शून्य की ओर बढ़ते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

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वैसे राजनीति में किसी के बारे में अगर कह दिया जाए की फलां शून्य की ओर बढ़ रहा है तो लोग अनायास ही उसके सूर्यास्त का अनुमान लगा लेते हैं…अब अनुमान लगाने पर किसी का कोई जोर तो है नहीं…लोकतंत्र की यही तो खासियत है..अपने मन से अनुमान लगाइए..और मुगालते में रहिए…नीतीश जी ने साल 2013 में कुछ अनुमान लगाया था…लेकिन परिणाम अनुकूल नहीं आया तो साल 2014 में फिर से एक नया अनुमान लगा लिए…साल 2015 के लिए…लेकिन समय और राजनीति ने एक बार फिर सुशासन बाबू को गच्चा दे दिया…और 2017 के मध्य में हुजूर वहीं जा टिके जहां 1997 में टिके थे…

वैसे बात शुरू हुई है..शून्य से…लोग प्रथम दृष्टया इस अंक को बड़ी ही हिराकत के साथ देखते हैं…लेकिन अगर ये अंक किसी अंक के पीछे खड़ा हो जाए तो लोग देखते ही रह जाते हैं…इस अंक के साथ राजनीति का अंकगणित बड़ा ही सटीक बैठता है… राजनीतिक पंडित कहते हैं कि राजनीति में एक और एक दो ना होकर ग्यारह होता है..वैसे ही शून्य अगर किसी के पीछे खड़ा हो जाए तो ग्यारह भले ही ना करे..फिर भी 11 से एक ही कम का रहने देता है….सच पूछिए तो शून्य के बिना धन हो या दुश्मन दोनों पूर्ण नहीं होता…धन के पीछे शून्य लग जाए तो एक संतोष होता है..और अगर दुश्मन शून्य हो जाए तो महासंतोष होता है…खैर चर्चा राजनीति के अंकगणित को लेकर हो रही है तो बात राजनीति की ही होगी…नीतीश बाबू 1994 में लालू से अलग हुए और 1995 के चुनाव में लालू के सामने लगभग शून्य साबित हुए…(07 सीटें मिली थी समता पार्टी को) 1997 में भाजपा जिसे कई बार नीतीश जी सांप्रदायिक पार्टी भी मानते हैं से दोस्ती हुई…1998 में केंद्र में और साल 2000 में प्रदेश में सात दिनों के लिए सत्ता का सीधा और मीठा स्वाद चखा…2005 में राजा बन गए…और 2010 में जलवा कुछ ऐसा हो गया कि विपक्ष शून्य में समाने लगा…2005 में सत्ता संभालने के बाद नीतीश एक ऐसे विचारक,,चिंतक,,,के रूप में सामने प्रकट हुए कि..आम लोगों को लगने लगा कि इस बालक में जन्मजात कुछ नीतिगत गुण रहे होंगे..तभी पिता ने नीतीश नाम रखा होगा…देखो कैसे नीतिगत बातें करता है…..आहा हा हा… कैसा अद्भुत मनोरम वातावरण था…मानो हर तरफ नवकंज लोचन करकंज मुख सी छटा हो….विरोधी सामने खड़ा ना हो सके ऐसी पतली और लिजलिजी सी हालत रह गई थी उनकी…और अपनों का क्या कहना, जैसे हर प्रेमी अपनी प्रेमिका को मधुबाला ही मानता है वैसे ही, इनके अपने इनके अंदर पीएम मैटेरियल देखने लगे…प्रदेश की राजनीति में कुछ शब्दों को नीतीश बाबू ने प्रचलित करवाया…मसलन…महादलित..अतिपिछड़ा…गरीब सवर्ण…आदि…2010-11 आते आते हुजूर ने राजनीति की नई खेती शुरू की….कहा कि अब नेता किसी जनआंदोलन की कोख से नहीं निकलेंगे..पेड़ से निकलेंगे नेता..जो जितना पेड़ लगाएगा..वो उतना बड़ा नेता होगा और जद यू कि टिकट का हकदार होगा..लिहाजा विधानसभा से लेकर परिषद और संसद तक की सवारी करने को आतुर बेचैन आत्मा ने आनन फानन वनस्पति जगत पर हमला बोल दिया….प्रदेश की अखबारों में आए दिन प्रदेश के पुरातन और नवोदित नेता किसी ना किसी पेड़ की ओट में या पौधे को अपनी ओट में लिए..फोटो छपवाने लगे..बिहार के मौसम से लेकर राजनीति तक में हरियाली छा गई…अब सावन के अंधे को… हर ओर हरा ही हरा नजर आ रहा था..इसी हरियाली में एक दिन राजा ने अंगड़ाई ली…और राजा की अंगड़ाई की आहट पा…एक अवकाश प्राप्त आईएएस अधिकारी जो कि दलाल और राजनीति के बीच कहीं शिखंडी सा खड़ा है, ने स्तुति भाव में बोला…राजन अब नींद त्यागिए..पूरा प्रदेश ही नहीं अब देश भी इस हरियाली को नए अंदाज में देखना चाहता है…राजा मंद मंद मुस्कुराते हुए खुश हुआ…लेकिन हरियाली की राजनीति करने वाला यह शख्स ने यहीं पर एक गलती कर दी…

