कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले ही अस्पताल से भाग निकली मरीज

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कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले ही भाग निकली कोरोना की संदिग्ध मरीज। रांची स्थित रिम्स की यह घटना है। रिम्स से जिस प्रकार कोरोना संक्रमण की संदिग्ध महिला चुपके से भाग निकली, यह मामूली बात नहीं।
कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले ही भाग निकली कोरोना की संदिग्ध मरीज। रांची स्थित रिम्स की यह घटना है। रिम्स से जिस प्रकार कोरोना संक्रमण की संदिग्ध महिला चुपके से भाग निकली, यह मामूली बात नहीं।
श्याम किशोर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार
श्याम किशोर चौबे, वरिष्ठ पत्रकार
  • श्याम किशोर चौबे

रांची। कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले ही भाग निकली कोरोना की संदिग्ध मरीज। रिम्स की यह घटना है। रिम्स से जिस प्रकार कोरोना की संदिग्ध भाग निकली, यह मामूली बात नहीं। इससे जन सहयोग से कोरोना पर विजय पाने की लालसा को तो धक्का लगा ही, रिम्स की व्यवस्था भी सवालों के घेरे में आ गई। सरकारी क्षेत्र का यह झारखंड का सबसे बड़ा अस्पताल है, जिस पर हर किसी की निगाह लगी रहती है। गंभीर से गंभीर बीमारियों का सस्ता इलाज इसी अस्पताल में होता है। मध्यम वित्त के लोगों और गरीबों का यही आखिरी सहारा है। रिम्स के विवाद आये दिन सुर्खियों में रहते हैं। सेहत महकमे की ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा इसी में जाया होता है।

कोरोना संक्रमण की जो संदिग्ध महिला बीच इलाज में ही भाग निकली, उसने बिन कहे ताकीद कर दी कि न केवल उसके पूरे परिवार, अपितु उसके रिहायशी इलाके पर भी कड़ी नजर रखी जाये। साथ ही साथ यह स्थिति इंगित करती है कि राज्य को लाक डाउन से शीघ्र निजात मिलने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। जब मरीज खुद ही चंगा होने की स्थितियां न बनाये तो डाक्टर क्या कर लेंगे? उस महिला जैसे लोग मानव बम बने घूमते रहेंगे तो किस किस का इलाज संभव हो सकेगा? एक तो कोरोना विषाणु ऐसे ही परमाणु बम से भी अधिक खतरनाक है, दूसरे सारी जवाबदेही सरकार पर ठेलने की प्रवृत्ति उसको अपने डंक दिनोंदिन विस्तारित करने का माहौल बना देती है।

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राज्य के बाहर कमाने गये कामगारों की बात तो छोड़ ही दी जाए, कोरोना संकट के दौरान शासन-प्रशासन, राजनीतिक दल और उत्साही सामाजिक संस्थाएं अपने तमाम कारोबार छोड़कर जिस प्रकार जरूरतमंदों को राशन-पानी सहित कतिपय अन्य सुविधाएं मुहैया कराने पर तत्पर हैं और वे सुविधाएं लेने के लिए जिस प्रकार लाखों लोग सामने आ रहे हैं, उससे यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि कोरोना से निपटना आसान कतई नहीं है। यूं तो कोरोना जनित कोविड का कोई विश्वस्त इलाज नहीं है, दूसरे उसकी जांच ही बहुत महंगी है। जिन निजी पैथोलैब्स को इसकी जांच की अनुमति दी गई है, उनके लिए शुल्क 4,500 रुपये निर्धारित किया गया है। कोरोना संदिग्धों के लिए सरकार न केवल यह सुविधा, बल्कि उनकी तीमारदारी की भी कोई रकम नहीं ले रही। इस परिस्थिति में भी यदि संदिग्ध मरीज सरकारी व्यवस्था को गच्चा देकर भाग निकलें तो उनके साथ क्या न्याय किया जाना चाहिए, यह आज की तारीख में सबसे बड़ा सवाल है। इसका एक पक्ष यह भी है कि ऐसा कोई पागल ही करेगा और पागलों पर तरस ही खाई जा सकती है।

