देश में 40 फीसद लोगों को लीची खिलाता है बिहार

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के उत्पादन में बिहार का के उत्पादन में टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला की का विशिष्ट स्थान है।

·         बागवानी विकास के जरिये किसानों की स्थिति बेहतर करने में प्रयासरत सरकार

·         फल एवं सब्जियों के उत्पादन में बिहार का विशिष्ट स्थान है।

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·         लीची एवं मखाना के उत्पादन में बिहार का लगभग एकाधिकार है|

·         शहद उत्पादन में देश में राज्य का स्थान प्रथम है।

पटना। राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ ही कृषक एवं उद्यमी के आमदनी बढ़ाने, स्वास्थ्य एवं पोषण सुरक्षा, युवाओं में रोजगार सृजन तथा वातावरणीय संतुलन बनाने में उद्यानिक फसलों की अहम् भूमिका है। फल, फूल सब्जियाँ, कन्दमूल फसलें, मसालें, सगंधीय एवं औषधीय पौधे इत्यादि उद्यानिक फसलों की श्रेणी में आते है। इन फसलों की चौमुखी विकास निर्यात क्षमता में बढ़ोतरी हेतु प्रमुख साधन है। इन फसलों की उत्पादन क्षमता अधिक होने के कारण प्रति इकाई जमीन से अधिक से अधिक गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। कतिपय फल एवं सब्जियों के उत्पादन में राज्य का विशिष्ट स्थान है। लीची एवं मखाना के उत्पादन में लगभग एकाधिकार है। कृषि रोड मैप 2012-17 के तहत् चलाए गए कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के फलस्वरूप शहद एवं मशरूम उत्पादन में काफी वृद्वि हुई है। शहद उत्पादन में देश में राज्य का स्थान प्रथम है। गुणवत्तापूर्ण पौध उत्पादन सामग्री, केला के टिश्यु कल्चर पौधे, सूक्ष्म सिंचाई पद्धति, संरक्षित खेती जैसे अनेक तकनीकी के समावेश होने से उद्यानिक फसलों के गुणवत्तायुक्त उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्वि हुई है।

उद्यानिक फसलों के गुणवत्तायुक्त पौध रोपण सामग्री की आवश्यकता की पूर्ति हेतु राजकीय प्रखंड उद्यान नर्सरियों एवं प्रोजनीबागों (उन्नत बीज और पौधे तैयार करनेवाला बाग़) को सुढृढ़ करने का प्रयास किया गया। फल एवं सब्जी के गुणवत्तापूर्ण पौध रोपण सामग्री तैयार करने तथा कृषि के क्षेत्र में नई तकनीकी की प्रत्यक्षण एवं कृषकों के प्रशिक्षण हेतु इण्डो इजरायल परियोजना के तहत् सेन्टर ऑफ़ एक्सेलेंस फॉर वेजीटेबल, चण्डी, नालन्दा एवं सेन्टर ऑफ़ एक्सेलेंस फॉर फ्रुट्स, देसरी, वैशाली की स्थापना की गयी है। सब्जियों में गुणवत्तायुक्त उत्पादन हेतु एक अलग से वेजिटेबुल इनिसिएटिव एवं फसल विविधिकरण कार्यक्रम संचालित किया गया है। संरक्षित कृषि के तहत् पॉलीहाऊस के निर्माण, प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग कर उच्च मूल्य वाले सब्जी एवं फूल यथा- शिमला मिर्च, जेरबेरा, डचरोज इत्यादि की खेती को बढ़ावा दिया गया। पैक हाऊस, आसवन संयंत्र, कोल्ड स्टोरेज, अपनी मंडी, प्याज का भंडारण इकाई की स्थापना के साथ-साथ मशरूम उत्पादन, स्पॉन उत्पादन इकाई की स्थापना भी की गयी है।

