ग्राउंड रिपोर्टः पूर्वी यूपी में गैर सवर्ण जातियां गठबंधन के साथ

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गठबंधन के नेता मायावती (दायें) व अखिलेश यादव (बायें)
गठबंधन के नेता मायावती (दायें) व अखिलेश यादव (बायें)
  • शेष नारायण सिंह
शेष नारायण सिंह
शेष नारायण सिंह

ग्राउंट रिपोर्टः पूर्वी यूपी में गैर सवर्ण जातियां गठबंधन के साथ हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती की एकता गणित भी है। साथ ही मनोविज्ञान ज्यादा है। वाराणसी से नरेंद्र मोदी की जीत पक्की मानी जा रही है। लेकिन वाराणसी के आसपास के क्षेत्रों में माहौल ऐसा नहीं है। वहां बीजेपी के उम्मीदवारों को हर मोड़ पर चुनौती मिल रही है। ज़मीन पर देखने से साफ़ पता लग जाता  है कि दलित और बैकवर्ड जातियों में एकजुटता है। यादव, जाटव और मुसलमान तो गठबंधन के साथ हैं ही, भदोही, जौनपुर और सुल्तानपुर में गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों से उनके गांव में जाकर बात करने से समझ में आ गया  कि वे लोग  भी गठबंधन के साथ हैं।

दिल्ली में यह बात सभी कहते रहते हैं कि पासी, कुर्मी, नाई, कुम्हार, कहार, धोबी आदि जातियां  यादव और जाटव  एकाधिकार से नाराज़ हैं और वे गठबंधन का विरोध कर रही हैं। लिहाजा बीजेपी के साथ हैं। बीजेपी के नेता/ प्रवक्ता भी यही कहते  हैं, लेकिन  जमीन पर जांच करने से पता चला कि ऐसा नहीं है। इस सन्दर्भ में  बहुत ही दिलचस्प वाकया हुआ।

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वाराणसी के एक बहुत ही महंगे होटल में बहुत सारे पत्रकार ठहरे हुए थे। नाश्ते के समय उनमें से एक ने प्रतिपादित करना शुरू किया कि पासी जाति के दलित बीजेपी के साथ हैं। अपनी बात को सही साबित करने के लिए उन्होंने बहुत सारे सैद्धांतिक और दार्शनिक तर्क दिए। एक अन्य पत्रकार उनको समझाने की कोशिश कर रहा था कि जमीन पर ऐसा नहीं  है, क्योंकि एक दिन पहले ही बड़े पैमाने पर गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव  दलितों से उनके गाँवों में बात की गयी थी और वे सभी गठबंधन के साथ थे। लेकिन दूसरा ज्ञानी, जिसने किसी गाँव की यात्रा नहीं की थी, अपने सिद्धांत को जमाये हुए था। तरह तरह के तर्क दे रहा था।

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नाश्ता परोस रहा एक बैरा बीच में ही बोल पड़ा कि, ”साहब मैं खुद पासी हूं और मेरे गाँव के सभी लोग गठबंधन के साथ हैं। “ हालाँकि बड़े होटलों में काम करने वाले लोग अपने काम के अलावा  कोई बात नहीं करते, लेकिन वह बोल पड़ा। उसने यह भी बताया कि उस होटल में कई  कर्मचारी ऐसे हैं, जो अन्य पिछड़ी जातियों से ताल्लुक रखते  हैं, लेकिन बीजेपी के खिलाफ वोट कर रहे हैं। दिल्ली से आये पत्रकार महोदय ने उसकी बात को खारिज कर दिया और कहा कि यह बैरा पूर्वाग्रह से भरा पड़ा  है। अपने सिद्धांतों को सही साबित करने वाली पत्रकारिता के कारण बहुत सारी गलत सूचनाएं 23 मई तक आती रहेंगी। 23 मई के बाद उनकी व्याख्या का मौसम आयेगा और काफी मशक्कत से टीवी चैनलों पर उसको समझाया जाएगा। बहरहाल  मुकामी सच्चाई यह  है कि गैर सवर्ण जातियां गठबंधन के साथ लामबंद हो रही हैं।

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पूर्वी उत्तर प्रदेश में  मायावती और अखिलेश यादव की रैलियों का एक संयुक्त सन्देश भी है।  उनके  भाषणों से साफ है कि वे लोग  सवर्णों को  दलित-ओबीसी एकता से अलग रखना चाह रहे हैं। ज्ञानपुर (भदोही) की  सभा में मायावती ने साफ कहा कि, ”अगर हम लोग अर्थात दलित और ओबीसी एकजुट रहेंगे तो ऊंची जाति के लोग सरकार का इस्तेमाल कर के हमारे अधिकारों पर कब्जा करने में सफल नहीं होंगे। ”यह एक बड़ा बदलाव है।

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2007 में जिस सोशल  इंजीनियरिंग की बात कर के मायावती ने उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुत हासिल किया था, उस सिद्धांत को अब वे पीछे छोड़ चुकी हैं। 2019 की दलित-पिछड़ा एकता ऐसी है, जिसमें  सवर्णों को सत्ता के जरिये शोषक के  रूप में पेश किया जा रहा है। यह साफ दिखता है कि आने वाले समय में यही सपा-बसपा की राजनीति का मूल आधार बनेगा। ऐसा लगने लगा   है कि मायावती इस नई एकता की सूत्रधार हैं और अखिलेश यादव उनको पूरी तरह से समर्थन दे रहे हैं। इस सन्दर्भ में उनके उस  बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे मायावती को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं।  यह बात उत्तर प्रदेश की राजनीति का व्याकरण पक्के तौर पर बदलने की क्षमता रखती  है।

