कुमार कालिका सिंह ने जलाई थी स्वतंत्रता संग्राम की मशाल

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  • राज घराने से ताल्लुक रखने वाले कालिका हीरा जी के नाम से रहे मशहूर
  • पकड़े जाने पर कुमार कालिका ने न्यायालय में ऐसा बयान दिया जिसे ऐतिहासिक माना जाता है
  • भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था, इस सपूत का इतिहास कोई नहीं भूलेगा

आज देश अपनी आजादी का 72वां जश्न मना रहा है। सभी जानते हैं कि इस आजादी के लिए देश के कई वीर सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। आज इन्हीं में से एक महापुरुष बिहार के जमुई जिलान्तर्गत गिद्धौर निवासी कुमार कालिका सिंह के जीवन से हमें रूबरू करवा रहे हैं हमारे विशेष संवाददाता सुशान्त सिन्हा।

गिद्धौर राज रियासत के सदस्य कुमार कालिका सिंह ने राजसुख त्याग कर स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। हीरा जी के नाम से मशहूर कुमार कालिका ने स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र का नेतृत्व भी संभाला था। कुमार कालिका सिंह के बारे में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि इस सपूत का इतिहास कोई नहीं भूलेगा। लेकिन वर्तमान पीढ़ी इस महान स्वतंत्रता सेनानी के आजादी की लड़ाई में योगदान को भूलती जा रही है।

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सत्ता-साशन में हीरा जी के बढ़ते पैठ को देखकर ही बिहार के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर ने गिद्धौर राज रियासत के तत्कालीन शासक महाराजा बहादुर रावणेश्वर सिंह को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि जल्द से जल्द कुमार कालिका सिंह को आजादी के आंदोलन से अलग किया जाए। परंतु हीरा जी की दृढ़ इच्छाशक्ति की वजह से उन्हें कोई भी उनके उद्देश्य पथ से विचलित नहीं कर सका। अंत में अंग्रेज धारा 107 के तहत कार्रवाई करने हेतु अपना प्रतिवेदन तत्कालीन एसडीओ जमुई को दिया।

आजादी के रंग में रंगे कुमार कालिका सिंह के विरुद्ध लगाए गए आरोपों पर जब अदालत में सुनवाई शुरु हुई तो मुंगेर के तत्कालीन जिलाधीश स्टान साहब ने पुन: गिद्धौर रियासत के महाराजा को पत्र लिखकर आग्रह किया कि अभी भी कुमार कालिका सिंह कोर्ट के समक्ष यह कह दें कि अब उनका आजादी के आंदोलन से कोई संबंध नहीं है तो अदालत उन्हें बरी कर देगी। मगर कुमार कालिका ने 22 अक्टूबर 1921 को अपना बयान न्यायालय के समक्ष ऐसा दिया जिसे ऐतिहासिक माना जाता है। जिसका जिक्र स्वयं महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका यंग इंडिया में किया है। कुमार कालिका सिंह ने भरी अदालत में अपना बयान दिया था कि स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक के रुप में इस विदेशी न्यायालय का अधिकार नहीं है। परिणाम स्वरुप न्यायालय ने हीरा जी को एक वर्ष की सजा सुना दी।

आजादी के उपरांत कुमार कालिका को सम्मान देते हुए उनके नाम से एक महाविद्यालय कुमार कालिका मेमोरियल महाविद्यालय जमुई में खोला गया। जिसमें आज भी पठन-पाठन का कार्य यथावत जारी है।

कुमार कालिका का जीवन आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। उनकी वीर गाथा अब भी बुजुर्गों द्वारा घर-घर में सुनाई जाती है। उनके जीवन वृत की चर्चा से युवाओं में नवीन ऊर्जा का संचार होता है। हीरा जी द्वारा जलाई देशभक्ति की ज्वाला युगों-युगों तक  रौशन रहेगी।

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