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दिल्ली की ओर कूच करने वाली अपने सहयोगी दल के महारथी की गाड़ी को रोकने के लिए इसने लाल झंडी दिखा दी…लगा दिया 17 साल की दोस्ती पर ब्रेक….ऐसी सोच बनी कि बिहार की 40 लोकसभा की सीटों में से कम से कम 39 पर कब्जा तो कर ही लेंगे…और अगर हम 39 पर हुए..तो दिल्ली की पूर्ण संख्या मेरे पीछे खड़ी हो जाएगी…दोस्त को छोड़ा..तो राष्ट्रीय राजनीति में पुराने दुश्मन ने गले लगाया…राजा का मन भर आया…कहा जो विशेष दर्जा देगा..उसी के साथ जाएंगे….अब किस किस के साथ जाएंगे लोग अनुमान लगा रहे थे…क्योंकि शून्य जिसके साथ जाएगा…उसे पूर्ण कर देगा ऐसा अनुमान था….दिल्ली की तख्ते ताउस के लिए जोर आजमाइश शुरू थी….पश्चिम से (गुजरात) एक राजा, अपने फकीरी वाले शब्द में देश को आंदोलित कर रहा था…देश फकीर के शब्दों में जादू महसूस करने लगा…बिहार के राजा ने कहा..जादू से बात नहीं बनेगी…परिणाम चौंकाने वाले होंगे… लोकसभा चुनाव के परिणाम सच में चौंकाने वाले थे..बिहारी राजा की औकात अपने ही प्रदेश में 02 की रह गई…और जिस राजनीतिक महाशक्ति के साथ इन्होंने राजनीति की शुरूआत की थी..और जिसके विरोध पर इन्होंने अपनी जमीन पुख्ता की थी..उनकी (राजद) औकात 04 वाली रह गई…

अब राजा नींद से जाग चुका था…पर ज्यादा देर तक सोने के कारण…अवस्था अभी भी निंद्रा वाली ही थी…लिहाजा नींद के नशे में ही राजा ने फकीरी वाली चाल अपनाई और कुर्सी का प्रत्यक्ष त्याग कर दिया…बिहारी राजा समझ चुका था कि इस देश ने अभी खुल कर अमीरी देखा ही नहीं है..इसलिए इसे फकीरों को पूजने की आदत पड़ गई है..अब बिहार की कुर्सी बचानी है तो फिलहाल कुर्सी का परित्याग करो….फकीर बनों…पर अब बात बिगड़ चुकी थी..बिहारी फकीर ने विश्व की गरीब जाति को अपनी कुर्सी का वारिस बनाया…लेकिन कुछ शागिर्द जो अब विरोधी हो चले हैं..उन्होंने कहा कि….राजा अब गरीबों का मजाक उड़ा रहा है…कहता है कि अगली बार कुर्सी मिली तो..फिर मैं ही राजा बनूंगा..इसलिए महादलित प्रेम राजा का धोखा है…राजा अब घिर चुके थे…इसलिए अपने आप को शून्य में समाने से बचाने के लिए उस व्यक्ति को आवाज दे दी..जिसके (राजद) विरोध के नाम पर इनकी राजनीति की खेती लहलहाई थी…विधानसभा के अंदर 117 विधायकों को अपने नाम पर जिताने का दावा करने वाला राजा नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव में मात्र 17 विधानसभा सीट पर बढ़त मिली थी…जिससे मदद की गुहार लगाई गई..उनको (राजद को) 56 पर…और जिसने इनकी नींद उड़ा दी थी उनको (भाजपा) बाकी सीटों पर जीत मिली… लालू और नीतीश साथ हो लिए…2015 के विधानसभा चुनाव में ईवीएम मशीन से जो बवंडर निकला उसमें भगवा पार्टी की लंगोट तक उड़ गई…बिहार में जंगल राज के समर्थक और विरोधी दोनों एक साथ राजनीतिक मंगल गाने लगे…चापलूस पत्रकारिता ने इसे कुंभ के मेले में बिछड़े हुए भाई का मिलन बताया…लेकिन अधिक दिन तक दूर रहने की वजह से दोनों की आदतें काफी हद तक बदल चुकी थी…दो साल बीतते बीतते नीतीश बाबू को उबकाई आने लगी… कुछ सैद्धांतिक बातों का हवाला देते हुए जंगल-मंगल से निकल फिर से कमंडल में समा गये…लेकिन बीते तीन सालों में गंगा में काफी पानी बह चुका है…

