कोरोना विजेताओं से सामाजिक भेदभाव ठीक नहीं

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कोरोना विजेताओं से सामाजिक भेदभाव ठीक नहीं है। इसका कोई वैज्ञानिक कारण भी नहीं। जरूरत इनसे बातचीत व इनकी हौसला अफजाई की है।
कोरोना विजेताओं से सामाजिक भेदभाव ठीक नहीं है। इसका कोई वैज्ञानिक कारण भी नहीं। जरूरत इनसे बातचीत व इनकी हौसला अफजाई की है।
  • बातचीत व हौसला अफजाई से ही बनेगी बात
  • अलग-थलग करना अवैज्ञानिक व अमानवीय 

वाराणसी। कोरोना विजेताओं से सामाजिक भेदभाव ठीक नहीं है। इसका कोई वैज्ञानिक कारण भी नहीं। जरूरत इनसे बातचीत व इनकी हौसला अफजाई की है। कोरोना वायरस यानी कोविड-19 को मात देने वालों के साथ सामाजिक भेदभाव करना वैज्ञानिक और मानवीय दोनों दृष्टिकोण से उचित नहीं है। उन्होंने एक ऐसे वायरस को हराया है, जिसकी चपेट में कोई भी और कभी भी आ सकता है। इसमें उनका कोई ऐसा दोष नहीं है, जिसके लिए उनके साथ सामाजिक भेदभाव किया जाए।

आखिर वे भी हमारे समाज और परिवार के अभिन्न अंग हैं और इन विषम परिस्थितियों में जब वह कोरोना के संक्रमण को लेकर तनाव और चिंता में हैं तो उनको मानसिक संबल प्रदान करना हम सभी का नैतिक दायित्व बनता है। यह कहना है मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी एवं एसीएमओ डॉ पीपी गुप्ता का।

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डॉ पीपी गुप्ता का कहना है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति से बात करने पर यही पता चलता है कि उनको इसकी चपेट में आने से ज्यादा यह चिंता सताती रहती है कि लोग क्या कहेंगे और उनके साथ कैसा व्यवहार करेंगे। उनकी इस चिंता और तनाव को तभी दूर किया जा सकता है, जब हम उनके साथ पहले जैसा सामान्य व्यवहार करें। इसके साथ ही कोरोना से स्वस्थ हुए व्यक्ति को अलग-थलग करना अवैज्ञानिक और अमानवीय भी है।

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इसीलिए समुदाय को बराबर जागरूक भी किया जा रहा है कि कोविड-19 को मात देने वाले व्यक्ति के साथ बातचीत करना पूरी तरह से सुरक्षित है। इसके अलावा यह भी जानना जरूरी है कि कोरोना से जंग जीतने वाले व्यक्ति से वायरस का संक्रमण नहीं फैलता है।

सेवा में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों का करें सम्मान

एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय के मनोचिकित्सक डॉ रविंद्र कुशवाहा का कहना है अपना घर-परिवार छोड़कर कोरोना के वार से हर किसी को सुरक्षित करने में दिन-रात जुटे स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति भी लोगों को दिल से शुक्रिया अदा करना चाहिए। लोगों को इस पर विचार करना चाहिए कि जब एक चिकित्सक लोगों की जिन्दगी को बचाने के कर्तव्य को निभाने में जुटा है तो ऐसे में वह अपनी जिम्मेदारी निभाने से कैसे पीछे हट सकते हैं।

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डॉ कुशवाहा का कहना है कि कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होकर अस्पताल से घर आने वालों का अगर करीबी दिल से स्वागत करें और उनका हालचाल जानें तो वह बहुत जल्दी ही चिंता और तनाव से उबर सकते हैं। इस दौरान ख़बरों में ऐसे कई उदाहरण देखने को भी मिल रहे हैं, जहाँ पर संक्रमितों के अस्पताल से लौटने पर सोसायटी या आस-पड़ोस के लोगों ने फूल बरसाकर उनका एक योद्धा के रूप में स्वागत भी किया है। इसी भावना को जिन्दा रखकर ही हम उनको मानसिक संबल प्रदान करने के साथ ही उनके कष्ट को दूर कर सकते हैं।

कोरोना से डरें नहीं, जागरूक बनें 

  • घर से बाहर निकलें तो मास्क जरूर पहनें
  • गमछा/ स्कार्फ से मुंह-नाक ढक कर निकलें
  • एक दूसरे से दो गज दूर की दूरी बनाए रखें
  • मुंह, नाक और आँख को बार-बार छूने से बचें
  • साबुन-पानी से हाथ अच्छी तरह से धोते रहें
  • सेनेटाइजर से भी हाथ को साफ कर सकते हैं

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