बिहार में भाजपा और जदयू के बीच बढ़ती ही जा रही हैं दूरियां

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बिहार के लोग, जो बाहर फंसे हुए हैं, उनसे फीडबैक लेकर उनकी परेशानियों दूर करें। जो घर आ गये हैं, उनकी पहचान कर टेस्ट करायें और जरूरी मदद करें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना वायरस से उत्पन्न स्थितियों की समीक्षा के दौरान ये निर्देश दिये।
नीतीश कुमार

पटना। बिहार में भाजपा और जदयू के बीच लगातार दूरियां बढ़ती जा रही हैं। दोनों दलों के बीच पहले जुबानी जंग छिड़ी। भाजपा के नेता ज्यादा आक्रामक रहे तो नीतीश खामोश। दोनों ओर से छिड़ी जुबानी जंग को हल्के से नहीं लेना चाहिए। अगर कोई राजनीतिक विश्लेषक इस तरह की तल्ख जुबान को सतही ढंग से अपने आकलन का आधार बनाता है तो वह भ्रम में है। हालात तो इतने बदतर हो गये हैं कि नीतीश या तो भाजपा के आगे सरेंडर की मुद्रा में हैं या फिर किसी नयी तरकीब की तैयारी में लग गये हैं।

केंद्रीय मंत्री और भाजपा के बड़बोले नेता गिरिराज सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार हमले करते रहे हैं। अब भी उनका हमला जारी है। उनके बयान को उनका निजी बयान नहीं माना जाना चाहिए। वह बिना केंद्रीय नेतृत्व का संकेत पाये इतना नहीं बोल सकते हैं। दोनों दलों के बीच बिहार में सरकार चलाने की सहमति भले बनी हो, पर आहिस्ता-आहिस्ता अब उनके बीच की दूरियां दिखनी शुरू हो गई हैं।

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लोकसभा चुनाव में भाजपा की अपार जीत बढ़ती दूरी का आधार मानी जा सकती है। केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद से ही भाजपा ने नीतीश कुमार को यह संकेत देना शुरू कर दिया था कि अब उनकी जरूरत उसे नहीं है। वे चाहें तो साथ रहें या अकेले भी जा सकते हैं। तीन तलाक के मुद्दे पर भाजपा ने अपने मन की ही की और नीतीश कुमार मुंह ताकते रह गए। कश्मीर में धारा 370 और 35ए के सवाल पर भी लाख विरोध के बावजूद नीतीश कुमार कुछ नहीं कर पाए। भाजपा ने अपने मन की कर ली। राष्ट्रीय नागरिकता कानून एनआरसी के सवाल पर भी नीतीश को शुरू से ही आपत्ति रही है, लेकिन भाजपा ने वह भी कर दिखाया। अब तो भाजपा के लोग नीतीश के गढ़ बिहार में भी एनआरसी की मांग जोरदार ढंग से करने लगे हैं।

नीतीश भी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। अब भाजपा के खिलाफ जाकर वे उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। यानी भाजपा के इशारे पर चलना उनकी मजबूरी है। इसे एक और उदाहरण से भी समझा जा सकता है। राज्यसभा की खाली हुई बिहार की एक सीट पर भाजपा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया। यह सीट 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू और कांग्रेस के साथ बने महागठबंधन के कोटे की थी। राजद ने राम जेठमलानी को इस सीट से राज्यसभा भेजा था। चूंकि महागठबंधन से नीतीश अब अलग हो चुके हैं, इसलिए इस सीट पर उनका ही हक बनता था। लेकिन भाजपा के उम्मीदवार उतारने के फैसले को उन्हें मौन स्वीकृति देनी पड़ी।

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भाजपा के नेता जिस अंदाज में हाल के दिनों में नीतीश पर हमलावर हुए हैं और नीतीश कुमार कोई प्रतिक्रिया देने से बचते रहे हैं, उसे देखते हुए यह साफ हो जाता है कि जदयू और भाजपा के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं है। भाजपा ने यह भी संकेत दे दिया है कि नीतीश को अगर साथ रहना है तो उसके इशारे पर ही चलना होगा।

दोनों दलों के बीच बढ़ती दूरी का ताजा उदाहरण उस वक्त मिला, जब विजयादशमी के दिन पारंपरिक रावण दहन कार्यक्रम में भाजपा की ओर से कोई नेता शामिल नहीं हुआ। कार्यक्रम में नीतीश, उनके दल के कुछ नेता और सरकारी अमला के अलावा कोई दिखा भी तो वे थे कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा। हर वक्त नीतीश के साथ सटे रहने वाले भाजपा के नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी कार्यक्रम से अलग ही रहे। आयोजकों के मुताबिक राज्यपाल समेत भाजपा के भी तमाम बड़े नेताओं को कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता भेजा गया था।

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