भाजपा नीतीश को अब ढोने के मूड में नहीं : शिवानंद तिवारी

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पटना : भाजपा नीतीश कुमार पर अचानक आक्रामक क्यों हो गई है  यह आक्रामकता क्या बग़ैर ऊपर के इशारे के मुमकिन है
स्मरण है कि पिछले ईद में गिरिराज सिंह ने इफ़्तार पार्टी की एक तस्वीर ट्वीट की थी उसमें नीतीश कुमार इस्लामी टोपी और गमछा में औरों के साथ नज़र आ रहे थे। नीतीश जी ने उसका बुरा माना था उसके बाद ख़बर छपी थी कि भाजपा अध्यक्ष ने गिरिराज को फ़ोन पर चेताया था।

इस बीच क्या परिवर्तन हो गया कि भाजपा के मंत्री से विधायक तक नीतीश कुमार पर हमलावर दिखाई दे रहे हैं। भाजपा के लोग दावा कर रहे हैं कि विगत लोक सभा चुनाव में बिहार में भी जीत के पीछे नीतीश जी की छवि नहीं बल्कि मोदी जी का चेहरा था। इस दावे को ग़लत भी नहीं कहा जा सकता. विगत लोक सभा चुनाव संभवत: पहला ऐसा चुनाव था जिसमें नीतीश जी की ओर से चुनाव घोषणा पत्र नहीं छापा गया। चुनाव अभियान में भी नीतीश जी की सभा तुलनात्मक ढंग से छोटी होती थी. उनके भाषण का भी ज़्यादा हिस्सा मोदी जी के गुणगान में ही होता था।
ऐसे में उत्साह में लबरेज़ भाजपा जब अपने मूल एजेण्डों को लागू करने का अभियान चला रही है तो नीतीश जी का बेसुरा राग उसे ग्राह्य नहीं हो रहा है. चाहे वह तीन तलाक़ का मामला हो या अनुच्छेद 370 को हटाने का या फिर नागरिक रजिस्टर तैयार करने का. हालाँकि तीन तलाक़ हो या अनुच्छेद 370, भाजपा को उनके विरोध से ज़्यादा असुविधा नहीं हो, नीतीश जी ने इसका ख़्याल रखा। विरोध में भाषण तो कराया लेकिन मतदान के समय अपने लोगों से बहिर्गमन करवा कर भाजपा के लिए सुविधा की स्थिति ही प्रदान कर दी थी।

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मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश का पंद्रहवां वर्ष शुरू होने जा रहा है। लेकिन इस बीच नीतीश जी अपनी छवि या काम के बदौलत अपने बलबुते मुख्यमंत्री बनने लायक ताक़त नहीं बना पाए। अब भाजपा उनको ढोने को तैयार नहीं दिख रही है। नीतीश जी के विषय में एक बात बहु प्रचलित है. वे बात को भूलते नहीं हैं. बोलने वाले को कभी न कभी ठिकाना लगा ही देते हैं. नरेंद्र मोदी जी के विषय में भी यही प्रचलित है। अब देखना है कि मोदी जी किस अंदाज से ‘ऑपरेशन’ करते हैं।

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