बिहार में फिर पक रही सियासी खिचड़ी, JDU-BJP में दिख रही दरार

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बीजेपी नीतीश कुमार को बिदकाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही। लगता है कि बीजेपी नीतीश कुमार को खुद किनारे होने पर मजबूर कर देगी। (फाइल फोटो)
बीजेपी नीतीश कुमार को बिदकाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही। लगता है कि बीजेपी नीतीश कुमार को खुद किनारे होने पर मजबूर कर देगी। (फाइल फोटो)

पटनाः बिहार में फिर पक रही है सियासी खिचड़ी। JDU-BJP में दरार दिखने लगी है। भाजपा के कोर एजेंडों पर एनडीए के घटक जेडीयू की आपत्ति जगजाहिर है। कई बार तो हालात ऐसे बने कि लगा NDA अब टूटा, तब टूटा। कश्मीर में धारा 370, तीन तलाक कानून, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और अब नागरिकता जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर भाजपा से जदयू की सीधी टकराहट होती रही है। यह अलग बात है कि जदयू ने दो मौकों पर अपने अंदाज में भाजपा का साथ भी दिया है। धारा 370 के मुद्दे पर जदयू के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया। इससे बिल पास कराने में भाजपा का रास्ता आसान हो गया। सीएए के लिए लाये बिल का जदयू ने समर्थन किया। एनआरसी और एनपीआर पर पर बिहार एनडीए में टकराहट के स्वर फिर फूटने लगे हैं।

जेडीयू भाजपा के इन कोर मुद्दों पर भले अलग राय रखता हो, लेकिन टकरा कर उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला। भाजपा भी अपनी कमजोरी से वाकिफ है। वह जानती है कि बिहार में अपने दम पर वह कभी सरकार नहीं बना सकती है। हाल के महीनों में तीन सूबों- महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड से सत्ता जिस तरह भाजपा के हाथ से फिसली है, इसलिए वह जेडीयू से पंगा लेने से परहेज करेगी। जेडीयू को भी इस बात का आभास है कि अपने बूते बिहार में काबिज रहना संभव नहीं है। इसलिए वह भाजपा के मुद्दों पर तमाम ना-नुकुर के बाद उसका साथ छोड़ने से बचेगी। यह अलग बात है कि राजनीति में कब कौन-सा समीकरण बन जाये, कहा नहीं जा सकता।

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कभी किसी ने सोचा नहीं था कि राजद शासन के जंगल राज का राग अलाप कर भाजपा के साथ सरकार चलाने वाला जेडीयू कभी उसी आरजेडी की गोद में बैठने के लिए उससे अलग हो सकता है। लेकिन इस बार शायद 2015 की पुनरावृत्ति जेडीयू नहीं करेगा। इसलिए कि विधानसभा चुनाव के लिए पोस्टर, नारे और जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत नीतीश कुमार ने जो कसरत शुरू की है, उसमें निशाने पर आरजेडी ही है।

यह अलग बात है कि एनआरसी के मुद्दे पर जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की आपत्ति के बाद परोक्ष तौर पर उनके बयान को नीतीश कुमार ने समर्थन दे दिया। नीतीश ने यहां भी चालाकी की। उन्होंने खुद नहीं कहा कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा, बल्कि इसे प्रशांत किशोर की जुबान से कहलाया कि नीतीश जी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि बिहार में यह लागू नहीं होगा। हालांकि जब प्रशांत किशोर ने एनआरसी के विरोध में पहली दफा बयान दिया और स्मरण दिलाया कि यह पार्टी संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, तब नौकरशाही से राजनीति में आये आरसीपी सिंह ने उन्हें दबी जूबान खरी खोटी सुनाई थी। इससे लोगों को लगा था कि जेडीयू में इसे लेकर विवाद है। लेकिन प्रशांत किशोर की नीतीश से मुलाकात के बाद आये उनके बयान ने जेडीयू के धुरंधर नेताओं को चौंका दिया था। सबने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली। तब से कहीं कोई स्वर फूटता भी है तो जेडीयू के लोग यही दोहराते हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा।