वर्तमान में राज्य के 23 जिलों में राष्ट्रीय बागवानी मिशन का कार्यान्वयन किया जा रहा है। शेष 15 जिलों में मुख्यमंत्री बागवानी मिशन का कार्यान्वयन हो रहा है। उद्यान विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण पौध रोपण सामग्री की उपलब्धता सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसको सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय तथा विभाग के अधीन सरकारी नर्सरियों में उपलब्ध मातृ वृक्षों का महत्तम उपयोग किया जा रहा है| बागवानी फसलों खास कर केला के पौध सामग्री के गुणन के लिए टिश्यू कल्चर तकनीक का व्यापक उपयोग हो रहा है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अधीन सबौर में एक टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना करायी गयी है। भविष्य में और भी टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए निजी क्षेत्र में टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना के लिए सहायता प्रदान किये जाने का प्रावधान किया गया है।

आम, लीची तथा अमरूद के उच्च सघनता वाले नये बागों की स्थापना को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसे आगे के वर्षों में जारी रखा जायेगा ताकि कम क्षेत्रफल में अधिक पौधा लगाकर फलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्वि किया जा सके। लीची के उत्पादन में बिहार का विशिष्ट स्थान है। बिहार में न सिर्फ देश में कुल उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत योगदान है। लीची के जैविक उत्पादन के लिए उत्तम शष्य क्रियायें कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसे आगे भी जारी रखा जायेगा। बगीचों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए पुराने बगीचों का जीर्णोद्धार आवश्यक है। कुछ जिलों में इस तकनीक को अपनाया गया है। बृहत्तर पैमाने पर तकनीक को अपनाने के लिए प्रशिक्षित मानव बल तथा उपयुक्त प्रकार के कृषि यंत्रों का उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ हीं चरणबद्ध ढंग से पाँच वर्ष उम्र के आम एवं लीची पौधे तथा इससे अधिक उम्र के बगीचे की जुताई-पुताई हेतु बगीचा बचाओ अभियान जारी है|

उद्यानिक फसलों के फसलोत्तर प्रबंधन एवं विपणन हेतु आधारभूत संरचना निर्माण अन्तर्गत प्याज के भंडारण के लिए कम लागत के प्याज भंडारण इकाई का निर्माण के अलावे ताजा फल सब्जी के विपणन के निमित्त कूल चेन के विकास को प्राथमिकता दी गयी है| एरोपोनिक्स एवं हाइड्रोपोनिक्स तकनीक एक आधुनिक तकनीक है, जिसे अपनाकर विभिन्न प्रजाति के उद्यानिक फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा| सूक्ष्म सिंचाई एक उन्नत सिंचाई प्रणाली है जिसके द्वारा पौधे के जड़ क्षेत्र में विशेष रूप से निर्मित प्लास्टिक पाईपों द्वारा कम समय अन्तराल पर पानी दिया जाता है तथा पारंपरिक सिंचाई की तुलना में 60 प्रतिशत कम जल की खपत होती है। इस प्रणाली अन्तर्गत ड्रीप सिंचाई पद्दति, स्प्रिंकलर सिंचाई पद्दति एवं रेनगन सिंचाई पद्दति उपयोग किया जाता है। इस सिंचाई प्रणाली से फसल के उत्पादकता में 40 से 50 प्रतिशत की वृद्धि तथा उत्पाद की गुणवता उच्च होती है। इस सिंचाई प्रणाली से मजदुरों के लागत खर्च में कमी तथा पौधों पर रोगो के प्रकोप में भी कमी आती है। इस प्रणाली को अपनाकर यदि उर्वरक दिया जाए तो इससे लगभग 25 से 30 प्रतिशत उर्वरक की बचत होती है। कृषि रोड मैप 2017-22 में इस प्रणाली को कम से कम कुल आच्छादित क्षेत्र के लगभग 2 प्रतिशत क्षेत्रों में प्रतिष्ठापित किये जाने का लक्ष्य है ताकि बिहार के सब्जी एवं फल का उत्पादकता एवं उत्पादन में बढ़ोतरी हो। इस योजना अन्तर्गत किसानों को राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त टॉप-अप प्रदान करते हुये सभी श्रेणी के कृषकों को 75 प्रतिशत सहायता अनुदान देने का प्रावधान किया जायेगा।

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