- डा. संतोष मानव
कोरोना डायरी का चौथा भाग पढ़ेः यह सिर्फ कोरोना काल नहीं है। यह द्रोहकाल भी है। ध्यान से देखिए, हर घर में एक न एक द्रोह या द्रोही है। मूल पाठ: क्या यह सिर्फ कोरोना काल है? नहीं, यह द्रोहकाल भी है- कोरोना काल का द्रोहकाल- टाइम्स आफ बिट्रेअल। कैसे? लो, आंखें खुली और माथापच्ची शुरू- घंटों माथाकुच्चन। यह न होता, तो कैसा होता? वह न होता, तो वैसा होता। नींद खुल जाने के बाद की कशमकश- घंटे भर की। द्रोहकाल कैसे? कैसे न द्रोहकाल। जो, अपने प्राण संकट में डालकर आपकी रक्षा के लिए घर-घर जाए, उन डॉक्टरों पर हमला? जो आपकी जान बचाने के लिए आपको सावधान करे, उन पुलिसकर्मियों पर हमला द्रोह ही तो है।
इस संकट की घड़ी में राजनीतिक दलों की तू-तू-मैं-मैं, एक संगठन या व्यक्ति की बेवकूफियों के लिए पूरी कौम को कठघरे में खड़ा करना द्रोह ही तो है। धन, पद की माया में नियम-कायदों की परवाह न करना भी तो द्रोह है। अस्पतालों में असहयोग, घरों से बाहर निकलने की जिद, कभी जबरिया भाग जाना, सब द्रोह है। कम से कम इस काल के अनुसार। फिर यह कैसे न हुआ, कोरोना काल के साथ-साथ द्रोहकाल? हुआ न? इसी मानसिक किचकिच के साथ सुबह। यह सब चलता अभी, अगर कान को भेदने वाली आवाज न आ गई होती- नाश्ता। मतलब साफ है, उठ जाओ। नहीं तो?
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नाश्ता-पानी, ई-पेपर के बाद भी द्रोहकाल का चिंतन जारी है- मध्यप्रदेश के इंदौर में कोरोना जांच करने गई महिला डॉक्टरों पर हमले के साथ शुरू हुआ सिलसिला थमा क्यों नहीं? हर हिंदी राज्य तक गया- बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब—। कारण कहीं अफवाह, कहीं अविश्वास, कहीं सनकीपन तो कहीं जाहिलपन। और इसमें सब शामिल हिंदू, मुस्लिम, सिख—। यह अलग बात है कि कुछ चैनल वाले दिल्ली के तब्लीगी जमात के मुख्यालय में बैठक की तरह मामले को दूसरे कोण से तूल दे रहे हैं। अपना पापी मन तो कहता है कि जमात का सम्मेलन/ बैठक हो या चिकित्सकों पर हमला, बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है।
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कमाल देखिए, दिल्ली की घटना में कोण निकालने वालों की सोच जालंधर में सपाट हो जाती है। हे निहंगों ! आपने मुझ जैसे लाखों को क्रोध में ला दिया है- गुरु के सैनिक इतने उदंड कैसे हो सकते हैं? क्या द्रोह जमाती और निहंगों का है, नेताओं का नहीं है? क्या वे पवित्र हैं? सोचिए, देश के पूर्व प्रधानमंत्री का पोता, पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे का विवाह हो, और नियम-कायदों की धज्जियां उड़ जाएं, तो आम लोगों को कैसा लगेगा? क्या सारे नियम आम लोगों के सिर है। उनका क्या, जो शान से कायदों की कान उमेठते हैं? बेंगलुरु में ऐसा ही हुआ न। विवाह समारोह में। मुख्यमंत्री भी आए। न दो गज की दूरी, न कम लोग।
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ऐसे ही दृश्य द्रोह पैदा करते हैं, आम लोगों में अनास्था के बीज वपन करते हैं- वे करें, तो ठीक, हम करें तो लाठी! कुछ का द्रोह सड़कों पर और कुछ का अस्पतालों में असहयोग का द्रोह। कैसी-कैसी बेवकूफियां। सड़क, अस्पताल, फार्म हाउस का द्रोह। एक द्रोह घर का। युवा पीढ़ी का। जो हमेशा की तरह पाटी-शाटी, तफरीह चाहते हैं। माता-पिता परेशान। सड़क पर जाएगा, तो पिटेगा- न जा प्यारे- स्टे होम। स्टे सेफ। युवा सुनें, तब न। अभिभावक हलकान हैं।
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दोपहर में फोन- भइया, छोटका भइवा नोएडा में है। घर आने की जिद कर रहा है। फोन पर माथा पटक रहा है। रोता है। पागल जैसा कर रहा है, बुलाने बोल रहा है। कैसे बुलाएं घर। है कोई जुगाड़? बाबू रे, हवाई जहाज बंद। रेल बंद। बस बंद। प्राइवेट गाड़ी बंद। बाजार बंद। सड़क बंद। देश-दुनिया बंद। कैसे बुलाओगे? समझाओ-थोड़े दिन की बात है। बर्दाश्त कर ले। —- सुनते हो, कहीं से नीबू और संतरा बुलाओ। कोरोना से बचने के लिए इम्युनिटी सिस्टम ठीक रखना है। संतरा, नीबू से मदद मिलेगी। यह भी द्रोह है। इस बंदी में संतरा-नीबू की मांग।
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हां, सुनिए, महाभारत में एक युद्ध नहीं है। एक बड़ा युद्ध के साथ अनेक छोटे युद्ध भी हैं। इसी तरह यह द्रोहकाल है। कोरोना काल का द्रोहकाल। जरा संभल कर रहिए- स्टे होम प्लीज। सुनिए, भागवतजी फेसबुक पर लाइव हैं। कह रहे हैं कि भारत माता के एक सौ तीस करोड़ पुत्र हैं। किसी एक की गलती के लिए पूरे समाज को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सब मिलकर शांति के साथ कोरोना का मुकाबला करें। साधु-साधु, कितनी अच्छी बात है। सुनते हो, एक्सरसाइज करो। दिन भर मोबाइल में लगे रहते हो। ऐसी समझाइश इन दिनों कुछ ज्यादा है। समझाइशों से बचने का रामबाण उपाय है, किताबों के बीच बैठ जाओ। दिन ढलने के साथ ही देर रात तक के लिए अपन बैठ गए हैं-अड्डा जमाकर।
(लेखक दैनिक भास्कर, हरिभूमि, राज एक्सप्रेस के संपादक रहे हैं)
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