अब राजनीति और वक्त शायद दोनों नीतीश की मुट्ठी से निकलने को बेताब है…लेकिन नीतीश न तो समझ रहे हैं और ना ही मान रहे हैं…दरअसल नीतीश इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं कि उनका जो भी राजनीतिक आभा मंडल है वो चुनावी राजनीति में एक दिखावा मात्र है…वोट की राजनीति में वो किसी भी रणक्षेत्र में पांच मिनट भी नहीं टिक सकते हैं…उनका कद भाजपा ने बढ़ाया…लेकिन 1997 से 2013 आते आते उन्हें ये भ्रम हो गया कि उनका अपना कद है…2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त उनका भ्रम टूट गया था..लेकिन नशा उतरने के बाद जिस प्रकार से नशेड़ी पुन: नशा के लिए व्याकुल हो जाता है ठीक वैसे ही नीतीश अपना भ्रम फिर से पाने को बेचैन हो गये … लालू के साथ राजनीतिक दोस्ती कर ली…नतीजा यह हुआ कि लगातर 10 साल तक अक्षुण्ण राज करने की वजह से उन्होंने जो भी वोटबैंक तैयार किया था उस वोट बैंक को हुजूर लालू से दोस्ती छोड़ने के वक्त लालू के यहां ही छोड़ आए…आज फिर सुशासन बाबू का राजनीतक महल हकीकत की जमीन पर खड़ी है…और ये जमीन अंदर से बिल्कुल खोखली है…लिहाजा एक बार फिर लोकसभा चुनाव के पहले भकंदर का ईलाज करा रहे लालू को फोन कर और कांग्रेस के अंदर कुछेक अपने मित्रों से कुछ बयान दिलवा कर सुशासन बाबू जनता के सामने और अपने सहयोगी दलों के सामने भ्रम का महल पेश करना चाहते हैं..दरअसल इनकी कोशिश भाजपा से मोलभाव कर अपना भाव बढ़ाने की है…लेकिन ये भूल रहे हैं कि 2013 के बाद भाजपा के अंदर भी काफी पानी बह चुका है…अब वाजपेयी शारिरिक रूप से लाचार हैं और आडवाणी राजनीतिक विकलांगता को प्राप्त कर चुके हैं…सुशासन बाबू की अपनी छवि किसी जमात में फिट नहीं बैठ रही…ये भाजपा में नये दौर की राजनीति हैं जहां एक ही सिद्धांत हावी है…और ये सिद्धांत है..अपनी जीत बाकि दुनिया की हार…यहां जिसे दोस्त बनाया जा रहा है उसकी दोस्ती की एक्सपायरी डेट भी उसी समय तय कर दी जा रही है…शायद नीतीश जी अपनी दोस्ती का दस्तावेज नहीं देख पा रहे हैं…अब भाजपा प्रेशर प़ॉलिटिक्स करने के मूड में नहीं है…भाजपा अब सिर्फ पॉलिटिक्स करना चाह रही है…और राजनीति में कोई स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता..नीतीश जी से बेहतर कौन जानता है…

  • धीरेंद्र कुमार
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