भारत में पत्रकारिता के जनक थे अंग्रेज जेम्स आगस्टस हिकी

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भारत में पत्रकारिता के जनक थे अंग्रेज जेम्स आगस्टस हिकी। भारत में पत्रकारिता का जन्म 240 साल पहले 29 जनवरी 1780 को हुआ था।
भारत में पत्रकारिता के जनक थे अंग्रेज जेम्स आगस्टस हिकी। भारत में पत्रकारिता का जन्म 240 साल पहले 29 जनवरी 1780 को हुआ था।
  • कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे

भारत में पत्रकारिता के जनक थे अंग्रेज जेम्स आगस्टस हिकी। भारत में पत्रकारिता का जन्म 240 साल पहले 29 जनवरी 1780 को हुआ था। जेम्स आगस्टस हिकी नामक अंग्रेज ने यह काम किया। ’हिकीज बंगाल गजट आर द ओरिजिनल कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ का प्रकाशन उन्होंने किया था। उस साप्ताहिक अखबार के प्रवेशांक में हिकी ने खुद को आनरेबल कम्पनी का मुद्रक घोषित किया था। हिकी स्वयं को कम्पनी के कर्मियों में पहला मुद्रक मानता था, फिर भी ईस्ट इंडिया कम्पनी उसे महत्व नहीं देती थी। हिकी स्वयं अंग्रेज था फिर भी अंग्रेजी शासन के अनौचित्य की आलोचना अपने अखबार में करता था।

हिकी ने दो पन्ने के अपने अखबार में गवर्नर वारेन हेस्टिंग्ज सहित कम्पनी के अधिकारियों की तीखी आलोचना की। उसके फलस्वरूप उसे जनरल पोस्ट ऑफिस से समाचार पत्र भेजने की सुविधा से वंचित कर दिया गया। हिकी की पत्रकारिता पर वारेन हेस्टिंग्ज का वह पहला प्रहार था। वारेन हेस्टिंग्ज ने 14 नवम्बर 1780 को यह आदेश जारी किया, “आम सूचना दी जाती है कि एक साप्ताहिक समाचार पत्र, जिसका नाम ‘बंगाल गजट ऑर कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’ है, जो जे.ए. हिकी द्वारा मुद्रित किया जाता है, के ताजा अंकों में व्यक्तिगत रूप से निजी जिन्दगी को लांछित करने वाले अनुचित अंश पाए गए हैं, जो अशांत करने वाले हैं, अतएव इसे जी.पी.ओ. के माध्यम से प्रसारित होने की और अधिक अनुमति नहीं दी जा सकती।”

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विजय दत्त श्रीधर ने भारतीय पत्रकारिता कोश में लिखा है कि वह भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में समाचार पत्र के शासन से टकराने की पहली घटना थी। जेम्स आगस्टस हिकी ने व्यवस्था से टकराने और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रताड़ना के रूप में कीमत चुकाने का सम्मान भी हासिल किया। तात्पर्यपूर्ण है कि हिकी ने सरकारी प्रताड़ना के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया और शासन की अनीति की आलोचना जारी रखी। स्वीडिश मिशनरी जॉन जकारिया कीरनेण्डर ने हिकी के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया। उसमें हिकी को चार महीने की कैद और पाँच सौ रुपये जुर्माना से दण्डित किया गया। जब तक वह जुर्माना अदा न करता, तब तक उसे जेल में ही रहना था। इसके बावजूद हिकी ने तेवर नहीं बदला और उसने गवर्नर तथा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ भी लेखन जारी रखा।

James Hicky

इस बीच यूरोपीय लोगों की अगुआई में करीब चार सौ हथियारबन्द लोगों की भीड़ ने हिकी के प्रेस पर हमला कर दिया। हिकी से अस्सी हजार रुपये की जमानत माँगी गई, जिसे वह नहीं चुका पाया और उसे जेल भेज दिया गया। जेल में रहते हुए भी हिकी अखबार का सम्पादन करता रहा। यही नहीं, उसने अपना स्वर भी नहीं बदला। उस पर चले मुकदमे में एक आरोप में एक वर्ष की कैद और दो सौ रुपये जुर्माना की सजा हुई। वहीं दूसरे आरोप में मुख्य न्यायाधीश ने वारेन हेस्टिंग्ज को पाँच हजार रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में चुकाने का आदेश पारित किया। इतने सब आघातों से विचलित हुए बिना हिकी ने अपना प्रतिरोधी लेखन जारी रखा। इस तरह हम देख सकते हैं कि भारत में पत्रकारिता की शुरुआत प्रतिरोध की संस्कृति से हुई।

मस्टहेड यानी ‘हिकीज बंगाल गजट आर द ओरिजिनल कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ के नाम के ठीक नीचे अखबार में लिखा होता था- ‘ए वीकली पोलिटिकल एंड कामर्शियल पेपर ओपेन टू आल पार्टीज बट इन्सपायर्ड बाइ नन।’ यानी पत्रकारिता को हर पक्ष के प्रति उन्मुक्त रहना चाहिए, किंतु प्रभावित किसी से नहीं होना चाहिए। यह भारतीय पत्रकारिता की आदि प्रतिज्ञा है। ‘हिकीज बंगाल गजट आर द ओरिजिनल कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ चूँकि ईस्ट इंडिया कंपनी से प्रभावित नहीं था, वह कंपनी का पिछलग्गू नहीं बना, इसीलिए उस पर शासन का शिकंजा कसता गया। हिकी के अखबार का मुकाबला करने के लिए सरकारी सहायता से ‘इण्डिया गजट’ 18 नवम्बर 1780 को प्रारम्भ किया गया। किंतु ‘हिकीज बंगाल गजट’ का तोड़ सरकारी गजट नहीं निकाल पाया।

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