डॉ. अम्बेडकर ने ‘प्रबुद्ध भारत’ निकाला और समाज में एकता पर दिया जोर

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कृपाशंकर चौबे डॉ. अम्बेडकर ने चार फरवरी 1956 को साप्ताहिक ‘प्रबुद्ध भारत’ निकाला। हर अंक में पत्रिका के शीर्ष की दूसरी पंक्ति में लिखा होता था- डा. अम्बेडकर द्वारा प्रस्थापित।
कृपाशंकर चौबे डॉ. अम्बेडकर ने चार फरवरी 1956 को साप्ताहिक ‘प्रबुद्ध भारत’ निकाला। हर अंक में पत्रिका के शीर्ष की दूसरी पंक्ति में लिखा होता था- डा. अम्बेडकर द्वारा प्रस्थापित।
  • कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे

डॉ. अम्बेडकर ने चार फरवरी 1956 को साप्ताहिक ‘प्रबुद्ध भारत’ निकाला। हर अंक में पत्रिका के शीर्ष की दूसरी पंक्ति में लिखा होता था- डा. अम्बेडकर द्वारा प्रस्थापित। डॉ. अम्बेडकर समाज में एकता को सर्वोच्च महत्व देते थे। साप्ताहिक ‘प्रबुद्ध भारत’ के 27 अक्तूबर, 1956 के अंक में समाज में एकता ही सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण शीर्षक टिप्पणी में उन्होंने कहा था, “अब उम्मीदवार चुनने का काम लोगों को ही करना चाहिए। आपको जनता में काम करना चाहिए। उनकी कठिनाइयों के बारे में आपको अपनी ताकत के मुताबिक आवाज बुलन्द करनी चाहिए। आप लोगों को उनके सुख-दुख में शामिल होने का प्रयास करना चाहिए। मैं भण्डारा के चुनाव में हार गया। इस बात का मुझे कभी दुख नहीं हुआ। इस चुनाव में मुझे काफी वोट मिले। अपने वोटों को छोड़ दें तो अन्य समाज के लोगों ने भी मुझे वोट दिए हैं। यह बात मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है। मैं हार-जीत की कभी परवाह नहीं करता। आप लोगों को भी इसी तरह कर्त्तव्यनिष्ठ होने का प्रयास करना चाहिए ताकि अन्य समाज के लोगों को भी यह लगे कि आप लोगों को ही वोट देना चाहिए। मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि आप लोग इस बात पर गम्भीर रूप से सोचकर अपना राजनीतिक जीवन और कार्य को आगे बढ़ाएँगे।”

डॉ. अम्बेडकर मानते थे कि मानसिकता बदले बगैर कोई परिवर्तन नहीं आएगा। उन्होंने ‘प्रबुद्ध भारत’ के 4 अगस्त 1956 के अंक में लिखा था कि जब हम बुद्ध के दर्शन की ओर देखते हैं और उनके दर्शन के बारे में सवाल करते हैं तब इस सम्बन्ध में बुद्ध क्या कहते हैं? बुद्ध ने दुनिया को एक महान बात बताई है। बुद्ध का कहना है कि मनुष्य की मानसिकता में परिवर्तन आए बगैर और दुनिया की मानसिकता में बदलाव आए बगैर दुनिया में सुधार, परिवर्तन या उत्थान सम्भव नहीं है। बुद्ध की शिक्षा के मुताबिक मनुष्य की मानसिकता में परिवर्तन आया और उसके मुताबिक उसने साम्यवादी विचारधारा को अपनाकर उस पर ईमानदारी के साथ अमल किया तथा उसे जीवन में उतारने का प्रयास किया तो उसे वह निश्चित तौर पर अंजाम दे सकता है। उसे स्थायित्व प्रदान कर सकता है। इस स्थिति में मनुष्य को कानून की बेड़ियों में जकड़ने के लिए फौजी या पुलिस की कार्रवाई की कोई जरूरत महसूस नहीं होगी। इस तरह की स्थिति क्यों आ सकती है? इसका जवाब यह है कि नैतिकता के उचित रास्ते पर चलने के लिए आप लोगों की मानसिकता का निर्माण बुद्ध के दर्शन के आधार पर हुआ होगा। आपकी मानसिकता ही पूरी तरह से सन्मार्ग से संस्कारित हुई होगी। आप लोगों को साम्यवाद के प्रभाव से घबराने की कोई बात नहीं है। उससे गुमराह होने की कोई बात नहीं है या हड़बड़ाने की भी बात नहीं है। यदि आप लोगों ने बौद्ध विचारधारा और दर्शन का एक दसांश हिस्सा भी अपने जीवन में उतार लिया तो साम्यवाद जो कुछ निर्माण करना चाहता है, वह आप लोग करुणा, न्याय और सद्भावना के बल पर निर्माण कर सकते हैं, इस बात में बिल्कुल सन्देह नहीं है।”
अम्बेडकर की पत्रकारिता देशवासियों को आगाह करती थी। ‘प्रबुद्ध भारत’ के 27 अक्तूबर, 1956 के अंक में डॉ. अम्बेडडकर ने लिखा था कि हम लोगों ने नए संविधान को स्वीकार किया है। हम लोगों को इस संविधान प्रणाली का अनुभव नहीं है। उसे इस देश में सतर्कता से नहीं अपनाया गया तो इस देश का विनाश होगा। केवल सफेद टोपियों से काम नहीं चलेगा सारे राष्ट्र को इकट्ठा बैठकर राजनीति का अध्ययन करना चाहिए। अकेले नेहरू को ही अक्ल है, ऐसी बात नहीं। इस देश में कई लोग नेहरू से भी अधिक बुद्धिमान हैं। जब मैं मन्त्रिमंडल में था, उस समय सप्ताह में एक बार कैबिनेट की बैठक होती थी। वहाँ मैंने नेहरू को अच्छी तरह से परखा और देखा है। वे खोखले तरबूज की तरह हैं। इसके अलावा उनके पास कुछ नहीं है। (समाप्त)
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