बिहार में बीजेपी बनी बेचारी, घाटा उठा कर जदयू से निभायी यारी

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यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगेः अमित शाह का स्वागत करते नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगेः अमित शाह का स्वागत करते नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

दो सीटों पर जीतने वाले जदयू को भाजपा ने बना दिया बराबर का हिस्सेदार

नयी दिल्ली/ पटना। बिहार में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बड़ी बेचारगी की स्थिति में है। इसे किसी के लिए भी अब समझना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और जदयू के नीतीश कुमार ने आपसी गुफ्तगू के बाद संक्षिप्त प्रेस कांफ्रेंस कर भाजपा की बेचारगी को स्पष्ट कर दिया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 30 सीटों पर लड़ कर 22 सीटें हासिल करने वाली भाजपा सभी सीटों पर लड़ कर महज दो सीटों पर जीत हासिल करने वाली पार्टी जदयू के सामने घुटने टेक दिये और 2019 में बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। उधर उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया है। राजद नेता तेजस्वी से मिल कर संकेत दे दिया कि यदुवंशियों के दूध से खीर बना कर ही दम लेंगे।

दोनों दलों की आम सहमति से लिये गये इस फैसले में एनडीए के दो अन्य घटक दलों- लोजपा और रालोसपा को किसी ने पूछा तक नहीं। शायद यही वजह रही कि महीने पर यदुवंशियों के दूध से खीर बनाने का बयान देने वाले रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने प्रेस कांफ्रेंस के तुरंत बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में पार्टी की कमान संभाल रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात कर ली। यानी उन्होंने साफ संकेत दे दिया कि वह खीर बना कर ही दम लेंगे।

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भाजपा-जदयू के बीच बनी सहमति के संदेश साफ हैं। भाजपा 2014 में जीती अपनी 6-7 सीटें छोड़ने को इसलिए मजबूर हुई कि उसे पक्का यकीन हो चला है कि इस बार नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चलने वाला है। भाजपा के अंदरूनी सर्वे में यह बात आयी है कि पिछली बार की तरह कोई लहर नहीं चलेगी। उसे दोबारा सत्ता में आने के लिए अपने तमाम तीर-तुक्के चलने होंगे। चाहे राम मंदिर का मसला फिर से जीवित करना पड़े या दमदार सहयोगियों से किसी भी हाल में समझौता करना पड़े। अब उसने अगर अड़ियल रुख अपनाया तो नुकसान के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा।

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