जश्न मनाइए कि आप कोरोना काल के साक्षात गवाह हैं

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जश्न मनाइए कि आप कोरोना काल के साक्षात गवाह हैं। जश्न मनाइए कि शराब की बोतलें लूटने नहीं, किसी भी कीमत में खरीदने के लिए आप पुलिस की गालियां-लाठियां खाने को भी तैयार-तत्पर हैं।
जश्न मनाइए कि आप कोरोना काल के साक्षात गवाह हैं। जश्न मनाइए कि शराब की बोतलें लूटने नहीं, किसी भी कीमत में खरीदने के लिए आप पुलिस की गालियां-लाठियां खाने को भी तैयार-तत्पर हैं।
  • श्याम किशोर  चौबे
श्याम किशोर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार
श्याम किशोर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार

जश्न मनाइए कि आप कोरोना काल के साक्षात गवाह हैं। जश्न मनाइए कि शराब की बोतलें लूटने नहीं, किसी भी कीमत में खरीदने के लिए आप पुलिस से पिटने को भी तैयार हैं। ये बोतलें आखिरकार जश्न की खातिर ही तो चाहिए थीं। या फिर गम गलत करने के लिए। या वक्त काटने के लिए। या फिर 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की ओर भारत के अग्रसर होने का प्रकटीकरण है यह। 40 दिनों बाद हुकुम ने यह मौका दिया तो भी हड़बोंग मचा कर आपने गवां दिया। 56 दिनों में से 40 दिन में ही गड़बड़ा गए? कोरोना को जीतना है तो अपना सीना 56 इंची का करिए जनाब!

हुकुम ने टैक्स नहीं, सबकी उत्सवी तासीर देखते हुए बेमिसाल तालाबंदी से कुछ सूबों में शराब को बंदी से आजादी दी तो यह क्यों सोच लिया कि पहली बोतल आपके ही हलक में उतरे! इसका सीधा मतलब है कि आपने लक्ष्मण रेखा की अबतक बिलकुल परवाह की। ऐसा न होता तो आप मयखाने की तरफ झांकने की जुर्रत ही न करते। इस तालाबंदी का मतलब नजरबंदी तो हरगिज नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि आपने दरवाजे से बाहर झांका और पुलिस ने ठोंक दिया।

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जनाब, अपनी दहलीज से बाहर जरा झांकने की हिमाकत तो करते, फिर देखते कि आपके लिए कोरोना ने कितने रंगे-बिरंगे कीमती तोहफे रख छोड़े हैं। दिन भर घर में टीवी से चिपके रहने, बहुत हुआ तो ह्वाट्सएप्प, फेसबुक या इंस्टाग्राम पर कलछी चलाते अपनी तस्वीर चिपकाने या बीवी-बच्चे से अपना केश कर्तन कराते फोटो वायरल करना बेशक आपका नया शौक-शगल हो सकता है, लेकिन आपकी खिड़की की आजू-बाजू क्या अल-सुबह चिड़ियों की चहचहाट पर आपकी नजर नहीं गई? यदि नहीं तो आज सुबह-सुबह गौर कर लीजिएगा। रात में अपनी बालकनी या छत से चंदा मामा को देख लीजिए, ध्रुव तारे पर भी गौर फरमा लें, तारों की झिलमलाहट को देखें और इसी प्रकार पूरे आकाश की रंगत तो देखें।

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सुबह-सुबह आंखें खोलें और छत पर या गली में थोड़ी हिफाजत से निकलें। फिर देखिए किस प्रकार शीतल मंद मलय-समीर आपकी अगवानी करने को तैयार मिलता है। बिना कोई कसरत किए भी उधर से वापस लक्ष्मण रेखा फलांग कर घर में घुसने पर जो तरोताजगी महसूस करेंगे, शर्तिया वैसा जीवनकाल में आपने कभी महसूस न किया होगा। बाहर देखेंगे, फुदकती गोरैया, जोड़े में बैठा कबूतर, कुनमुन करती मैना और ऐसे ही अनेक मनभावन दृश्य, जिनके लिए अबतक तरसते रहे होंगे। सच मानिए और कोरोना को भरे मन से ही सही एक बार शुक्रिया जरूर कहिए कि उसने आपको यह सब देखने और महसूस करने का अवसर दिया।

