घोषणा के बावजूद अब तक नहीं बना बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय

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  • मुरली मनोहर श्रीवास्तव

पटना। वक्त बदलता है, वक्त के साथ व्यक्ति इस जहां को अलविदा कर जाते हैं, मगर उनकी कीर्तियां उन्हें इतिहास के पन्नो में दर्ज कर देती हैं। उन्हीं में से एक हैं भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां। इनको हमसे बिछड़े 12 साल गुजर गए। रह गईं तो उनके द्वारा छेड़ी गई स्वरलहरियां।  एक साधारण-सी पिपही पर शास्त्रीय धुन छेड़कर दुनिया को संगीत के एक नए वाद्य से परिचित कराया और असंभव को संभव कर दिखाया। उससे भी कहीं ज्यादा उनके उपर 25 सालों से काम करने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव भी कम तारीफ के पात्र नहीं हैं।

बाबा आज नहीं हैं, पर उन्हें भूलना भी नामुमकिन है। उनकी यादों को सहेज कर रखने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव का भी संगीत और धरोहर से कम लगाव नहीं है। इस शख्स ने तो वह कर दिखाया, जो बाबा के लिए किसी ने करने की कोशिश नहीं की। बाबा के नाम ही खुद को न्योक्षावर कर दिया। जब कभी कोई बातें इनसे करे और उस्ताद की बातें न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बड़े प्यार से उनकी पूरी जिंदगी को सुनाने लगते हैं तो लगता है आंखों के सामने से वो पल सिनेमा के रूप में दिख रहा है।

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बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव के ठठेरी मुहल्ले के किराए के मकान में 21 मार्च 1916 को बालक कमरुद्दीन का जन्म हुआ। अब्बा पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। मगर महज चौथी तक की पढ़ाई करने वाला यही बालक आगे चलकर भारत रत्न शहनाई स्तव

नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बन गए। लगभग 150 देशों में अपने शहनाई वादन करने वाले बिस्मिल्लाह ने अपने जीवन में कई पुरस्कार और उपलब्धि अपने नाम किये, मगर कभी भी लालच नहीं किया। जो आएगा, वो जाएगा, ये चिरंतन सत्य है। 21 अगस्त 2006 को वाराणसी में उस्ताद ने आखिरी सांसें लीं….कहते हुए मुरली मनोहर श्रीवास्तव की आंखें छलक आयीं।

अपने जीवन के बाल्यकाल में ही अपने घर पर बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव में उस्ताद से उनका परिचय हुआ। तब कोई खास समझ नहीं थी। बस इतना ही पता था कि “बाजे शहनाई हमार अंगना” बस एक भोजपुरी फिल्म है। लेकिन वक्त के साथ बिस्मिल्लाह खां से मिले प्यार ने मुरली को उनका दीवाना बना दिया। जैसे-जैसे सोच विकसित होती गई, वैसे-वैसे सोच में आया बदलाव और वर्ष 1990 में मुरली ने उन पर पुस्तक की रचना कर डाली। प्रकाशकों ने बच्चा समझकर छापने से कर दिया था इंकार। उसके बाद भी कदम बढ़ते गए और संघर्ष से कभी मुंह नहीं मोड़ा मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने। इनकी चाहत को मुकाम मिला और वर्ष 2008 में पुस्तक को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित कर इन्हें बेहतर लेखकों में शुमार कर दिया।

इनके कदम यहीं नहीं रुके और उस्ताद के ऊपर काम करते-करते 45 मिनट की “सफर-ए-बिस्मिल्लाह” डॉक्यूमेंट्री बनायी, जिसे 2017 में उस्ताद के 100 वर्ष के अवसर पर बिहार सरकार के कला-संस्कृति विभाग ने इसे प्रदर्शित किया था। उस्ताद के ऊपर डॉक्यूमेंट्री बनाने के दौरान उस्ताद के मजार, जो कच्चा था, के लिए यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लंबी लड़ाई के बाद 20 लाख की लागत से पक्कीकरण करवाया। रेल विभाग से लगातार आग्रह करने का नतीजा यह हुआ की डुमरांव स्टेशन पर बिस्मिल्लाह खां के चित्र बनाए जा रहे हैं। साथ ही अनाउंसमेंट माइक से उस्ताद के शहनाई की गूंज सुनाई पड़ने लगेगी।

वर्ष 2013 में सरकार ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के नाम पर “बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय” डुमरांव में बनाने की घोषणा कर दी। फिर इस काम में मुरली लग गए। बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री मदन मोहन झा ने डुमरांव में बंजर और खाली पड़ी भूमि जांचोपरांत देने की बात कही थी। मगर वह मामला आज तक लंबित पड़ा हुआ है। खैर, इससे मुरली को कोई फर्क नहीं पड़ा। इन्हें यूनिवर्सिटी खोलने के लिए कई जगह से भूमि दान के लिए ऑफर मिले, मगर इन्होंने स्वीकार नहीं किया और उस्ताद की जन्मभूमि डुमरांव में ही यूनिवर्सिटी बनाने के लिए वह अब भी प्रयासरत हैं।

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