राजद ने साथी दलों को चेताया- उछल-कूद का कोई फायदा नहीं

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महागठबंधन में तरजीह देने से राजद के इनकार के बाद शरद यादव, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी दिल्ली में प्रशांत किशोर से मिले
महागठबंधन में तरजीह देने से राजद के इनकार के बाद शरद यादव, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी दिल्ली में प्रशांत किशोर से मिले

PATNA : राजद ने अपने साथियों को साफ-साफ बता दिया है कि ज्यादा उछल-कूद न मचायें। इसका कोई फायदा उन्हें नहीं मिलने वाला है। अब ये दल बेचैन होकर कभी इस द्वार तो उस घर घूम रहे हैं। ताजा उदाहरण जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी के प्रशांत किशोर के दिल्ली स्थित घर पर इनके जुटान का है। अब इन्हें प्रशांत से आस है।

राजद ने लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह इनके दबाव में सीटें दीं और परिणाम देने के बजाय ये दल सीटें बेचने में मशगूल रहे, उसे ध्यान में रख कर राजद सतर्क हो गया है। एक-एक कदम फूंक कर बढ़ा रहा है। वह साथियों के बिना अपनी ताकत बढ़ाने में लगा है। राजद महागठबंधन के नाम पर छोटे दलों को इस बार विधानसभा चुनाव में तरजीह देने के मूड में नहीं है। शायद यही वजह है कि हम के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा तथा वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी तरह-तरह के नखरे करने लगे हैं।

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दरअसल वे महागठबंधन में सम्मानजनक सीटें हासिल करना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान मोल-तोल कर गठबंधन के नाम पर इन दलों ने सीटें तो ले लीं और जैसा कि आरोप है, उन्होंने सीटें ऊंची कीमत पर उम्मीदवारों को बेच दीं। उनके उम्मीदवारों को विफलता ही हाथ लगी। हालांकि राजद की स्थिति भी लोकसभा चुनाव में अच्छी नहीं रही थी। लेकिन सीट झकने और बेचने की चर्चाओं ने उसे सतर्क रहने को बाध्य किया है। वैसे भी इन तीनों नेताओं का कोई ऐसा जनाधार नहीं है, जो महागठबंधन के अगुआ दल राजद को लाभ पहुंचा सके।

इस बार भी इन दलों ने दबाव बनाकर अधिकाधिक सीटें लेने की कोशिश की। आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद की दो टूक के बाद ये औकात में आ गये। अब इन लोगों ने दूसरी पैंतरेबाजी शुरू कर दी है। पहले तो सीएम फेस के नाम पर शरद यादव को आगे करने की कोशिश की, लेकिन लालू से मुलाकात के बाद जब शरद यादव ने साफ कर दिया कि वे सीएम फेस की दौड़ में नहीं हैं तो इनकी आस टूट गयी। शरद यादव ने साफ कहा कि महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी है। इसके नेता तेजस्वी यादव हैं। इसलिए सीएम फेस वही रहेंगे।

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रद की सफाई के बाद हम, आरएलएसपी, वीआईपी के प्रमुखों ने बिहार में प्रशांत किशोर की देखरेख में बन रहे नए राजनीतिक समीकरण में ठौर तलाशने की कोशिश शुरू की है। सूचना है कि प्रशांत किशोर से तीनों दलों के प्रमुख दिल्ली जाकर उनके घर मिले। जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी की मुलाकात की तस्वीर वायरल होने के बाद उनकी सफाई भी आई कि महागठबंधन की मजबूती के लिए लोग प्रशांत से मिले थे। सच तो यह है कि महागठबंधन में तरजीह न मिलने से निराश इन नेताओं ने दूसरे ठौर तलाशने शुरू कर दिये हैं। प्रशांत किशोर की ओर पप्पू यादव पहले ही मुखातिब हो चुके हैं।

इस बीच जेडीयू को लेकर अब भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है। नीतीश कुमार ने नेशनल पापुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर में वांछित सूचनाओं के बारे में केंद्र सरकार को कुछ सुझाव दिये हैं। उन्होंने कुछ सूचनाओं को गैरजरूरी माना है। माना यह जा रहा है कि केंद्र सरकार उनके सुझाव पर असहमत होती है तो उन्हें भाजपा से अलग होने का बहाना मिल जाएगा।  एनपीआर और एनआरसी पर नीतीश कुमार की चुप्पी और सीएए के मुद्दे पर संसद में सहमति जताने से उनके खिलाफ जो माहौल बन चुका है, वह अब नीतीश के दामन पर धब्बा बन गया है। अब वे लाख कोशिश कर लें, उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा। प्रशांत किशोर यह आरोप लगा भी चुके हैं कि नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के पिछलग्गू हो गए हैं। जिस तरह नीतीश पहले अपनी शर्तों पर भाजपा को झुकने के लिए मजबूर करते रहे हैं, स्थिति अब उसके पलट है। वे वही काम कर रहे हैं, जो भाजपा उनसे कराना चाहती है।

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बहरहाल चुनाव आते-आते बिहार का राजनीतिक परिदृश्य क्या होगा, यह अभी तक साफ नहीं है। कौन दल किसके साथ होगा, महागठबंधन और एनडीए के अलावा तीसरा मोर्चा भी बन सकता है। यानी एक बात तो तय है कि बिहार का चुनाव तितरफा होगा। नीतीश के सामने संकट यह है कि जिस तरह उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल को किनारे किया, अब चाह कर भी उसके साथ नहीं जा सकते। जाना चाहे भी तो आरजेडी उन्हें कबूल करेगा, इस पर संदेह है। लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए, कहना मुश्किल है। जब धुर विरोधी विचारधारा वाले एनसीपी के साथ शिवसेना सरकार बना सकती है, जजपा के साथ भाजपा हरियाणा में सरकार बना सकती है तो बिहार में भी धुर विरोधी साथ हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

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