मलिकाइन के पातीः बाली उमिर, जनि बियहs ए बाबूजी !

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पावं लागीं मलिकार! काली माई के किरिपा आ बरम बाबा के असीरवाद से इहवां सब कुछ ठीक बा। तनी भर हमरे मिजाज ठीक ना रहल हा। काल्ह पांड़े बाबा के बड़का बेटवा के संगे डागदर कीहां गइल रहुवीं। डागदर कुवन कि तनी परेसर बढ़ल बा। ठंडा बचायेब। ऊ एगो दवाई लिखले बाड़े। दू दिन खइनी हां त अब ठीक बुझाता। कहत रहुवन डागदर कि अब जिनिगी भर एकरा के खाये के परी। परेसर कवन बेमारी ह मलिकार। हमरा त समझे में नइखे आवत। पहिले सरदी-बोखार होत रहल हा त दू-तीन दिन दवाई खा लिहला पर ठीक हो जाई। परेसर के बेमारी में जिनिगी भर दवाई खाये के परेला का मलिकार। पूछवीं कि काहें होला परेसर त ऊ कहे लगुवन कि ढेर जाने के कोशिश जनि करीं। दवाई रोज खात रहीं। ठंडा से बच के रहेब। अब रउरे बताईं मलिकार कि जिनिगी भर के एगो फालतू के खर्चा खड़ा हो गइल। दवाई खा के त मने उबिया जाई। कहत रहुवन डागदर साहेब कि जाड़ में ई बेमारी बढ़ जाला आ खतरा क देला। हम त अइसन डेराइल बानी मलिकार कि कहियो नागा ना करेब। रोज खा लिहल करेब। बाल-बच्चा खातिर जवन करे के परी, करेब।

ए मलिकार, काल्ह तेतहली के डागा मिसिर रउरा के खोजत आइल रहुवन। एह घरी ऊ दहेज आ लरिकाईं में लड़किन के शादी रोके खातिर कवनो काम में लागल बाड़े। जर-जलपान त करा दिहवीं। पांड़े बाबा के दुआर पर गांव भर के लोग के जुटवा के कवन एगो नाटक देखावत रहुवन। उनकरा संगे दू गो मेहरारुओ रहवी सन। ओह लोग के नाटक हमरो मन में बइठ गइल बा। रउरो के ओइमे के एगो बात हम सुनावत बानी। नन्हका अपना घसेटउवा (एंड्रायड) मोबइलवा में सगरी बतिया टेप कइले बा।

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भिखारी ठाकुर के नाच में जवनी गंतिया पाठ होत रहे, ओही तरे ऊ लोग पाठ करत रहुवे लोग। एक जानी एगो कहानी सुनावे लगवी- जब विदाई भइल त डोली में बइठल सुसुकत कनिया कनखी से देखली आ मन ही मन कहली- लउर लउकित त नाती के रूई अइसन धुन देतीं। नतिया के लाज-हाया त तनिको हइए नइखे। बूढ़ बानर अइसन मुंह पचकल बा। काया त सूख के झंउसल केंकरा अइसन लउकत बा। देह त संभरते नइखे, जनाना ई का संभारी। नाती के जरी दूगो पइसा का भइल कि ई घिरनी अइसन नाचे लागल। करजा-बियाज के बात ना रहित त हमार बाप कवनो दिन एकरा खूंटा एह बाली उमिर में ना बन्हिते।…..छहो महीना ना बीतल होई एक दिन मालूम भइल कि जवन उनकरा के बियह के ले आइल रहे, ऊ माहुर मिलल दारू पीयला से बगइचा में सुतले रह गइल। ओकरा बाद गीत रहुवे कि लड़की कहत बिया- बाली उमिर जनि बियहs ए बाबूजी!

अइसन कहानी रहुवे मलिकार कि हम त ठान लिहले बानी, केतनो दुर्दिन आ जाई नन्हकी के बिना पढ़वले-लिखवले बियाह ना करेब। केहू जोर-जरजस्ती करी त अपने माहुर खा लेब ओकरो के खिया देब, बाकिर नान्ह उमिर में बियाह के बतकही करे वाला के दुआर पर ठवर ना देब। डागा मिसिर बतावत रहुवन के नीतीश जी एह लोगन के गांव-गांव इहे बतावे खातिर भेजले बाड़े कि केहू कम उमिर में लड़किन के बियाह मत करो। कनिया अइसन रोवे के ना परे, एकरा खातिर ऊ लड़किन के बतावत रहुवन कि गरजीयन ढेर तबाह करे बियाह खातिर त लड़की पुलिस के जरी चल जा सन। नीतीश ई एगो नीमन काम करत बाड़े। दारू बन कइले, उहो पड़का काम भइल बा। रोज पीये वाला अब महीना-पंद्रह दिन पर कहीं से चोरा-छिपा के पीयत बा। बतावत रहुवीं पांड़े बाबा कि तीनगुना दाम पर लोग चोरउवा दारू कीन के पीयत बा।

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जाये दीं मलिकार, हमहूं कवन कथा-पुरान लेके बइठ गइनी। रउरो एह ठंडा में आपन खेयाल राखेब। परेसर वाला बेमारी त रउरो बा नू। दवाई ना छूटे के चाहीं। डाकदर इहे कहत रहुवन। थोड़ा लिखना, बेसी समझना।

राउरे, मलिकाइन       

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