योग गुरु के रूप में मशहूर बाबा रामदेव ने येचुरी पर करायी FIR

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योग गुरु बाबा रामदेव
योग गुरु बाबा रामदेव
  • जवरी मल पारख

योग गुरु के रूप में मशहूर बाबा रामदेव ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी के विरुद्ध FIR दर्ज़ कराई है। उनका कहना है कि रामायण और महाभारत पर येचुरी ने टिप्पणी कर हमारे पूर्वजों का अपमान किया है। यह अपराध है। इसके लिए येचुरी को जेल में डाल दिया जाना चाहिए।  उन्होंने बहुसंख्यक हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है, जिसकी उन्हें सजा दी जानी चाहिए।

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दरअसल यह सारा विवाद नरेंद्र मोदी के इस दावे से शुरू हुआ कि हिंदू तो कभी हिंसा या आतंकवाद कर ही नहीं सकता। उनके इस अनैतिहसिक दावे का ही जवाब देते हुए सीताराम येचुरी ने रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों का उदाहरण दिया, जो टकरावों और युद्धों से भरे पड़े हैं। उनका यह कथन ही हिंदू सांप्रदायिक ताकतों को भड़काने का कारण बना है।

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इन सांप्रदायिक ताकतों के भड़कने के बावजूद सच्चाई यही है कि ये दोनों दोनों महाकाव्य हिंसा से जुड़ी कहानियों से भरे पड़े हैं। महाभारत का ही एक अंश भगवदगीता में कृष्ण अपने ही रिश्तेदारों के विरुद्ध अर्जुन को हथियार उठाने के लिए प्रेरित करते हैं। दुनिया के शायद ही किसी अन्य ग्रंथ में हिंसा और युद्ध का ऐसा खुला समर्थन किया गया  हो।

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येचुरी ने सम्राट अशोक के उदाहरण द्वारा बताया कि युद्ध और हिंसा को लेकर उनके मन में ग्लानि और पश्चाताप का भाव तब ही पैदा हुआ, जब वे बौद्ध धर्म के संपर्क में आए और उन्होंने ब्राह्मण धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। बौद्ध और जैन धर्म के उदय का बड़ा कारण यज्ञों में दी जाने वाली हजारों पशुओं की बलि  के विरुद्ध जन आक्रोश था। अहिंसा को परम धर्म मानने की अवधारणा ब्राह्मण या हिंदू धर्म की देन नहीं है।

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आश्चर्य की बात है कि हिंदू धर्म और समाज जिस वर्णव्यवस्था पर टिका है, वह न केवल श्रेणीबद्धता पर टिका है, बल्कि उसकी बुनियाद में घोर हिंसा और उत्पीड़न है। मनु स्मृति इसका हिंसक दस्तावेज है। बाबा साहेब आंबेडकर ने मनु स्मृति का दहन उसमें निहित अमानवीय विचारों के कारण ही किया था। और इसी ग्रंथ को आरएसएस भारतीय संविधान को विस्थापित कर उसकी जगह देना चाहता है।

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यह महज संयोग नहीं है कि मोदी राज में दलितों के विरुद्ध लगातार हिंसक वारदातें हुई हैं। हाल ही उत्तराखंड में जहां भाजपा की सरकार है, एक दलित की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई कि उसने सवर्णों के सामने बराबर बैठ कर खाना खाने की गुस्ताखी की थी। क्या यह घटना सवर्ण हिन्दुओं के एक ताकतवर हिस्से में दलितों के विरुद्ध जड़बद्ध नफरत और हिंसा का भाव नहीं है? पिछले पांच सालों में दलितों और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हुई किसी भी हिंसक घटना की निन्दा या उन्हें रोकने की कोशिश नहीं हुई है।

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कैसी विडम्बना है कि वे लोग और संगठन ये दावा करते हैं कि हिंदू हिंसक हो ही नहीं सकता। जो पूरे हिंदू समाज का सैन्यीकरण करना चाहते हैं। जो हिंदू धर्म और समाज के प्रेम, सौहार्द और सहिष्णुता की धारा को उसकी कमजोरी मानकर उसको मिटा देना चाहते हैं। गांधी इसी धारा के प्रतिनिधि थे और नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी।

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