अब तीसरा मुद्दा एनपीआर (नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर) को लेकर आया है। नीतीश ने इस पर खामोशी ओढ़ ली है, लेकिन उनके दल के लोग माथापच्ची करने लगे हैं। बिहार में जेडीयू के नेतृत्व वाली सरकार में भागीदार भाजपा कोटे से उपमुख्यमंत्री ने एनपीआर पर प्रेस कांफ्रेंस कर साफ कर दिया कि यह बिहार में लागू होगा। इसके लिए कट आफ डेट भी उन्होंने बता दिया। उन्होंने यहां तक धमकी दे डाली कि कोई राज्य इसे लागू करने से मना नहीं कर सकता। बिहार में अगर कोई अधिकारी-कर्मचारी ऐसा करता है तो उसके खिलाफ न सिर्फ कार्रवाई होगी, बल्कि उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा। उनके इस बयान पर जेडीयू से दो वरिष्ठ नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आई है। सबसे पहले श्याम रजक ने इस पर आपत्ति जतायी और कहा कि इस मसले पर न कैबिनेट में कोई चर्चा हुई और न विधायक दल की बैठक में। ऐसे में सुशील कुमार मोदी इसे बिहार में लागू करने की घोषणा कैसे कर सकते हैं। जेडीयू के सचिव पवन वर्मा ने भी कुछ इसी अंदाज में इसका विरोध किया है। श्याम रजक ने तो यहां तक कह दिया कि एनपीआर पर सुशील मोदी का बयान उनकी अपनी निजी राय हो सकती है, इसे बिहार सरकार का फैसला नहीं माना जाना चाहिए। अगले ही दिन जेडीयू के सचिव पवन वर्मा ने और स्पष्ट तौर पर इसे जगजाहिर किया कि बिहार में नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीए को लेकर कोई धनात्मक राय नहीं है। यह भाजपा की राय हो सकती है, जेडीयू का इससे कोई लेना-देना नहीं।

वैसे पहली नजर में देखें तो प्रशांत किशोर, श्याम रजक और पवन वर्मा के लगातार आते गए बयानों से यह लगता है कि बिहार एनडीए में ऑल इज नॉट वेल। अगर इसे दूसरे एंगल से देखना चाहें तो इसे इसका आकलन इस रूप में कर सकते हैं कि अपने नेताओं को खुले बयान देने की छूट देख कर नीतीश कुमार परिस्थितियों का आकलन कर रहे हैं। अगर हालात जेडीयू के अनुकूल बने तो आखिरकार जेडीयू कोई कड़ा रुख अपना ले तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। वैसे भी नीतीश कुमार का अब तक का यही अंदाज रहा है कि वे स्थितियों-परिस्थितियों का अनुमान- आकलन करने के बाद अंतर्मन से कोई निर्णय लेते हैं।

क्या कहा था सुशील कुमार मोदी ने

नीतीश कुमार-सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)
नीतीश कुमार-सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)

पाकिस्तान में किस प्रकार धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है, इसका हालिया उदाहरण ननकाना साहिब में जगजीत कौर का अपहरण के बाद धर्मान्तरण है। पाक मुस्लिमों द्वारा गुरूद्वारा पर हमला और धमकी कि इसको गिराकर मस्जिद बना दी जाएगी, ऐसे ही हालात है, जिनमें सीएए प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने बताया कि नागरिकता संशोधन विधेयक ऐसे ही धार्मिक कारणों से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने से संबंधित है।

इसी धार्मिक प्रताड़ना के कारण उपरोक्त तीन देशों में अल्पसंख्यको की आबादी लगातार घटती जा रही है।

उन्होंने आंकड़े दिये कि पाकिस्तान में 1947 में 23 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी, जो 2011 में 3.7 प्रतिशत रह गयी है। बांग्लादेश में इसी दौरान 22 प्रतिशत हिन्दू थे, जो अब 7.8 प्रतिशत रह गये हैं। अफगानिस्तान में 1992 में दो लाख हिन्दू और सिक्ख थे, जो 2018 में सिर्फ 500 रह गए हैं।

बिहार में भी 1947 के बाद 3,50,000 हिन्दू शरणार्थी आए, जिन्हें मुख्यतः चम्पारण, पूर्णियां, कटिहार, भागलपुर में बसाया गया एवं कुछ लोगों को अररिया, सहरसा, गया, दरभंगा में बसाया गया। बिहार सरकार के आदेश पर आद्री द्वारा 2009 में 10,536 परिवार के 50,238 बंगाली हिन्दुओं का सर्वेक्षण किया गया, जिसमें अधिकांश अनुसूचित जाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के पाए गए। इन अधिकांश शरणार्थियों को कांग्रेस के कार्यकाल में जमीन आवंटित की गई और बसाया गया।

