मलिकाइन के पाती- भय बिन होहि न प्रीति…

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किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।
किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।

मलिकाइन के पाती एहू बेर गोसाईं तुलसी दास जी के रामायण के एगो चौपाई के लाइन से शुरू भइल बा। लिखले बाड़ी- भय बिन होहि न प्रीति। ऊ लिखले बाड़ी कि दिल्ली वाला बड़का मोदी जी के घर में रहे खातिर सलाह बड़ा काम के बा। अइसन हमेशा खातिर हो जाव त एह मुलुक के लोग सुधर जाई। पढ़ीं, उनकर लमहर पातीः

पांव लागीं मलिकार। एगो बात रउरा ना मालूम होई। अपना गांव के रामनिहोरा काका के बड़का बेटवा रामचरना के ससुराल के अइसन ताव चढ़ल कि ऊ फटफटिया (मोटरसाइकिल) उठा के तीन कोस जाये खातिर अपना बाप-पितिया से अझुरा गइल। पहिले बाप मना करे गइले त कहलस कि तूं चुप रह। पितिया कुछ समझावे के कोशिश कइले त उनकरो के अइसन बिखाइन जवाब दिहलस कि बेचारे बूढ़-पुरनिया आदमी मुंह लटका के रह गइले। पांड़े बाबा भी समझावे के कोशिश कइनी। उहां के जवाब त ना दिहलस, बाकिर गते से फटफटिया चालू क के चल दिहलस।

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जइसे बाजार पर पहुंचल, पुलिस पूछलस कि कहां जा तारs, एह बंदी में। तोहरा मालूम नइखे कि मोदी जी कहले बाड़े कि एकइस दिन घर से नइखे निकले के। ओकनियो से हुरमुठाहे बतकही कइलस। एकरा बाद त पुलिसवा ओकरा पीठ आ चूतर पर डंटा से एतना थुरले सन कि ऊ ओही जा बेंग नियर पसर गइल। ई ना कहीं कि ओ टाइम पर अपना गांव के चकुदार मनेजर ओही जा रहले। ऊ चीन्ह गइले आ कहले कि माफी मांग ल, ना त जेल के हवा खाये के परी। माफी मांग के ऊ कूंखत-कांखत घरे लवटल। आवते चउकी पर पसर गइल आ लागल चिलाये- आह रे माई, आह रे दादा।

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जहिया हम कोरना (कोरोना) के बात सुनले रहनी, ओही दिन से हमरा बुझात रहे मलिकार कि ई जरूर कवनो खतरनाक बेमारी बा। रउरा से दू महीना पहिले हम पूछलहूं रहनी कि ए मलिकार, ई कोरना कवन बेमारी ह। रउरो त कम ना हईं। आज ले हमरा के ना बतवनी। ई त बड़का मोदीजीउवा जब कहलस कि अब एकइस दिन घर में ना रहला पर ई अइसन पसरी कि केतना जान जाई, कहल मुसकिल बा, तब हमरा बुझाइल कि हम ठीके सोचत रहनी। सुने में आवता कि ई बेमारी खाली जाने नइखे लेत, सब कुछ तबाह क के ध देता।

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आज भोरे पांड़े बाबा खबर कागज पढ़ के बतावत रहनी हां कि ई बेमारी एक देह से दोसरा देह में ढूक जाता। एह से जे जहवां बा, ओही जा रहो। केहू के दिल्ली, बंबे, गुजरात, बंगाला आ पंजाब से घरे आवे के जरूरत नइखे। बचावल जाव त ई बेमारी केहू के कुछ बिगाड़ ना पाई। एने-ओने गइला से बायन अइसन ई बंटा जाता। हम त रउरो के कहेब कि घरहीं में रहेब। एके बेरा खाईं, बाकिर बहरी मत जाईं। रही जीव, खाई घीव। पांड़े बाबा कहत रहवीं कि अमिरका (अमेरिका) अइसन देस में जवानो लोग एह बेमारी से नइखे बांच पावत। अस्पताल में भरती सैकड़ा बारह आदमी जवान बाड़े। पहिले सुने में आवत रहे कि ई बेमारी खाली बुढ़ऊ लोग खातिर काल बन के आइल बा।

