सिंह से मिलने शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा भी उनके घर आये। तेजस्वी यादव अब तक उनके घर नहीं गये हैं। बताया जाता है कि लालू प्रसाद के इशारे पर ही प्रभुनाथ सिंह के परिवार ने शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा को समझाना-मनाना शुरू किया है।

बहरहाल, लालू प्रसाद बिहार में सत्ता पलट के अपने मकसद में कितना कामयाब होते हैं, यह तो समय बतायेगा, लेकिन बिहार की सियासत बारिश के मौसम में भी गरमा गयी है। जीतन राम मांझी से तेजप्रताप की मुलाकात और फोल पर लालू से उनकी बातचीत की खबरें सामने आने पर पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि बिहार में एनडीए एकजुट है। तेजप्रताप और मांझी की मुलाकात का यह अर्थ कत्तई नहीं निकाला जाना चाहिए कि वे एनडीए छोड़ रहे हैं।

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