बंगलादेश की मान्यता के लिए जनसंघ ने आन्दोलन किया था, यह सच है

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी में कहा कि ‘‘भारत में जब भी औरंगजेब पैदा हुआ, तब इस मिट्टी से शिवाजी का भी उदय हुआ.’’
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी में कहा कि ‘‘भारत में जब भी औरंगजेब पैदा हुआ, तब इस मिट्टी से शिवाजी का भी उदय हुआ.’’
  • शेष नारायण सिंह
शेष नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
शेष नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

बंगलादेश की मान्यता के लिए जनसंघ ने आन्दोलन किया था, यह सच है। मेरे कई मित्र शामिल भी हुए थे। संभव है कि नरेंद्र मोदी भी उसमें शामिल हुए हों। उनके इस आशय के बयान पर घमासान मचा है। अच्छे पत्रकार भी उनके इस बयान पर संदेह जताते हुए आलोचना कर रहे हैं।

पत्रकारिता के पतन का रोना रोते बहुत लोग मिल जायेंगे। उनमें से बहुत से मेरे मित्र हैं, जो यह मानने लगे हैं कि  प्रधानमंत्री का विरोध करना ही बहुत उच्चकोटि की पत्रकारिता है। अभी सात  साल पहले तक वे लोग डॉ मनमोहन सिंह का विरोध करते थे और अब नरेंद्र मोदी का विरोध करना अपना धर्म समझते हैं। अजीब तब लगता है जब गलत तथ्यों के आधार पर विरोध करते हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढाका में अपने भाषण में कह दिया कि जब  वे 20-22 साल के थे तो उन्होंने बंगलादेश की आजादी के लिए आन्दोलन में हिस्सा लिया था। फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया मंचों पर इस बत पार हल्ला मचा हुआ है कि नरेंद्र मोदी ने गलतबयानी की। यह आरोप निराधार है।

हुआ यह था कि जब शेख मुजीब ने 26 मार्च 1971 के दिन स्वतंत्र बंगलादेश की घोषणा कर दी और The Provisional Government of The People’s Republic Of Bangladesh की स्थापना हो गयी। शुरू में यह सरकार 10 फुट लम्बे और 10  फुट चौड़े कमरे में  ढाका में ही थी। बाद में जब पाकिस्तानी फौज का आतंक बढ़ा तो इसे कलकत्ता शिफ्ट कर दिया गया। इस सरकार की स्थापना  10 अप्रैल को हुई थी।

उसके प्रधानमंत्री थे ताजुद्दीन अहमद। 6 दिसंबर को भूटान ने बंगलादेश को एक  स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी। उसके बाद बर्मा (म्यांमार) की मान्यता मिली। भारत  ने इन दोनों देशों के बाद मान्यता दी। संयुक्त राष्ट्र की मान्यता अप्रैल 1972 में मिली।

जब  बंगलादेश की सरकार की स्थापना कलकत्ता में हुई तो भारत के अधिकतर विश्वविद्यालयों में परीक्षा चल रही थी। उसके बाद गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो गयीं। जब जुलाई में कालेज खुले तो कई विश्वविद्यालयों में छात्रों ने जुलूस निकाले और बंगलादेश की सरकार को मान्यता देने के लिए मांग शुरू हो गयी। मैं एमए का छात्र था। मैं तो किसी जुलूस आदि में नहीं गया, लेकिन हमारे शहर में जनसंघ  और सोशलिस्ट पार्टी वालों ने जुलूस आदि  निकाला।

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, क्योंकि कांग्रेस की सरकार थी। इंदिरा गांधी ने तो वास्तव में बंगलादेश मुक्ति संग्राम की सबसे बड़ी समर्थक  थीं, लेकिन मान्यता देने के लिए वे सही समय का इंतजार कर रही थीं। बंगलादेश को मान्यता दिलवाने के लिए नरेंद्र मोदी की पुरानी पार्टी  जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी पार्टी का आवाहन किया था। जहां भी उनका आधार मज़बूत था, वहां धरने-प्रदर्शन हुए।

बहुत सारे जिलों में सत्याग्रह हुए, दिल्ली में संसद भवन के सामने स्वतन्त्रता दिवस के ठीक पहले 1971 में एक सभा भी हुई। उस सभा में मेरे सहपाठी विश्वंभर श्रीवास्तव और जौनपुर के कई नेता दिल्ली  गए थे। उनको यह बताया गया था कि रैली में भी शामिल हो जाना और राजधानी में आजादी का जश्न भी देखा लेना। अमेठी से रवीन्द्र  प्रताप सिंह और बागपत से मंगूराम त्यागी भी शामिल  हुए थे, जो उस कार्यक्रम के संस्मरण सुनाया  करते थे। हो सकता है  कि गुजरात से जो टीम आयी हो, उसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल रहे हों। इसलिए उनकी इस बात का मजाक उड़ाना ठीक नहीं है। यह उनको गलत साबित करने की कोशिश तो हो सकती है, लेकिन पत्रकारिता किसी भी कीमत पर नहीं है। पत्रकार का कर्त्तव्य तो सच बोलना और लिखना ही है।

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