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एतने ले ना मलिकार, कल-कारखाना आ कीना-बेची बंद भइला से एतना नुकसान होता कि सुनिए कि देह थरथरा जाता। खबर कागज में निकलल बा कि देस के नौ लाख करोड़ के नुकसान होई एह बेमारी से। ई त अबे के अनुमान बा, जब लोग काबू में रही। बेकाबू भइल त ई नुकसान के अंदाजो लगावल मुसकिल बा। एही से मोदीजीउवा कहले बा कि एकइस दिन घर से निकलल बरा दियाई त हमनी के एकइस साल के नुकसान से बांच जायेब सन। अबे ट्रक-बस ना चलला से रोज 3150 करोड़ रुपया के नुकसान होता। उड़न जहाज कंपनी के 27 हजार करोड़ रुपिया के नुकसान के अंदाज लगावल गइल बा। बाकी काम-धंधा के नुकसान अबे फरका बा।

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ए मलिकार, एकइस दिन घर में रहला से का बिगड़े के बा। सरकार चुप थोड़े बइठी। सुने में आइल कि मोदी जी पंद्रह हजार करोड़ रुपिया एकरा खातिर दिहले बाड़े। बिहार सरकार त पिलसिम (पेंशन) तीन महीना के एके बेर दे रहल बिया। राशन काड जेकरा लगे बा, ओकरा खाता में हजार रपिया आवे वाला बा। दोसरो सरकार अइसने करत बाड़ी सन। दोकान में सगरी सामान मिल रहल बा। सुने में आइल के झाड़खंड में ओइजा के मुखमंतरी कई को दोकान के नंबर दिहले बाड़े, जहवां फोन क दीं, त सामान घरे पहुंचा जा तारे सन। दामो बेसी नइखे लागत।

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जानतानी मलिकार, हम त का कइले बानी। जांत धो-दा के ठीक क लिहले बानी। बूंट (चना) आज पीस के बेसन बना लीहनी हां। दुपहरिया दू किलो गेहूं पीस के पिसान बना लेब। धनकुटवा मशीन आइल रहे त चाउर पहिलहीं कुटवा लिहले रहनी। दाल एगो नइखे, त तरकारीए से काम चल जाई। कबो-कबो बेसन के कढ़ी बना लेब। आलू पांड़े बाबा के घरे अबे ढेरे धइल बा। ठंडा घर में ऱाखे खातिर उहां के रखले बानी, बाकिर एह बंदी में अब कइसे जाई। काल्ह उहां के एक बोरिया लू भेजवा दिहवीं। हम त लकड़ी पर खाना बनाई ले, एह से गैस के कवनो चिंता हइए नइखे। गैस वाला लोग के भी कवनो फिकिर नइके। काल्हे देखवीं कि गैस गाड़ी आइल रहुवे। सोचतानी कि मसुरी दर के दाल बना लीं। कबो-कबो दाल बना लेब।

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पांड़े बाबा बतावत रहवीं मलिकार कि एह बंदी से सबसे बड़ फायदा ई भइल बा कि कहीं चोरी-छिनतई नइके होत। बदमसवो बील में लुका गइल बाड़े सन। रोज कहीं ना कहीं गाड़ी लड़ला-पलटला के खेबर आवते रहल हा, ऊ अब सुनाते नइखे। उहां के इहो बतावत रहवीं कि जहवां दारू बिकात रहल हा, उहवों अब बंद बा। पियक्कड़ लोग के आदत छूट गइल बा। एहू से बड़ काम ई भइल बा कि हवा साफ हो गइल बा। पहिले त शहर में गइला पर दम फूले लागत रहल हा। हम त कहेब मलिकार कि अइसन काम साल में तीन-चार बेर होत रहे त सब ठीक हो जाई। सचहूं रामराज आ जाई। पुलिसवा मनबढ़ू लोग ठेंठावत रहिहें सन सभे टेकुआ अइसन सोझ हो जाई। एही के कहल जाला मलिकार- भय बिन होहि न प्रीत।

राउरे, मलिकाइन

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