यह हर किसी को समझना होगा कि कोरोना पहलू के कम से कम तीन व्यापक निहितार्थ हैं। पहला तो यह कि संक्रमण पर कैसे नियंत्रण पाया जाये, दूसरा यह कि संक्रमण काल या उसके बहुत बाद तक भी भले ही शारीरिक दूरी को मेंटेन किया जाये, लेकिन सामाजिक दूरी न बनायी जाये और तीसरा यह कि इस काल में जिस प्रकार सर्वथा अयाचित और अवांछित आर्थिक विध्वंस हुआ है, उसकी भरपाई कैसे की जाये? किसी भी सभ्य और संवेदनशील समाज के लिए इनमें से एक भी मसला अत्यंत गंभीर है, जबकि ये तीनों सवाल पूरी दुनिया के सामने मुंह बाये खड़े हो गए हैं। कोरोना ने जिस विषम परिस्थिति में दुनिया को ला खड़ा किया है, वह संभवतः पांडवों के समक्ष यक्ष भी न ला सका था। आज की तारीख से हर किसी की जेहन पर एक सवाल जरूर तारी होना चाहिए, और भी गम हैं जमाने में कोरोना के सिवा, लेकिन कोरोना से निपटें तो कैसे?

झारखंड की बात करें तो महज 39-40 दिनों पहले जिस प्रकार हर कोई निश्चिंत था, आज उसके ठीक विपरीत हर किसी की पेशानी पर बल छाये हुए हैं। राजधानी क्षेत्र तो कोविड की शंका-आशंका से बुरी तरह ग्रस्त है ही, जबकि इस अत्यंत संवदेनशील संक्रामक महामारी ने धीरे-धीरे राज्य के आधे जिलों को किसी न किसी अंश में अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इतने दिनों तक बचती-बचाती चली आई उपराजधानी दुमका में भी संक्रमण संदिग्ध दो लोगों की पहचान ने सबके कान खड़े कर दिये हैं। इन दोनों की अंतर्राज्यीय ट्रैवल हिस्ट्री रही है, जबकि भलमनसाहत के साथ अब प्रायः हर जिले में अन्य राज्यों से कामगार और छात्र लाये जा रहे हैं। ऐसे में खतरे का संदेह बढ़ गया है। इसलिए जागरूकता की जरूरत बढ़ गई है। जबतक इस मोड में हर नागरिक नहीं आएगा, तब तक शासन-प्रशासन लाख सक्रिय रहकर भी क्या कर लेगा? इस बात पर गहराई से गौर करने की आवश्यकता है, क्योंकि अब काम का समय आ गया है। खेती-किसानी का सीजन दरवाजे पर खड़ा है, जबकि सरकार को नये बजट पर अमल करने के लिए ये महीने त्यौहार के समान हैं। किसान और सरकार इस गंभीर संकट से तभी उबर सकेंगे, जब हर कोई थोड़ी भी शंका होने पर जांच के लिए खुद आगे आये और शंका वास्तविकता में बदलते ही सरकार के संरक्षण में आइसोलेशन स्वीकार करे।

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और याद दिलाने की बात नहीं कि कोरोना से बचने की मर्यादाओं का सख्ती से पालन करे। इस बात पर जरूर गौर करना है कि अब तक देश भर में कोरोना वायरस ने 548 डाक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स को संक्रमित कर दिया है। ये वे वारियर्स हैं, जो संक्रमितों की सेवा में लगे हुए थे। इसलिए इस काल का सबसे बड़ा फर्ज है, स्कोर बोर्ड से अधिक ध्यान दीजिए खुद के बचने पर और दूसरों को बचाने पर भी।

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