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हालांकि वाराणसी में  प्रधानमंत्री की जीत की बात सभी करते हैं, लेकिन वहां उनके खिलाफ विरोध के स्वर  भी हैं।  एक व्यक्ति है, जो यह मान कर चल रहा है कि 23 तारीख के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे तो काशी के लिए 2014 चुनाव के पहले किये गए उनके वायदों को नई सरकार के सामने रखा जाएगा और कोशिश की जायेगी कि वह सरकर काशी को वह सम्मान दे सके, जो उस शहर का अधिकार है।

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द्वारिका और बदरीनाथ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी  स्वरूपानंद जी महराज के शिष्य, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी काशी में ही विराजते हैं। उन्होंने  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राम राज्य परिषद् का उम्मीदवार भी खड़ा किया था, जिसका परचा खारिज हो चुका है। उनका आरोप है कि उनके उम्मीदवार का पर्चा खारिज करने में जिला चुनाव अधिकारी ने गड़बड़ी की  है। उस गड़बड़ी की न्यायिक समीक्षा भी होगी। ऐसा उनका दावा है। जिस दिन से पर्चा खारिज हुआ है, स्वामी जी सड़क पर हैं, सरकार की बदनीयती की बातें कर  रहे हैं और नरेंद्र मोदी की वायदाखिलाफी के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। अपने आश्रम में नहीं जा रहे हैं, चुनाव के दिन तक जायेंगें भी नहीं। दिन भर के काम के बाद जहां शाम हो जाती है, वहीं सो जाते हैं। पूरे काशी में उनके शुभचिंतक हैं, किसी के भी आश्रम में वे रुक जाते हैं। अपने कार्यक्रम के सिलसिले में लोगों से लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं और सबको जागरूक कर रहे हैं।

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उनसे हमारी मुलाक़ात के लिए हमारे दोस्त और वरिष्ठ पत्रकार बद्री विशाल को थोड़ी मशक्क़त करनी पड़ी। जब जानकारी मिली कि वे मणिकर्णिका घाट के  पास किसी आश्रम में हैं तो हम वहां पंहुंच गए। गंगा जी के घाटों पर जाने वाले ज्यादातर रास्तों में आजकल पुलिस वालों का पहरा है। हमारे साथी लोग लम्बी दूरी पैदल  चल कर उनके ब्रह्मनाल वाले ठिकाने पर पंहुचे। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी  में नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था। बहुत सारे  साधु-संतों के साथ मिलकर अपने सभी समर्थकों को उनकी जीत के लिए लगा दिया था, लेकिन इस बार वे मोदी को हराने के लिए काम कर रहे हैं।

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उन्होंने कहा कि गंगा जी को निर्मल और अविरल करने के अपने मूल संकल्प से नरेंद्र मोदी भटक  गए हैं। अब वे उन संतों से बातचीत भी नहीं करते, जिन्होंने उनकी बात पर विश्वास करके उनका साथ दिया था। उन्होंने  दावा किया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस मामले में कोई मदद नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनको मालूम है कि योगी जी की कोई गलती नहीं है, वे मजबूर हैं। उनका कहना है कि मणिकर्णिका घाट से  विश्वनाथ मंदिर तक का कारीडोर बनाने के लिए सरकार ने सैकड़ों मंदिरों को तोडा है, हज़ारों मूर्तियों को नष्ट किया है और उन मूर्तियों को मलबे का रूप दे दिया है। पास में  हुई तोड़फोड़ को  उनके शिष्यों ने हमको दिखाया भी। मंदिरों को तोड़ने के उनके दावे  को सरकार सही नहीं  मानती। सरकार का आरोप है कि वहां मौजूद  बहुत ही पुराने  मंदिरों को घेरकर लोगों ने अपने घर बना लिए थे और मदिरों को अपवित्र कर दिया था।

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बीबीसी के पूर्व संवाददाता विजय राणा ने बनारस के बारे में एक फिल्म बनाई है, जिसमें इस बात को रेखांकित किया गया है। उन्होंने इसके बारे में विस्तार से लिखा भी है। लेकिन स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को उम्मीद है कि  उनकी बात काशी के लोग सुनेंगे और नरेंद्र मोदी को वाराणसी सीट से ही पराजित कर देंगे। काशी क्षेत्र में घूम रहे बहुत सारे पत्रकारों से बात करने के बाद ऐसा लगता  है कि वाराणसी के लोग ऐसा नहीं मानते और वे लोकसभा का सदस्य नहीं, प्रधानमंत्री चुन रहे हैं।

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अन्य राजनीतिक पार्टियों ने भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई पायेदार उम्मीदवार नहीं उतारा  है। कांग्रेस के अजय राय  हैं, जो पिछली बार भी मैदान में थे, लेकिन तीसरे नम्बर पर आये  थे। उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी वे हार गए थे। तेज बहादुर  यादव सपा के उम्मीदवार थे, उनका पर्चा खारिज हो गया। वैसे भी उनको कोई भी गंभीर चैलेंजर नहीं मान रहा था। इसलिए वाराणसी सीट पर कोई चुनौती नहीं मानी जा रही है।

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