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चूंकि हम अच्छा ही अच्छा देखने के आदी हो गए हैं, इसलिए कोरोना की अच्छाइयों पर एक बार जरूर गौर करना चाहिए। क्योंकि उसने ही यह मौका दिया कि स्टंटबाजी करते हुए कैंचीमार बाइक वाले छोकरे हों कि दफ्तर, दुकान या धनिये के पत्ते लाने के लिए भी कार से बाजार जाने की जल्दबाजी, फटफटाते तिपहिए हों कि एक क्लिक पर हाजिर हो जानेवाली कैब, सबकुछ बंद है। बस, ट्रक, पोकलेन, ट्रेन, प्लेन सब बंद। छोटे-बड़े उद्योग की चिमनियां भी धुआं नहीं उगल रहीं। यहां तक कि सड़कों के किनारे या आबादी में छुप कर चलने वाले रेस्तरां तक शांत। तिस पर कुदरत ने ऐसा समां बांध  रखा है कि ऐसा फागुन, ऐसी चैत और ऐसा बैशाख आपने कभी नहीं देखा होगा। असर बस इतना है कि आपके आसपास और यहां-वहां हर जगह शुद्ध हवा की सांस भरने की आजादी मिल गई है। और तो और नदियों का पानी भी निर्मल नजर आने लगा है। यह जश्न मनाने का ही तो मौका है।

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आप न तो बाहर का बासी-तिबासी गंदा खाना/नाश्ता करने को पाबंद हैं, न ही मीट-मछली पर आपका ध्यान जा रहा है। और तो और अपने बाल-बच्चों या माता-पिता से भी मीटर-दो मीटर दूर रहकर आप स्वच्छ सांस लेने को विवश हैं। अपनी तमाम बदजातियों और घातक बीमारियों के बावजूद कोरोना रानी धन्य हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया को यह अद्भुत मौका दिया। इसलिए जश्न मनाइए जनाब। कोई जरूरी नहीं कि हर जश्न में शराब हो ही। कढ़ी और काढ़ा पीकर भी जश्न मनाया जा सकता है। और यह कितनी अच्छी बात है कि ऐसा करते समय आपको कोई शर्म नहीं होगी। पूरे परिवार के संग जश्न मनाइए।

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जरा यह भी देख-सुन-समझ लीजिए। यह पहला मौका है, जब बेचारे मजबूरन परदेसी भए मजदूरों, छात्र-छात्राओं को घर-परिवार से मिलाने की होड़ मची हुई है। आओ प्यारे बस, ट्रेन, प्लेन जिससे भी संभव हो, तम्हें तुम्हारे प्यारों से मिलाने को तत्पर हैं। सरकार से लेकर बेसरकार हुए सभी आवाहन कर रहे हैं, आ जाओ प्यारे आ जाओ। जिन डाॅक्टर, नर्सों को कोसने में कोई कोताही नहीं की जाती थी, उन पर पुष्प वर्षा की जा रही है। झाड़ू-बुहारू करने वाले से लेकर पुलिस, सरकारी सेवकों तक को तहेदिल से सराहा जा रहा है। सो, जश्न मनाइए। घर में ही मनाइए। ये दिन लौट के नहीं आने वाले। ऐसा मौका कोरोना ने ही दिया। हमको, आपको, सबको तहजीब से रहना सिखाया। यह मौका न तो आपके पितरों को मिला, न ही आपकी अगली नस्लों को मिल पाये शायद। सो, शुकराना करिए जनाब और जश्न मनाइए कि आप कोरोना काल के साक्षात गवाह हैं। जश्न के इस अवसर के लिए शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया।

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