बिहार की तरह झारखंड में भी बिगड़ सकता है महागठबंधन का स्वरूप

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झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)
झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)

रांची। बिहार की तरह झारखंड में भी महागठबंधन का स्वरूप बन-बिगड़ सकता है। फिलहाल हालात ऐसे ही नजर आ रहे हैं। विपक्ष का हर दल अपनी को सुपर समझ रहा है। बिहार में महागठबंधन की सबसे पड़ी पार्टी राजद ने अपने हिसाब से उपचुनाव के लिए सीटों का बंटवारा किया तो कांग्रेस ने मुंह फुला लिया और लोकसभा की एक व विधानसभा की पांच सीटों के लिए अपने हिसाब से उम्मीदवार तय कर दिये। राजद ने लोकसभा की एक सीट और विधानसबा की एक सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी। महागठबंधन के तीन घटक दल- जीतनराम मांझी की पार्टी- हम, मुकेश सहनी की पार्टी- वीआईपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को राजद ने कोई तरजीह नहीं दी। झारखंड में इसकी पुनरावृत्ति हो जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

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झारखंड में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)। विधानसभा के चुनाव नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित हैं। फिलहाल झारखंड में महागठबंधन का जो स्वरूप है, उसमें झामुमो के अलावा बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली पार्टी झारखंड विकास मोरचा (जेवीएम), कांग्रेस और राजद हैं। जदयू फिलहाल अपने बूते विपक्षी भूमिका तलाशने उतरा है। वामपंथी पार्टियां भी महागठबंधन में टकटकी लगाये हुई हैं।

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हवा में तैर रहीं सूचनाओं के मुताबिक बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम और जदयू के बीच बातचीत चल रही है। भले ही उसके नेता इस बात से इनकार करते हैं कि जदयू के साथ जेवीएम जाएगा, लेकिन इस बात को शिद्दत से कबूल करते हैं कि अगर ऐसा प्रस्ताव आता है तो उस पर विचार किया जा सकता है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव महागठबंधन की वकालत तो करते हैं तो लेकिन नेतृत्व यानी सीएम फेस के सवाल पर साफ-साफ नहीं बोलते। दूसरी तरफ झामुमो का कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान ही यह तय हो गया था कि लोकसभा चुनाव राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और विधानसभा चुनाव हेमंत सोरेन के नतृत्व में। झामुमो तो यहां तक दावा करता है कि इसके लिए लिखित समझौता हुआ था।

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कांग्रेस में जिस तरह आपसी कलह है, उससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि समझौते में प्रदेश नेतृत्व की नहीं सुनी जाएगी। प्रदेश के नेता चाहे जो दलील दें, केंद्रीय नेतृत्व झाममो के साथ ही रहेगा। अगर बिहार का फार्मुला कांग्रेस आलाकमान अपना है तो यकीन मानिए कि हेमंत सोरेन कांग्रेस को साथ लेकर चलना चाहेंगे और सींटों या नेतृत्व के सवाल पर जेवीएम ने ज्यादा खिचखिच की तो उसे दरकिनार कर देगा।

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