1964 में बड़ी संख्या में म्यांमार से हिन्दू आए, जिन्हें बिहार के कटिहार, पूर्णियां, अररिया और समस्तीपुर में जमीन सहित बसाया गया। वर्तमान में बिहार में एक भी उपरोक्त तीन देशों के प्रताड़ित एक भी नागरिक नहीं हैं। फिर भी बिहार में बंद, हिंसक प्रदर्शन का कार्यक्रम राजद व कांग्रेस के द्वारा किया जा रहा है। अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण देना या भारत में अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार (धारा 30) का अर्थ नहीं है कि आरक्षण सवर्णो के साथ भेदभाव है या धारा 30 हिन्दुओं के साथ भेदभाव करता है। इसी कारण पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सीपीएम नेता प्रकाश करात, वासुदेव आचार्य आदि समय-समस पर मांग करते रहें है कि पाकिस्तान, बंगलादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता दी जाए।

राष्टीय जनसंख्या रजिस्टर पर मोदी ने क्या कहा

अमित शाह का स्येवागत करते नीतीश कुमारः दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे? (फाइल फोटो)
ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे? (फाइल फोटो)

यूपीए सरकार के ही दौरान एक अप्रैल 2010 से 30 सितम्बर 2010 तक NPR बनाने का निर्णय  लिया गया। 2015 में इस NPR को इस आधार से जोड़कर डाटा को  Update किया गया। NPR 2020- UPA के समय में लिए गए निर्णय के अनुरूप अप्रैल-सितम्बर 2020 में  Census 2021 के मकान सूचीकरण एवं मकान गणना चरण के साथ NPR Database को अद्यतन करने का निर्णय लिया गया है।

NPR 2010 को ही 2020 में अद्यतन किया जा रहा है। कोई नया रजिस्टर तैयार नहीं किया जा रहा है। यह जनगणना का ही एक हिस्सा है, जिससे कोई राज्य इंकार नहीं कर सकता है। NPR में कोई दस्तावेज/प्रमाणपत्र नहीं लिया जाना है। NPR का निर्माण एक वैधानिक कार्रवाई है, जिसे कोई भी राज्य इंकार नहीं कर सकता है। जनगणना कार्य से इंकार करने पर सरकारी अधिकारी के लिए अर्थदंड के साथ तीन साल की सजा का प्रावधान है। उसी प्रकार NPR कार्य से इंकार करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ एक हजार दंड का प्रावधान है।

बिहार में NPR का कार्य 15 मई से 28 मई 2020 के दौरान जनगणना के प्रथम चरण मकान सूचीकरण एवं मकान गणना के साथ किया जाएगा। बिहार चुनाव में अब कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। इस बीच राजनीतिक समीकरणों में कोई बड़ा उलटफेर हो जाए, इससे किसी को इनकार नहीं करना चाहिए। 2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार जब पारंपरिक दोस्त बीजेपी को छोड़कर आरजेडी के साथ लड़ सकते हैं तो ऐसे में किसी नये समीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता। जेडीयू के भीतर से भाजपा के मुकाबले अधिक सीटों की मांग, सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर भाजपा के खिलाफ बयानबाजी ये कुछ ऐसे संकेत हैं, जिसे नीतीश के भाजपा से किनारे होने की कसरत भी मान सकते हैं।

तेजी से बदलते राजनीतिक हालात के बिहार पर असर

देश के राजनीतिक हालात बड़ी तेजी से बदल रहे हैं। खासकर सीएए, एनआरसी और फिलवक्त एनपीआर के सवाल पर देश की आबादी दो हिस्सों में बंट गयी है। इन मुद्दों पर देशस का एक वर्ग भाजपा का झंडाबरदार है तो दूसरा वर्ग ऐसे खेमे की तलाश में है, जो इन बिंदुओं का या इन फैसलों का विरोध करता हो। नीतीश कुमार के जनाधार की बात अगर करें तो उनके साथ भी मुसलमानों का ही तबका रहा है, जो आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। इसे ही लेकर आजरेडी ने MY (मुसलिम-यादव) समीकरण बनाया था। जाहिर है कि बिहार की आबादी में करीब 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाला मुसलिम तबका एक ऐसे दल या गठबंधन की तलाश में है, जो इन मुद्दों पर देश में मची तबाही को रोक सके। इनके साथ राजनीतिक खेमों-खांचों में बंटा हिन्दुओं का एक तबका भी है। नीतीश कुमार बमुश्किल आरजेडी से झटके अपने नये मुसलिम जनाधार को खोना नहीं चाहते। अपने कामों से तैयार किये पिछड़े-अति पिछड़े और महिलाओं में भी उन्होंने खासा आधार तैयार किया है। इसलिए बिहार विधानसभा के इस बार के चुनाव में वे एक-एक कदम फूंक कर रखेंगे।

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