भारत तैयारियों के मामले में चीन से पीछे नहीं, सन् 62 से आगे है

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चीन के संदर्भ में भारत की तैयारियों का विवेचन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर
चीन के संदर्भ में भारत की तैयारियों का विवेचन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर

भारत-चीन के बीच सीमा पर बढ़ी तनातनी ने चिंता पैदा कर दी है। पर भरोसा इस बात से है कि भारत सन् 62 से आगे निकल चुका है। हालांकि भारत को अभी और आगे जाना है। देश के बाहरी-भीतरी दुश्मनों से मुकाबले के लिए यह जरूरी भी है। यह मानना है वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर का।

  • सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर

अपनी सैनिक गतिविधियों के जरिए पहले चीन ने सीमा पर तनाव बढ़ाया। पर, जब भारत ने यह जता दिया कि जरूरत पड़ने पर चीन से डटकर मुकाबला होगा, तो चीन ने नरम रुख अपना लिया। बहुत अच्छी बात है। युद्ध किसी के हक में नहीं है। यदि किसी को कम नुकसान होगा तो किसी को ज्यादा। पर नुकसान तो दोनों पक्षों का होता है।

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अब भारत 1962 वाला नहीं रह गया है। चीन भी समझ रहा है कि भारत अब 1962 वाला नहीं है। सन् 62 में तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने कह दिया था कि हमें अफसोस है कि हम असम को नहीं बचा पा रहे हैं। वैसी नौबत क्यों तब आ गई थी? क्योंकि हमारी सरकार अदूरदर्शी थी। आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में हम हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगा रहे थे।

दरअसल हम मुगालते में थे। 1962 के युद्ध से ठीक पहले भारतीय सेना ने अपनी सरकार से एक करोड़ रुपए मांगे थे। सेना की कुछ बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए। पर ‘पंचशील’ के नशे में डूबी हमारी सरकार ने पैसे नहीं दिए। नतीजा क्या हुआ, वह देश के प्रमुख पत्रकार मनमोहन शर्मा के, जो अब भी हमारे बीच मौजूद हैं, शब्दों में पढ़िए।

वे लिखते हैं- एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था। मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। हमारी सेना के पास अस्त्र-शस्त्र की बात छोड़िये, कपड़े तक नहीं थे। नेहरू जी ने कभी सोचा ही नहीं था कि चीन  हम पर हमला करेगा।

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एक दुखद घटना का उल्लेख करूंगा। अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था। उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं। उन्हें बोमडीला में एयर ड्राप कर दिया गया, जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था। वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए।

‘युद्ध चल रहा था, मगर हमारा जनरल कौल मैदान छोड़ कर दिल्ली आ गया था। ये नेहरू जी के रिश्तेदार थे। इसलिए उन्हें बख्श दिया गया। हेन्डरसन जांच रपट आज तक संसद में पेश करने की किसी सरकार में हिम्मत नहीं हुई।’

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बाद के वर्षों में भी हमारी युद्ध तैयारी वैसी नहीं रही, जैसी होनी चाहिए थी। ‘कारणों’ का पता समय-समय पर चलता रहता था। हाल के वर्षों में कुछ तेजी जरूर आई है। पर वह भी अभी संतोषजनक नहीं है। जब तक सार्वजनिक धन भ्रष्टाचार में जाना जारी रहेगा, तक तक हम उतने सैनिक व असैनिक साजो-सामान से खुद को लैस नहीं कर पाएंगे, जितने की जरूरत देसी-विदेशी दुश्मनों से लड़ने के लिए है। हां, मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल स्तर से भ्रष्टाचार हटा है, पर अफसर स्तरों पर अभी काम बाकी है।

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